बात भारत के आजादी के कुछ सालों बाद की है। उस वक्त एक डॉक्टर थे सेसार रॉसी। उनके दिमाग में एक बिजनेस आइडिया आया। सोचा कि भारत में आने वाले दिनों में पानी का कारोबार काफी सफल हो सकता है। उस समय पानी की उपलब्धता तो बहुत आसान थी, लेकिन साफ और मिनरल वाटर मिलना मुश्किल था। ऐसे में 1965 में डॉ. रॉसी ने खुशरू सुंतूक नाम के एक वकील के साथ मिलकर इंडिया में बिसलेरी लॉन्च की।
मुंबई के ठाणे में पहला ‘बिसलेरी वाटर प्लांट’ स्थापित किया। रॉसी के इस आइडिया की काफी हंसी उड़ाई गई। ऐसा इसलिए क्योंकि उस दौरान भारत में पानी बेचना पागलपन से कम नहीं था। रॉसी और संतूक ने इसकी परवाह किए बगैर बोतलबंद पानी का उत्पादन शुरू किया। उस दौरान भारत की आर्थिक राजधानी में पीने के पानी की गुणवत्ता बहुत खराब थी। ऐसे में अमीर परिवार और विदेशी पर्यटकों के लिए यह पानी किसी अमृत से कम नहीं था।
कंपनी ने इंडियन मार्केट में मिनरल वाटर और सोडा के साथ एंट्री ली। शुरुआती दिनों में दोनों उत्पाद केवल अमीर लोगों की पहुंच तक सीमित थे और केवल पांच सितारा होटलों और महंगे रेस्तरां में ही उपलब्ध थे। रॉसी और संतूक भी जानते थे कि वह अपने उत्पादों को सीमित दायरे में रखकर सफलता हासिल नहीं कर पाएंगे, इसलिए उन्होंने कंपनी को बेचने का फैसला लिया।
बिसलेरी कंपनी को बेचने की खबर भारतीय व्यापार जगत में जंगल की आग की तरह फैल गई और ‘पारले कंपनी’ के मास्टरमाइंड ‘चौहान ब्रदर्स’ तक पहुंच गई। 1969 में बिसलेरी वाटर प्लांट शुरू होने के ठीक 4 साल बाद रमेश चौहान ने बिसलेरी को महज 4 लाख रुपए में खरीद लिया।
आप सोच रहे होंगे कि हम ये कहानी आज क्यों बता रहे हैं। दरअसल, टाटा ग्रुप भारत की सबसे बड़ी पैकेज्ड वाटर कंपनी बिसलेरी इंटरनेशनल में हिस्सेदारी खरीद सकता है। इकोनॉमिक टाइम्स ने इस मामले से जुड़े तीन अधिकारियों के हवाले से इसे लेकर एक रिपोर्ट पब्लिश की है।
ये अधिग्रहण टाटा को एंट्री-लेवल, मिड-सेगमेंट और प्रीमियम पैकेज्ड वाटर कैटेगरी में पैर जमाने का मौका देगा। टाटा को ये रिटेल स्टोर्स, केमिस्ट चैनल्स और इंस्टीट्यूशनल चैनल्स का एक रेडी गो-टु-मार्केट नेटवर्क भी देगा। बिसलेरी का बल्क वाटर डिलीवरी का भी नेटवर्क है। ये होटल, रेस्टोरेंट और एयरपोर्ट में वाटर सप्लाई करता है।