कौनसा बोर्ड दिलाएं बच्चों को, CBSE, ICSE, IB या स्टेट:चारों के टीचिंग मेथोडोलॉजी और पाठ्यक्रम देख कर लें फैसला

प्रश्नों को पाठ्यक्रम बनाएं

– सुकरात

करिअर फंडा में आपका स्वागत है!

सुकरात, जिज्ञासा, स्कूल बोर्ड और आप

महान दार्शनिक सुकरात ने जब ‘प्रश्नों को पाठ्यक्रम बनाएं’ बात कही होगी तो वे ये कहना चाहते होंगे कि क्यूरियॉसिटी (जिज्ञासा) मनुष्य के डेवलपमेंट के लिए सबसे जरूरी है।

कई पेरेंट्स मुझ से अपने बच्चे के लिए किस बोर्ड के स्कूल का चयन करें, इस पर सवाल पूछते हैं। बच्चा किस बोर्ड से पढ़ाई करता है यह उसके शिक्षा जीवन की फाउंडेशन जैसा होता है। ये सवाल जायज और इम्पॉर्टेन्ट है।

क्या आप भी इस सवाल में कभी उलझे हैं? आज उलझन दूर होगी।

कौन से पैरामीटर जांचे जाएं

अपने बच्चे के लिए एजुकेशन बोर्ड का सिलेक्शन करते वक्त ध्यान रखे जाने वाले पहलू होते हैं (1) करिक्युलम या पाठ्यक्रम, (2) फीस, (3) अवेलेबिलिटी ऑफ स्कूल, और (4) टीचिंग मेथोडॉलॉजी। तो मैंने इन सभी इम्पॉर्टेन्ट बोर्ड पैटर्न के प्लस और माइनस पॉइंट्स आपके लिए तैयार किए हैं।

चार बड़े बोर्ड: एक विश्लेषण

1) स्टेट बोर्ड: भारत के संविधान में शिक्षा समवर्ती सूची का हिस्सा है अर्थात इससे राज्य और केंद्र दोनों डील करते हैं। भारत में लगभग सभी राज्यों का अपना एजुकेशन बोर्ड है।

फायदे: स्टेट बोर्ड से पढ़ाई करने का फायदा है आप उस क्षेत्र की जमीन और लोगो से जुड़ते हैं। बड़ा होने पर यदि बच्चा सामाजिक या राजनीतिक क्षेत्र में करिअर बनाना चाहे तो ये यूजफुल हो सकता है। स्टेट बोर्ड्स में पढ़ाई क्षेत्रीय भाषाओं में करवाई जाती है जिससे बच्चा क्षेत्र के कल्चर को समझ पाता है, और उससे घुल-मिल जाता है। मेरे एक रिलेटिव इसी लॉजिक पर अपने बच्चों का अध्ययन मराठी मीडियम में करवाना चाहते थे, लेकिन महाराष्ट्र के अलावा अन्य राज्यों में इसकी अनुपलब्धता के कारण ऐसा नहीं कर पाए।

इसके अलावा स्टेट बोर्ड्स की उपलब्धता अन्य बोर्ड्स के स्कूल से अधिक है और फीस कम।

नुकसान: ऐसा दिखता है कि कभी-कभी स्टेट बोर्ड में रट्टा-मार पढ़ाई कराई जाती है, इनके पाठ्यक्रम को कई बार सालों तक अपडेट नहीं किया जाता और अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग ग्रेडिंग सिस्टम होने के कारण कभी-कभी ये राज्य के बाहर उपयोगी नहीं रहते।

फिर भी यदि आप चाहते है आपका बच्चा क्षेत्रीय कल्चर को जाने, अपनी जड़ों से जुड़ा महसूस करें, और आपका बजट सीमित है, तो उसे जरूर स्टेट बोर्ड में पढ़ाएं।

2) सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (CBSE): केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) भारत सरकार द्वारा नियंत्रित और प्रबंधित, स्कूलों के लिए भारत में एक राष्ट्रीय स्तर का शिक्षा बोर्ड है। 1929 में स्थापित, आज भारत में 20,000 से भी ज्यादा CBSE स्कूल मौजूद हैं। इसके अलावा अन्य 28 देशों में 240 स्कूल सीबीएसई से जुड़े हैं। सभी स्कूल विशेष रूप से कक्षा 9 से 12 तक NCERT पाठ्यक्रम का पालन करते हैं।

चुनौतियां: CBSE स्कूलों की संख्या स्टेट बोर्ड्स की स्कूलों के मुकाबले कम है (शहरों में भी) इसलिए इन में एडमिशन लेना आसान नहीं होता और हम अक्सर स्कूलों में एडमिशन लेने के लिए ‘जैक लगाने’ की बाते सुनते हैं। इन स्कूलों में फीस भी स्टेट बोर्ड्स के स्कूलों की तुलना में अधिक होती है फिर भी CBSE से पढाई करने के अपने फायदे हैं।

फायदे: CBSE से पढ़े बच्चों के व्यक्तित्व में एक तरह का शहरीपन होता है। इसका पाठ्यक्रम ज्यादा जगह एक्सेप्ट होता है और भारत की कई प्रमुख परीक्षाएं, जैसे CLAT (कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट) CBSE पाठ्यक्रम को ध्यान में रखकर डिजाइन की जाती हैं। और फिर मिलिट्री, रेलवे, बैंक आदि से जुड़े परिवारों के लिए तो इससे अच्छा और कोई ऑप्शन ही नहीं है।

3) CICSE या केवल ICSE (ज्यादा प्रचलित नाम) बोर्ड: ICSE की स्थापना 1970 के दशक में स्टूडेंट्स को क्वालिटी एजुकेशन देने के उद्देश्य से की गई थी।

फायदे: ICSE बोर्ड से पढ़ाई करने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके पाठ्यक्रम को इंटरनेशनल मान्यता प्राप्त है, जिससे आगे जा कर फॉरेन यूनिवर्सिटीज में एडमिशन लेने में आसानी होती है। स्टेट और CBSE की तुलना में पढाई में थ्योरी के बजाय प्रैक्टिकल पर अधिक बल दिया जाता है, हालांकि शिक्षा का माध्यम इंग्लिश होता है। इंस्ट्रक्शन का मध्यम इंग्लिश होने, और इंग्लिश पर अधिक जोर होने के कारण स्टूडेंट्स को आगे चलकर TOEFL या IELTS जैसे एग्जाम्स क्लियर करने में आसानी होती है।

चैलेंज: इसका सिलेबस स्टेट बोर्ड और CBSE की तुलना में अधिक इन्डेप्थ होता है और पढाई डिफिकल्ट। इन बोर्ड्स को चलाने वाले स्कूल्स की संख्या कम है और फीस बहुत अधिक होती है।

4) इंटरनेशनल बेकलॉरेट या IB: 1968 में जेनेवा में स्थापित IB का मुख्य लक्ष्य शिक्षा को अंतर्राष्ट्रीय रूप देना है। इसका पाठ्यक्रम एजुकेशन के प्रैक्टिकल पहलूओं पर जोर देता है।