ऊंचाई एक्ट्रेस सारिका ने शेयर किया शूटिंग से जुड़ा एक्सपीरियंस:कहा- को स्टार से इंटरैक्शन होता है तो इमोशन अपने आप निकलते हैं

सालों बाद सारिका राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ऊंचाई से वापसी कर रही हैं। इसमें उन्होंने माला त्रिवेदी का किरदार निभाया है। हाल ही में सारिका ने ऊंचाई फिल्म की शूटिंग के एक्सपीरिएंस के बारे में दैनिक भास्कर से खास बातचीत की। बातचीत के दौरान एक्ट्रेस ने फिल्म से जुड़े बेहद दिलचस्प किस्से शेयर किए। आइए नजर डालते हैं बातचीत पर-

आप ऊंचाई की शूटिंग कहां-कहां करने गईं?
फिल्म की शूटिंग अक्टूबर में शुरू हुई था। मुझे याद है उस समय कोविड पूरी तरह से था। जनवरी में पूरा एक महीना शूटिंग रोक दी गई। ऐसा करते हमने पूरी पिक्चर को 80 दिनों में कंप्लीट किया। काफी अच्छी तरह शूटिंग निकल गई। ऊपर वाले की दया से किसी को कोई परेशानी नहीं हुई। आपकी शूटिंग किसके साथ ज्यादा रही?मेरा कैरेक्टर इंडिपेंडेंट कैरेक्टर है। मेरा ज्यादातर काम बोमन ईरानी, अनुपम खेर और अमिताभ बच्चन के साथ हुआ। बोमन और बच्चन जी के साथ में पहले काम कर चुकी हूं। अनुपम जी के साथ पहली बार काम किया। इसमें तीनों इतने अच्छे आर्टिस्ट हैं कि मेरे हिसाब से 19-20 नहीं बोल सकती। अपनी-अपनी स्टाइल में तीनों इतने बेहतरीन आर्टिस्ट हैं, जब को-स्टार अच्छे हों तो हमारी परफॉर्मेंस भी बेहतर हो जाती है। को-स्टार से इंटरैक्शन होता है, तब इमोशन अपने आप निकलने लगता है। अच्छे को-स्टार का होना ब्लेसिंग की बात होती है।

नेपाल के लोकेशन और जगहों किस तरह से एक्सप्लोर किया?
वहां पर छोटे-छोटे रिसॉर्ट जैसे होटल हैं। वहां पर कोई फाइव स्टार होटल नहीं होता। बहुत ही खूबसूरत छोटे-छोटे प्यारे-प्यारे कमरे होते हैं। इतने छोटे कि अगर आप बाथरूम का दरवाजा खोलें, तब मेन दरवाजा न खुले, क्योंकि बिस्तर इतना बड़ा है। उस तरह से छोटे-छोटे होटल के कमरे थे। वहां पर किचन खुला होता है। बारी-बारी वहां जाकर सब खाना बनाते थे। कभी ऑफ डे में खाना बना दिया, तब कभी पैचअप के बाद बना दिया। सभी लोग खाना बना रहे थे। बहुत अच्छा अनुभव रहा। वहां पर ज्यादातर वेजिटेरियन थे, तब मैं वेजिटेरियन खाना बनाती थी। जब सूरज जी और उनकी मिसेज के लिए मैं खाना बनाती थी, तब उसमें प्याज और लहसुन भी नहीं डालती थी, क्योंकि वे प्याज-लहसुन नहीं खाते। बाकी लोगों के लिए मशरूम वगैरह डाल देते थे। मुझे याद है, मुंबई में एक दिन अनुपम खेर की तबीयत ठीक नहीं थी, तब मैंने उन्हें सूप बनाकर दिया था। मुझे लगता है कि अच्छी बॉन्डिंग के लिए खाना भी बहुत जरूरी होता है। अनपुम खेर को प्लेन में भी डर लगता है। उनकी स्थिति क्या होती थी?बहुत बुरी। चापर क्या, उन्हें तो प्लेन में भी डर लगता है। लेकिन एक एक्टर की कमिटमेंट होती है कि अपने काम के लिए सब चीजों से ऊपर आकर करें। वे पायलट के बगल में बैठकर ही लोकेशन पर जाते थे। सूरज जी ने पायलट को बोल दिया था कि संभलकर जाना इन्हें डर लगता है। अनुपम और बोमन की बहुत गहरी दोस्ती है। बोमन जी उनका पूरा ख्याल रखते थे।

मनोरंजन जगत में साढ़े पांच दशक से बने रहने का राज क्या है?
राज यही है कि मुझे कुछ और आता भी नहीं है और कुछ करना भी नहीं है। मैं इंडस्ट्री में ही कुछ न कुछ क्रिएटिव फील्ड में अलग-अलग काम कर लेती हूं। मैं कॉस्ट्यूम कर लेती हूं, साउंड कर लेती हूं, अभी थिएटर में चली गई। लेकिन मेरा अक्स यह है। अगर बचपन से काम कर रहे हैं, तब साथ में सीख भी रहे होते हैं। अगर देखें, तब मेरी पूरी ट्रेनिंग यहां हुई है। यह बहुत-बहुत ऊपर वाले को धन्यवाद देने की बात है कि अशोक कुमार, संजीव कुमार, ऋषिकेश मुखर्जी, मीना कुमारी जैसे दिग्गज लोगों के साथ काम करते हैं, तब वह सब आपके कहीं न कहीं आपके टीचर की तरह होते हैं। ऑफिशियल टीचर तो नहीं हैं, पर उनसे सीखते हैं। जिंदगी वहां निकल गई, तब लगता है कि एक्टिंग के अलावा भी बहुत कुछ सीखने को मिला।

आप बड़े सॉलिड तरीके से कैरेक्टर को पेश करती हैं।आखिर उसे निकालने का तरीका क्या होता है?
मेरे लिए मुश्किल नहीं होता हैं। सबका अपना-अपना काम करने का एक तरीका होता है। मेरा तरीका बहुत अलग है। यह ऊंचाई फिल्म उतनी मुश्किल नहीं थी, लेकिन पहले की फिल्म परज़ानिया वगैरह देखेंगे, तब वह बहुत भारी फिल्म थी। लेकिन मैं शॉर्ट के बाद एकदम से निकल जाती हूं। मैं उतना समय ही कैरेक्टर में रहती हूं, जितना समय कैमरा ऑन होता है। क्योंकि दिमाग की एक आदत होती है कि उसे इम्प्रूव करो, री-राइड करो। पिक्चर की डबिंग वगैरह होती है, तब पिक्चर को बहुत सारा प्यार देकर मैं भूल जाती हूं। उसके बाद फिल्म ऑडियंस के सामने होती है। उसके बीच में रहने का महत्व नहीं होता है।