विमल, बढ़का और चिरई बुंदेलखंड के उन गांवों में रहते हैं, जहां खोदने से भी पानी नहीं निकलता। वैसे बुंदेलखंड में पानी की कमी एक पुरानी खबर की तरह है, जो सालभर अखबारों की सुर्खियों में बनी रहती है। लेकिन ये सच्चाई अब यहां के पुरुषों के लिए श्राप बन गई है। कुछ युवा 40 की उम्र के बाद भी कुंवारे हैं। दूसरे वो हैं जिन्हें शादी के बाद पत्नियां छोड़कर चली गईं।
हम पानी की किल्लत से जूझ रहे चित्रकूट के 10 गांवों में पहुंचे। हमने इन गांवों में ‘जल जीवन मिशन’ की हकीकत जाननी चाही, तो कुछ दुखभरी कहानियां अपने आप हमारी आंखों के सामने आ गईं। चलिए पहले इन कहानियों से रूबरू होते हैं, फिर आंकड़ों के जरिए सूखे बुंदेलखंड की सच्चाई जानेंगे।
पहला गांव: गोपीपुर में पानी की वजह से 50% युवा कुंवारे
मनिकपुर के गोपीपुर गांव में 5000 लोगों की आबादी है। यहां रहने वाले 250 परिवार पीने के पानी के लिए मात्र 1 कुएं पर निर्भर हैं। ये कुआं गांव से 2 किलोमीटर दूर पड़ता है। वहां से साइकिल पर, बैलगाड़ी से और कंधे पर लादकर लोग पानी लाते हैं। गांव की महिलाओं का पूरा दिन पानी भरने में ही बीत जाता है। पानी के लिए इस जद्दोजहद के कारण गांव के 50% युवा कुंवारे हैं।
गोपीपुर के रहने वाले विनय यादव 4 भइयों में इकलौते हैं, जिनकी शादी नहीं हुई है। तीनों भाई काम की तलाश में बाहर गए और उनका ब्याह भी हो गया। विमल गोपीपुर में ही रह गए और किसानी करने लगे। 35 साल बाद भी आज विनय कुंवारे हैं।
विनय कहते हैं, “हमारे लिए तीन-चार रिश्ते आए, लेकिन जब लड़की वालों ने पानी की समस्या देखी तो शादी कैंसिल कर दी। कहने लगे कि बिटिया दिनभर पानी ही भरती रहेगी, तो क्या फायदा यहां शादी करने से। अब हमने शादी की उम्मीद ही छोड़ दी है।”
पानी की वजह से आपकी 3 बार शादी टूटी, क्या लोग इस बात पर हंसते हैं? हमारे सवाल पर उसने मुस्कुराते हुए जवाब दिया- हम फालतू बातों पर ध्यान नहीं देते।
दूसरा गांव: करौंहा में 11 सरकारी हैंडपंप 10 खराब
करौंहा गांव चित्रकूट के सबसे पिछड़े गांवों में से एक है। यहां 2017 से बाद से 11 सरकारी इंडिया मार्का नल लगवाए गए। लेकिन केवल 1 ही चालू हालत में है। गांव के बाहर पुराना कुआं है। इसमें बरसात के दौरान पानी भर जाता है। ग्रामीण अब प्यास बुझाने के लिए इसी के भरोसे हैं। यहां की आबादी 7500 है।
करौंहा पंचायत के निवासी बढ़का के दोनों छोटे भाई बाहर काम करने गए, तो उनकी शादी हो गई। लेकिन वो 48 साल बाद भी कुंवारे हैं। घर में 2 बहुएं हैं, इसलिए अब वो चौखट पर बनी छोटी कोठरी में रहते हैं।
बढ़का कहते हैं, “साहब एक तो हम गरीब हैं, ऊपर से पानी की समस्या। पांच बार लड़की वाले आए, लेकिन घर की औरतों को बाहर से पानी ढोता देख रिश्ता तोड़ दिया। कहने लगे कि हम नहीं देंगे अपनी लड़की। टाइम से शादी हो गई होती तो हमारे में 2-3 बच्चे होते।”
माइक देखकर बढ़का फिर हंसते हुए कहते हैं, “अब उम्र हो गई है साहब। औरत मिले चाहे न मिले। हमें कॉलोनी दिलवा दीजिए। कम से कम चैन से सो तो पाएंगे।”
तीसरा गांव: चितघटी में 1 कुआं 10 साल से लोगों की प्यास बुझा रहा
चितघटी गांव में दो साल पहले प्रधान ने 4 चार हैंडपंप लगवाए थे। लेकिन सभी का पानी नीचे चला गया है। 10 मिनट चलाने पर भी पानी नहीं आता। गांव से डेढ़ किलोमीटर दूर बना कुआं 10 साल से लोगों की प्यास बुझाने का जरिया बना हुआ है। गांव में 400 लोग रहते हैं। सभी सुबह लाइन में लगकर बारी-बारी कुंए से पानी साइकिल पर लादकर ले जाते हैं। यहां कभी-कभी पानी के लिए लड़ाई भी हो जाती है।
चितघटी के रहने वाले बोधन के भाई चिरई पानी के कारण गांव छोड़कर पंजाब चले गए। 32 साल बाद शादी न होने पर लोगों की बातें सुन-सुनकर चिरई परेशान हो गए। एक दिन वो रोजगार की तलाश में गांव छोड़कर पंजाब चले गए।
अपने भाई के बारे में बताते हुए बोधन कहते हैं, “घर पर नल न होने और डेढ़ किलोमीटर पानी ढोकर लाने के चलते 2 बार हमारे भाई की शादी टूट गई। इन सब बातों से वो इतना परेशान हो गया कि एक दिन घर छोड़कर पंजाब चला गया। जाते-जाते चिरई कह के गया था कि बाहर जाकर नौकरी करूंगा। पैसा रहेगा तो शादी भी हो जाएगी।”
पानी की समस्या देख शादी के बाद पत्नी छोड़कर चली गई
हम चित्रकूट के पाठा इलाके के 10 गांवों में गए और सूखे के हालत को करीब से देखा। इन गांवों में रहने वाली महिलाओं को कई किलोमीटर दूर जाकर कुंए से पानी भरकर लाना पड़ता है। महिलाओं ने बताया कि उनका आधा दिन पानी भरने में ही निकल जाता है। यहां कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्हें पानी की कमी के कारण उनकी पत्नियों ने छोड़ दिया।
रानीपुर कल्याणगढ़ गांव के नागेश दुबे की पत्नी साल 2014 से बेटियों के साथ मायके में रह रही हैं। नागेश कहते हैं, “गांव में पेट के लिए पानी है न खेत के लिए। दो डिब्बा पानी मिलता है। उसमें कैसे काम चलता है, ये तो भगवान ही जानता है। पत्नी को गांव बुलाता हूं, तो आने को तैयार नहीं होती है।”
गोपीपुर के कामता प्रसाद 52 साल के हैं। तीन साल पहले उनकी पत्नी भी उन्हें छोड़कर चली गई। कामता ने बताया, “हमारे बीच में विवाद हुआ था। कुछ दिन पहले ही पता चला कि वो नहीं रही। हर चुनाव में नेता पानी पर वोट मांगते हैं, लेकिन आज तक किसी ने हमारे घर पर 1 नल तक नहीं लगवाया।”
सरकारी हैंडपंप बने शो-पीस
चित्रकूट के गोपीपुर, जारोमाफी, मारकुंडी, सरहट, गिदुरहा, कोटा कंदैला, चितघटी, रानीपुर कल्याणगढ़, चुरेह केशरुआ और ऐलहा बढ़ेहा गांवों में कुल 57 हैंडपंप हैं। इनमें पानी केवल 7 में ही आता है। ये वो हैंडपंप हैं, जो पथरीली पहाड़ियों से दूर हैं। इस गांवों में अब तक नल से पानी नहीं पहुंच पाया है।
वर्ल्ड बैंक की Managing Bundelkhand’s Water Resources: A Lesson from History-2018 रिपोर्ट आई। इसमें बताया गया कि बुंदेलखंड में साल 2013 से 2018 तक औसत से 60% कम बारिश हुई। इसका असर यहां पठारी क्षेत्रों में भी दिखा। इन इलाकों के 40% हैंडपंपों और कुंओं का वाटर लेवल नीचे चला गया। इससे ये पानी देना बंद कर दिए।
यहां तक आपने सूखे बुंदेलखंड की आपबीती जानी, अब आंकड़ों के जरिए जमीनी हकीकत को जान लेते हैं…
यूपी में 2.64 करोड़ घरों में नल से पानी पहुंचाने का टारगेट
केंद्र सरकार की योजना है JJM यानी ‘जल जीवन मिशन’। इसमें देश के 20 करोड़ घरों में मार्च 2024 तक नल से पानी पहुंचाने का टारगेट रखा गया है।
JJM की सरकारी वेबसाइट के मुताबिक, अगस्त 2019 से नवंबर 2022 तक 10 करोड़ घरों में नल से पानी पहुंचाया गया। जो टारगेट का आधा हिस्सा है। यूपी की बात करें तो यहां 2 करोड़ 64 लाख 29 हजार 214 घरों में नल से पानी पहुंचाया जाना है। अभी तक 53 लाख 27 हजार 820 घरों को कवर किया गया है। चित्रकूट में हम जिन गांवों में गए, वहां अब तक नल से जल योजना नहीं पहुंची है।
पथरीली जमीन और मजदूरों की कमी बन रही रुकावट
चित्रकूट में जल-जीवन मिशन के नोडल ऑफिसर सुनंदू सुधाकरण कहते हैं, “चित्रकूट के गांवों तक नल से जल पहुंचाने में हुई देरी की 2 मुख्य वजह हैं। पहली: यहां की 50% पथरीली जमीन। दूसरी: काम का ठेका लेने वाली एजेंसियों ने देर से काम शुरू किया।”
सुधाकरण कहते हैं, “योजना की शुरुआत के बाद एजेंसियों ने पठार क्षेत्रों में मैनपावर भी देर से लगाया। जब प्रशासन ने काम लेट होने पर पैनाल्टी लगाई, तब जाकर एजेंसियों ने लेबर लगाए। अभी घरों में नल से जल पहुंचाने के लिए पाइपलाइन बिछाने का काम हो रहा है।”
16 नवंबर को चित्रकूट में JJM की प्रोग्रेस देखने प्रमुख सचिव ग्रामीण जलापूर्ति विभाग अनुराग श्रीवास्तव और जल निगम के एमडी बलकार सिंह पहुंचे। योजना की सुस्त रफ्तार देख वो मौके पर मौजूद अधिकारियों पर भड़क गए। उन्होंने मिशन में काम कर रही प्राइवेट एजेंसियों को बर्खास्त करने की चेतावनी तक दे दी।
जल निगम के एमडी डॉ. बलकार सिंह ने बताया, “गांवों में जन जीवन मिशन पहुंचाने के लिए काम कर रही एजेंसियों के पास लेबर की कमी है। हमने निर्देश दिया कि मैन पावर को दो गुना किया जाए। कम समय में ज्यादा से ज्यादा घरों को कवर किया जाए। इस पर रात में भी काम चालू रहेगा।”
सूखे बुंदेलखंड तक पानी पहुंचाने वाली 3 बड़ी कोशिशें
बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त गांवों तक पानी पहुंचाने के लिए जल जीवन मिशन पहली कोशिश नहीं है। 1973 में इंदिरा गांधी से लेकर 2009-10 में कृषि मंत्री रहे शरद पवार ने सूखे बुंदेलखंड तक पानी पहुंचाने की कई योजनाएं शुरू कीं। लेकिन सभी बेअसर रहीं।