अच्छी यूनिवर्सिटी होने के 4 पैरामीटर:स्किल्स पर जोर, स्टूडेंट्स का ओवरऑल डेवलपमेंट

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बदलाव और आंकलन

क्या आप भी उन लोग में हैं जो ये सोचते हैं कि भारत में हायर एजुकेशन में बड़े पैमाने पर बदलाव करने की जरूरत है? क्या आप को लगता है कि भारत का एजुकेशन सिस्टम भारत की जरूरतों के अनुसार डिजाइनड नहीं है?

क्या आप भी भारत के एजुकेशन सिस्टम की कम प्रोडक्टिविटी से निराश हैं?

आज मैं आपको भारत की यूनिवर्सिटीज में आवश्यक बदलाव सुझाउंगा, और स्टूडेंट्स और पेरेंट्स इन बातों को एडमिशन के समय चेक करके यूनिवर्सिटीज का आंकलन कर सकते हैं। सरकार भी कोशिश कर रही है अपनी न्यू एजुकेशन पालिसी से, लेकिन उसमें समय लगेगा ही।

समय के साथ बदलाव आवश्यक

A) सोचिए, भारत में यूनिवर्सिटीज और विश्विद्यालय हजारों सालों से रहे हैं।

B) तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, आदि विश्व की सबसे पुरानी यूनिवर्सिटीज और वाराणसी, वल्लभी, उज्जैन जैसे शिक्षा केंद्रों में क्या पढ़ाया जाता था।

C) उस समय पढ़ाए जाने वाले कुछ कोर्सेज जैसे धनुर्विद्या, गजविद्या, अश्वविद्या आदि शायद आज रेलेवेंट नहीं रहे, इसलिए कहीं पढ़ाए भी नहीं जाते।

D) तब अधिकतर दो तरह की शिक्षा का प्रचलन था: वैदिक और बुद्धिस्ट (बौद्ध) – जहां बाहरी विकास के साथ-साथ मनुष्य के अंतर्मन के विकास पर काफी जोर दिया गया था, और धर्म, दर्शन, भाषाएं, गणित इत्यादि प्रमुख तौर पर पढ़ाया जाता था।

E) कहने का अर्थ है समय के साथ बदलाव आवश्यक है।

नए विषयों का जुड़ना

समय के पहिये के चलने और भारत में राजनितिक शक्तियों के बदलने के साथ-साथ शिक्षा तंत्र भी प्रभावित हुआ, इसीलिए मध्यकालीन भारत में हमें मकतब और मदरसे दिखाई देते हैं जहां अरबी, फारसी, व्याकरण, दर्शनशास्त्र और खगोल विज्ञान आदि पढ़ाया जाता था।

A) शिक्षा के केंद्र अब दिल्ली, आगरा, जौनपुर और बिहार थे।

B) लेकिन अठाहरवीं शताब्दी के बाद ब्रिटिश शिक्षा के तहत भारत विशाल ब्रिटिश साम्राज्य को संभालने के लिए आवश्यक स्किल्स जैसे अच्छी हैंडराइटिंग, अनुशासित, अंग्रेजी बोलने और जानने वाले, लोगो के निर्माण की फैक्टरी बन गया।

C) इस समय के सबसे इम्पॉर्टेन्ट और बड़े करियर्स में लॉ, मॉडर्न मेडिसिन, इंजीनियरिंग आदि की पढाई थी।

D) शिक्षा केंद्र मुंबई, कोलकाता, मद्रास आदि हो गए।

एक अच्छी यूनिवर्सिटी के लिए 4 मापदंड

1) स्किल्स पर जोर

A) वास्तव में आज भारत का मध्यवर्ग यह सोचने लगा है कि ज्यादा पढ़ने-लिखने से कोई फायदा नहीं होता, क्योंकि उसके बाद भी व्यक्ति के जीवन स्तर में कोई फर्क नहीं आता।

B) मेरे एक परिचित परिवार में तीन बच्चे हैं; पहले ने एक अच्छी यूनिवर्सिटी से मैथ्स में M. Sc. की डिग्री पाई है, दूसरे ने टेलीकम्युनिकेशन में पॉलीटेक्निक डिप्लोमा और तीसरे ने दसवीं कक्षा के बाद मोटर मेकैनिक और एसी रिपेयरिंग में ITI डिप्लोमा, लेकिन यदि आप केवल कमाई की बात करें तो तीसरा बच्चा बाकी दोनों से कहीं अधिक पैसा कमाता है।

C) ऐसा शायद इसलिए कि हमारा एजुकेशन सिस्टम थोड़ा या अधिक आज भी ब्रिटिश जमाने के ढर्रे पर ही चल रहा हैं, और हमने उसमें जरूरी बदलाव नहीं किए हैं।

D) इसलिए भारत की यूनिवर्सिटीज को जो सबसे पहला बदलाव करने की आवश्यकता है वह है मार्क्स के बजाए स्किल्स और अनुभव को प्राथमिकता देना और इसे किसी तरह मार्किंग सिस्टम में जोड़ना (ताकि स्टूडेंट उसे सीरियसली ले)।

2) स्टूडेंट्स के ओवरऑल डेवलपमेंट पर ध्यान देना

एक और बड़ी कमी जो हायर एजुकेशन सिस्टम में है वह है, मल्टीडिसिप्लिनरी शिक्षा का अभाव।

A) वास्तव में वहां भी एक तरह की जाति-प्रथा बन गई है, जैसे साइंस और मैथ्स के स्टूडेंट्स, सोशल साइंस और ह्यूमेनिटीज के स्टूडेंस को निचले स्तर का समझते है। (हार्ड सब्जेक्ट बनाम सॉफ्ट सब्जेक्ट की पुरानी लड़ाई)

B) ऐसा होने का कारण है अधिकतर स्कूलों में दसवीं के बाद अधिक मार्क्स वाले स्टूडेंट्स को साइंस और मैथ्स लेने का प्रेशर और कम मार्क्स वाले स्टूडेंट्स को ह्यूमेनिटीज विषयों का सुझाव।

C) इसीलिए हम लोगो को केवल अपने क्षेत्र के बात करते हुए पाते है, मतलब इंजीनियर है तो वह इतिहास को ना पढ़ेगा और न उस पर बात करेगा।

D) समाज में अपने कार्यक्षेत्र से हटकर किसी अन्य मुद्दे पर बात करने वाले व्यक्ति को फेंकू, फुरसती आदि शब्दों से नवाजा जाता है। लेकिन वास्तव में आपको सही निर्णय लेने के लिए अलग-अलग विषयों का ज्ञान होना चाहिए।

इस बात को भारत के कुछ प्रीमियम इंस्टीट्यूट जैसे IIM समझते हैं और अपने यहां इसे अभ्यास में भी लाते हैं, लेकिन इसे बड़े पैमाने पर सभी यूनिवर्सिटीज में किए जाने की आवश्यकता है।

3) शिक्षा में टेक्नोलॉजी का समावेश

भारत में हर स्तर पर शिक्षा में टेक्नोलॉजी का समावेश करने की जबरदस्त आवश्यकता है।

उदाहरण के लिए: भारत की किसी एवरेज यूनिवर्सिटी से स्टेटिस्टिक्स या मेथेमेटिक्स में पोस्टग्रेजुएट प्रोग्राम को लीजिए; कितने स्टूडेंट्स इससे सम्बंधित सॉफ्टवेयर्स MATLAB इत्यादि की जानकारी रखते होंगे?

4) सिस्टम हमारी जरूरतों के अनुसार

A) हम पहले दूसरे देशों की देखा-देखी सिस्टम बनाते हैं और फिर लोगों को उसे मानने के लिए मजबूर करते हैं। प्रश्न यह है सिस्टम के लिए लोग है या लोगों के लिए सिस्टम?

B) भारत को वोकेशनल और टेक्निकल एजुकेशन सिस्टम में विकसित देशों के सिस्टम की नकल नहीं करना चाहिए।

C) भारत में वोकेशनल एजुकेशन की कमी को पूरा करने के लिए धड़ल्ले से ऐसे संस्थान देश भर में खोल देना समस्या का समाधान नहीं है, क्योंकि वास्तविक समस्या वहां काम करने वाले ह्यूमन रिसोर्स के कमी है (इन स्किल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स में पढ़ाने और ट्रेनिंग देने वाले ट्रेंड ट्रेनर्स और टीचर्स की)।

D) तो हमें पहले टीचर ट्रेनिंग पर कार्य करने की जरूरत है।