बॉलीवुड के प्लेबैक सिंगर पापोन आज अपना 47वां बर्थडे सेलिब्रेट कर रहे हैं। पापोन असम के रहने वाले हैं और 5 तरह की भाषाओं में गाना गाते हैं। वो कभी भी सिंगर नहीं बनना चाहते थे, पर किस्मत उन्हें वहीं खीच कर ले आई जिससे वो दूर भाग रहे थे। पापोन अपनी सेकेंडरी एजुकेशन पूरी करने के बाद आर्किटेक्ट की पढ़ाई करने के लिए दिल्ली गए थे, लेकिन वहां रहते रहते पापोन को समझ में आया कि उन्हें म्यूजिक में ही अपना करियर बनाना है।
फिर पापोन ने 26 साल की उम्र में सिंगर बनने का डिसीजन लिया। इसके बाद उन्होंने 2006 में फिल्म ‘स्ट्रिंग्स- बाउंड बाय फेथ’ के सॉन्ग ‘ओम मंत्र’ से बॉलीवुड में अपने करियर की शुरुआत की। हालांकि उनको असली पहचान 2011 में आई फिल्म ‘दम मारो दम’ के सॉन्ग ‘जिएं क्यों’ से मिली। इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। पापोन एक्टिंग में भी हाथ आजमा चुके हैं। उन्होंने असम की फिल्म रोडोर सिथी से एक्टिंग डेब्यू भी किया है।
बचपन से ही म्यूजिक से नाता
हम जहां रहते हैं, वहां पर मंदिर नहीं होते हैं, कीर्तन घर होते हैं। प्रार्थना के नाम पर काफी म्यूजिक वहां होता है। मेरी फैमिली कई जनरेशन्स से उससे जुड़ी हुई है तो मेरे अंदर म्यूजिक वहां से आया होगा। फिर पिता जी फोक म्यूजिक में थे। उन्हें बिहू सम्राट बुलाया जाता था। मां क्लासिकल म्यूजिक से जुड़ी हुई थीं। म्यूजिक तो था आसपास पर मैंने म्यूजिक बहुत लेट शुरू किया। उस समय मुझे लगता था कि अगर मैं अच्छा गाऊंगा, तो लोग तो कहेंगे कि ये तो अच्छा गाएगा ही, क्योंकि ये इतने बड़े कलाकार का बेटा है। इन सारी चीजों की वजह से मैं डरता रहा और म्यूजिक छोड़ दिया। जब जवान हुआ तो समझ आया कि मैं संगीत के लिए बना हूं, तब मैंने फिर से गाना शुरू किया। तालीम और इन सारी चीजों का तो बचपन से ही माहौल था लेकिन प्रोफेशनली मैंने 26 साल की उम्र से गाना शुरू किया और मेरी पहली एलबम 30 साल में आई।
आर्किटेक्ट बनना चाहता था, स्केचिंग भी अच्छी थी
मैं म्यूजिक के डर की वजह से आर्ट में ज्यादा रहता था। इस वजह से मेरी स्केचिंग बहुत अच्छी थी। इस वजह से मैंने सोचा कि मुझे आर्किटेक्ट बनना चाहिए लेकिन मैं अचानक म्यूजिक में नहीं आया। दिल्ली में रहते हुए मुझे ये समझ में आया कि जो करने जा रहा हूं, उसमें मजा नहीं आ रहा है। दिल्ली में मैं गाना गाया करता था और वहां पर लोग कहते थे कि तुम बहुत अच्छा गाते हो। इस वजह से मेरे अंदर कॉन्फिडेंस आ गया कि मैं ये अच्छे से कर पाऊंगा। फिर एक टाइम के बाद मुझे ये समझ में आ गया कि अब सिंगिंग में ही करियर बनाना है।
म्यूजिक सीखने से पहले, म्यूजिक सुनना बहुत जरूरी होता है
मुझे लगता है कि म्यूजिक सीखने से सबसे पहले म्यूजिक सुनना बहुत जरूरी होता है। मैंने इसे बचपन से ही खूब सुना था, बचपन से ही मेरे घर में LP रिकॉर्ड्स थे। उसमें ही मेरे पेरेंट्स म्यूजिक सुनते थे। इस वजह से मैं बचपन से ही गजल का शौकीन हो गया था। जगजीत सिंह, मेहंदी हसन, गुलाम अली मैं इन सारे कलाकारों को सुनता रहता था। हिंदी से हमारी भाषा काफी अलग है, लेकिन फिर सुनते-सुनते ही हिंदी भी सही हो गई।
फिर मैं दिल्ली में 15 साल रहा तो वहां पर मेरे दोस्तों ने भी मेरी काफी मदद की और उन्होंने मुझे सही तरह से हिंदी बोलना सिखाया। अंगराग महंता मेरा असली नाम है और पापोन घर का नाम है। फिर मैं दिल्ली में था तो लोग अंगराग नहीं जानते थे। तो वो मुझे पापोन बुलाते थे। वैसे इसका कोई मतलब नहीं है।
करियर के बुरे दौर में मैं खुद को मोटिवेट करता हूं
जब मेरे साथ कुछ गलत हुआ तब मैंने हर मोड़ पर अपना ही सामना किया। अगर कुछ समझ नहीं आता तो शीशे के सामने खड़ा हो जाता था। खुद को देखता था, अच्छा लगता था, फिर आगे बढ़ता था। इस इंडस्ट्री में मैंने एक-एक दिन करके गुजारा है। मैंने कुछ प्लान नहीं किया था। बस इतना था कि जो मिला है, उसे अच्छे से करो। ऐसे करके मैं यहां तक पहुंच गया, अब लगता है कि मैंने अभी तक कुछ किया ही नहीं है।
रोज गाना और गले का इस्तेमाल करना ही रियाज होता है
रियाज में अगर हम इंडियन क्लासिकल करेंगे तो उसका अलग तरीका होता है और वेस्टर्न का अलग। मुझे लगता है कि कुछ भी गाएं तो गले का इस्तेमाल ही रियाज है लेकिन टेक्निकल करें तो उसमें काफी टाइम जाता है। रियाज आपका एक अस्त्र है। वैसे बचपन में मैंने काफी रियाज किया है। अभी तो बहुत दिनों से मैंने रियाज नहीं किया।
पहले गाने से ही सक्सेस नहीं मिल जाती
मैंने प्लेबैक सिंगर बनने का कभी सपना भी नहीं देखा था। एक गाना आया, गाया तो वो सबको अच्छा लगा लेकिन ये नहीं कहेंगे कि उसके बाद करियर शुरू हुआ। फिर समय लगा दूसरा गाना आने में, बहुत टाइम लगा फिर तीसरा गाना आने में और अभी भी टाइम ही लग रहा है।