राजस्थान विधानसभा में राज्यपाल कलराज मिश्र के अभिभाषण के दौरान सोमवार को पूरे समय हंगामा होता रहा। हंगामे पर RLP के तीन विधायकों को पूरे दिन के लिए सस्पेंड कर दिया गया।
संसदीय मामलों के एक्सपर्ट के मुताबिक राज्यपाल खुद भी अभिभाषण में बाधा पहुंचाने वाले विधायकों को सस्पेंड कर सकते हैं। राज्यपाल मिश्र ने तो ऐसा नहीं किया पर 57 साल पहले राजस्थान विधानसभा में तत्कालीन राज्यपाल ने 12 विधायकों को सदन से सस्पेंड कर दिया था।
विधानसभा के पुराने रिकॉर्ड के अनुसार 57 साल पहले 26 फरवरी 1966 को राज्यपाल ने अभिभाषण के दौरान हंगामा करने पर 12 विधायकों को सदन से सस्पेंड कर दिया था। उस वक्त भी कांग्रेस की सरकार थी और मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री थे।
संसदीय मामलों के जानकार और विधानसभा के रिटायर्ड चीफ रिसर्च ऑफिसर डॉ. कैलाश चंद सैनी का कहना है कि 26 फरवरी 1966 को तत्कालीन राज्यपाल डॉ. संपूर्णानंद बजट सत्र की शुरुआत में अभिभाषण पढ़ने विधानसभा पहुंचे थे। उस वक्त विधानसभा पुराने भवन टाउन हॉल में चलती थी। राज्यपाल का अभिभाषण शुरू होते ही विपक्षी विधायक ने कुछ अध्यादेशों पर आपत्ति जताते हुए राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान हंगामा करने लगे।
राज्यपाल ने हंगामा करने वाले विधायकों को कई बार टोका, लेकिन शांत नहीं हुए। इस पर राज्यपाल संपूर्णानंद ने 12 विपक्षी विधायकों को सदन से सस्पेंड करते हुए मार्शल से बाहर निकलवा दिया था। राज्यपाल पूरा अभिभाषण नहीं पढ़ सके, इसे पढ़ा हुआ मान लिया गया था।
इन 12 विधायकों को बाहर निकाला था
रामानंद अग्रवाल मानिकचंद सुराणा, उमरावसिंह ढाबरिया, रामकिशन, योगेन्द्रनाथ हांडा, मुरलीधर व्यास, नत्थीसिंह (भरतपुर), विट्ठल भाई, मोहनलाल सारस्वत, हरिशंकर, केदारनाथ शर्मा और दयाराम को सदन से बाहर निकाला था। ये सभी गैर कांग्रेसी विधायक थे। इनमें ज्यादातर जनसंघ से थे।
राज्यपाल के खिलाफ हाईकोर्ट गए थे विधायक
विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव खारिज होने के बाद 12 विधायकों को राज्यपाल के सस्पेंड करने के एक्शन के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। विधायक योगेंद्र हांडा बनाम राज्य के इस केस में हाईकोर्ट ने भी राहत नहीं दी थी। इस केस में 12 विधायकों ने तर्क दिया था कि राज्यपाल को विधायकों को सदन से निष्कासित करने, निकालने का कोई अधिकार नहीं था। साथ ही पूरे सत्र के लिए सस्पेंशन को भी चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने योगेंद्र हांडा बनाम राज्य के केस में 1967 में फैसला सुनाते हुए कहा था- संविधान के आर्टिकल 212 में विधानसभा को विधायकों के आचरण पर कार्रवाई का अधिकार है। मामला विधानसभा के अंदरूनी नियमन का होने और सदन की कमेटी के पास विचाराधीन होने के आधार पर कोई कमेंट नहीं किया जा सकता।
विशेषाधिकार समिति ने भी राज्यपाल को सही बताया
राज्यपाल के 12 विधायकों को सदन से निकालने के मामले में सदन की विशेषाधिकार कमेटी ने 22 सितंबर,1966 को रिपोर्ट दी। इसमें राज्यपाल के पक्ष में रिपोर्ट दी। विशेषाधिकार हनन की बात को सिरे से खारिज कर दिया।
विशेषाधिकार कमेटी ने रिपोर्ट में लिखा था- राज्यपाल संविधान के आर्टिकल 176 में किए गए प्रावधानों के तहत अभिभाषण देने आए थे। यह संवैधानिक ड्यूटी थी। इस ड्यूटी में बाधा डालने वाले विधायकों को बाहर निकालने का उनके पास संवैधानिक पावर था। विशेषाधिकार कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर 24 सितंबर 1966 को विधानसभा स्पीकर ने प्रस्ताव को खारिज कर दिया।
राज्यपाल ने विधानसभा की जगह राजभवन में अभिभाषण दिया
विधानसभा के बजट सत्र की शुरुआत राज्यपाल के अभिभाषण से होती है, राज्यपाल विधानसभा आकर अभिभाषण देते हैं। संसदीय मामलों के जानकार डॉ. कैलाश चंद्र सैनी के अनुसार 23 फरवरी 1961 को एक बार ऐसा भी हुआ जब राज्यपाल ने विधानसभा की जगह राजभवन में ही अभिभाषण करवाया। राज्यपाल ने बीमार होने के कारण केवल एक लाइन अभिभाषण पढ़ा और आगे का तत्कालीन स्पीकर ने पढ़ा।
सभी विधायक राज्यपाल के अभिभाषण के लिए विधानसभा की जगह राजभवन गए थे। राज्यपाल का राजभवन में अभिभाषण की जगह चुनने और स्पीकर के अभिभाषण पढ़ने पर विवाद भी हुआ था। विधानसभा में बहस के बाद अध्यक्ष ने यह फैसला दिया था कि राज्यपाल एक लाइन भी पढ़ दे तो अभिभाषण पढ़ा हुआ ही माना जाएगा।
विधायक सदन में पहुंच गए थे, अचानक बताया गया अब कल होगा अभिभाषण
1961 में सरदार गुरुमुख निहाल सिंह राजस्थान के पहले राज्यपाल थे। 22 फरवरी 1961 को पुरानी विधानसभा में राज्यपाल को अभिभाषण देना था, लेकिन राज्यपाल की तबीयत खराब हो गई। 22 फरवरी 1961 को सुबह 11 बजे सभी विधायक सदन में पहुंच गए थे। विधायकों को सदन में आने के बाद बताया गया कि राज्यपाल के बीमार होने की वजह से अब अभिभाषण 23 फरवरी को राजभवन में होगा।
राजस्थान में 1956 में राज्यपाल का पद बना, इससे पहले राजप्रमुख होते थे
राजस्थान में राज्यपाल का पद 1956 में बना। इससे पहले राजस्थान में राजप्रमुख का पद था। सवाई मानसिंह राजस्थान के राजप्रमुख रहे थे। सरदार गुरुमुख निहाल सिंह 1956 में राजस्थान के पहले राज्यपाल बने थे। राजप्रमुख के तौर पर सवाई मानसिंह ने छह बार अभिभाषण पढ़ा था।
अभिभाषण के दौरान एक्शन पर अब भी मतभेद
राज्यपाल के अभिभाषण को सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं माना जाता। राज्यपाल के अभिभाषण के बाद आधे घंटे ब्रेक के बाद फिर सदन शुरू होता है। इसके पीछे भी पुरानी परंपरा है। राज्यपाल के सदन से जाने के आधे घंटे बाद कार्यवाही शुरू होती है।
राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान व्यवस्था बनाने की ड्यूटी और पावर को लेकर मतभेद हैं। एक मत यह है कि राज्यपाल के पास उस वक्त हाउस को रेग्यूलेट करने का पावर है, क्योंकि वे संवैधानिक ड्यूटी निभाने अभिभाषण देने आते है। अभिभाषण में बाधा पहुंचाने पर राज्यपाल एक्शन ले सकते हैं। हाईकोर्ट ने भी कई मामलों में इसी तरह का जजमेंट दिया है।
दूसरा मत यह है कि विधानसभा में तो स्पीकर का ही पूरा कंट्रोल होना चाहिए, राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान भी स्पीकर उनके बराबर ही चैयर पर रहते हैं। ऐसे में हाउस को कंट्रोल करने और बाधा पहुंचाने पर एक्शन स्पीकर को ही लेना चाहिए। अभी तक राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान हाउस को कंट्रोल करने और कार्रवाई करने के मुद्दे पर कोई साफ प्रावधान नहीं है।
कोलकाता हाईकोर्ट ने दिया था फैसला- अभिभाषण के दौरान व्यवस्था बनाए रखना राज्यपाल की ड्यूटी
कोलकाता हाईकोर्ट ने 1966 में अपने फैसले में कहा था कि अभिभाषण के दौरान सदन में व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्यपाल की है। हाईकोर्ट का तर्क था कि क्योंकि संविधान के आर्टिकल 154 के अधीन राज्य की कार्यपालिका की शक्ति राज्यपाल में ही होती है। आर्टिकल 168 के अनुसार विधानमंडल राज्यपाल और सदन से मिलकर बनता है।