महंगाई ने काटी जेब:घरेलू बचत 17.2 लाख करोड़ थी, जो पहली छमाही में घटकर 5.2 लाख करोड़

महंगाई हमारी बचत को निगल रही है। वित्तीय वर्ष 2022-23 की पहली छमाही में देश की शुद्ध वित्तीय बचत (एनएफएस) जीडीपी की महज 4% रही, जो 2021-22 की पहली छमाही में 7.3% थी। वित्तीय वर्ष 2020-21 में वित्तीय बचत जीडीपी का 12% थी। यदि इसे राशि में परिवर्तित करें तो 2022-23 की पहली छमाही में वित्तीय बचत 5.2 लाख करोड़ रुपए रही, जो पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 में करीब 17.2 लाख करोड़ रुपए थी।

इतना ही नहीं, वित्तीय बचत के साथ ग्रॉस सेविंग्स में भी कमी आई है। ग्रॉस सेविंग्स देश की जीडीपी की 15.7% रही। यह भी 30 साल में सबसे कम है। बीते पांच वर्षों में यह जीडीपी की औसतन 20% रही है।

निवेश फर्म मोतीलाल ओसवाल ने आरबीआई के आंकड़ों का एनालिसिस कर यह रिपोर्ट जारी की है। पेट्रोल-डीजल, एफएमसीजी, ऑटोमोबाइल जैसे सभी प्रमुख उपभोक्ता सेक्टर्स में कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इसने आम आदमी की जेब पर सेंध लगाई है। रिपोर्ट के अनुसार भले ही महंगाई से वित्तीय बचत प्रभावित हुई है, लेकिन प्रॉपर्टी और सोने में होने वाली फिजिकल सेविंग जस की तस है।

वजह : महंगाई 2 वर्ष में सर्वाधिक और घरेलू देनदारियां बढ़ीं

  • घटती शुद्ध वित्तीय बचत की बड़ी वजह घटती ग्रॉस सेविंग्स व उच्च वित्तीय देनदारियां हैं। 2022-23 की पहली छमाही में घरेलू देनदारियां जीडीपी की 5% रही। बीते वर्ष में यह आंकड़ा जीडीपी का 3.9% था।
  • 2022-23 की पहली छमाही में औसत महंगाई दर 7.2% रही जो बीते 2 वर्षों में 5.8% थी। बढ़ती लागत के चलते सभी सेक्टर्स की कंपनियों ने कीमतें बढ़ाई हैं।
  • आरबीआई ने धीमी विकास दर व महंगाई के चलते कई बार ब्याज दरें बढ़ाईं। इससे मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में डिमांड घट रही है।
  • 2022-23 की तीसरी तिमाही में ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च में 5.3% की बढ़ोतरी देखने को मिली है। खपत में बढ़ोतरी महज 4.6% रही, बीती 3 तिमाहियों में सबसे कम है।

यह गिरावट अस्थाई, आगे बढ़ेगी वित्तीय बचत
रिपोर्ट में भरोसा जताया गया है कि घरेलू वित्तीय बचत की गिरावट अस्थाई है। आने वाली तिमाही में यह जीडीपी के 7-8% के स्तर तक पहुंच सकती है। अगर बचत नहीं बढ़ी तो निवेश घटेगा। अर्थव्यवस्था पर बाहरी दबाव बढ़ सकता है। इससे देश की आर्थिक रफ्तार में सुस्ती आ सकती है।