Air Pollution: वायु प्रदूषण से फेफड़ों के साथ मानसिक बीमारियों का भी खतरा; पढ़ें पूरी रिपोर्ट

वायु प्रदूषण का फेफड़ों पर तो सीधा असर पड़ता ही है, इससे मानसिक बीमारियों का भी खतरा रहता है। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है कि वायु प्रदूषण के कारण पार्किंसंस व अल्जाइमर के साथ-साथ अन्य मानसिक बीमारियों की आशंका बढ़ जाती है। इसका सीधा संबंध पीएम 2.5 से है। वैसे तो यह अध्ययन अमेरिका के क्षेत्र विशेष पर आधारित है, लेकिन इसके निष्कर्ष हमारे देश की राजधानी दिल्ली व अन्य महानगरों में रहने वाले लोगों को सावधान करते हैं। इन शहरों में प्रदूषण का दानव एक बार फिर विकराल होता जा रहा है।

क्या है पीएम 2.5 : पार्टिकुलेट मैटर अति सूक्ष्म कण होते हैं। इनका आकार एक इंच के दस हजारवें हिस्से के बराबर होता है। इनका उत्सर्जन उद्योगों, परिवहन, जंगल की आग आदि से होता है। आमतौर पर 35 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर पीएम 2.5 की मौजूदगी वाली हवा को ठीक माना जाता है, लेकिन विश्व स्वस्थ्य संगठन 10 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर के मानक की सिफारिश करता है।

इस्तेमाल किए गए 6.30 करोड़ लोगों के आंकड़े : शोधकर्ताओं ने वर्ष 2000 से 2016 तक के आंकड़ों का अध्ययन में उपयोग किया। इस अवधि में अमेरिका के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती किए गए 6,30,38,019 मरीजों की सेहत संबंधी रिपोर्ट का विश्लेषण किया गया। इलाके के पिन कोड के माध्यम से वहां के पीएम 2.5 के स्तर व मरीजों के बीच के संबंधों को समझने की कोशिश की गई। इस दौरान पाया गया कि जिन इलाकों में हवा में पीएम 2.5 की सालाना मौजूदगी प्रति पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की दर से बढ़ी वहां के लोगों को पार्किंसंस व अल्जाइमर आदि मानसिक बीमारियों के कारण पहली बार अस्पताल में भर्ती कराने का खतरा 13 फीसद ज्यादा रहा। खतरा उन इलाकों में भी बरकरार रहा, जहां पीएम 2.5 का स्तर अमेरिकी पर्यावरण एजेंसी की तरफ से तय 12 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर से कम रहा।

सेहत के हिसाब से मौजूदा मानक उपयुक्त नहीं : वू द लैंसेट प्लैनेट्री हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के लेखक व हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से जुड़े शोधकर्ता जियाओ वू ने कहा, ‘हमारे अध्ययन में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि पीएम 2.5 के बीच लंबा समय बिताना मानसिक स्वास्थ्य को दुर्बल करता है। इसके बावजूद कि पीएम 2.5 की मौजूदगी राष्ट्रीय स्तर के कम है। हालांकि, लोगों की सेहत की सुरक्षा को देखते हुए मौजूदा मानक भी उपयुक्त नहीं है।