कुछ दिन पहले यात्रा के दौरान ट्रेन के लेट होने पर भी एक हाईकोर्ट के एक जज को नाश्ता नहीं मिला। इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार प्रोटोकॉल ने रेलवे प्रबंधक को नोटिस भेजकर जवाब मांगा। अब मामले पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने दखल देते हुए न सिर्फ आपत्ति जताई है बल्कि सलाह भी दी है।
CJI ने सभी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को 2 पन्ने का लेटर लिखा है। लेटर में लिखा कि प्रोटोकॉल जजों का विशेषाधिकार नहीं है। प्रोटोकॉल ऐसा होना चाहिए जिससे आम आदमी को परेशानी न हो। जजों को दी गईं प्रोटोकॉल सुविधाओं का उपयोग उन्हें अपने विशेषाधिकार के लिए नहीं किया जाना चाहिए। ये उन्हें समाज से अलग करता है।
रेलवे कर्मियों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का क्षेत्राधिकार नहीं
CJI ने लिखा, प्रोटोकॉल अनुभाग के प्रभारी रजिस्ट्रार द्वारा क्षेत्रीय रेलवे के महाप्रबंधक को 14 जुलाई को एक पत्र भेजने की जानकारी मिली है। ये पत्र हाईकोर्ट के एक जज की इच्छा से भेजा गया है, जो अपनी पत्नी के साथ ट्रेन में यात्रा कर रहे थे। उन्होंने कहा- हाईकोर्ट के जज के पास रेलवे कर्मियों पर अनुशासनात्मक क्षेत्राधिकार नहीं है। इसलिए हाईकोर्ट का कोई अधिकारी रेलवे कर्मियों से स्पष्टीकरण नहीं मांग सकता। जाहिर है, इस मामले में हाईकोर्ट का अधिकारी जस्टिस के निर्देश का पालन कर रहा था।
विशेषाधिकार का प्रयोग बुद्धिमानी से होना चाहिए
पत्र में CJI ने कहा, न्यायाधीशों को उपलब्ध कराई गई प्रोटोकॉल सुविधाओं का उपयोग विशेषाधिकार के दावे पर जोर देने के लिए नहीं किया जाना चाहिए। जो उन्हें समाज से अलग करता है, शक्ति या अधिकार की अभिव्यक्ति के रूप में उपयोग करता है। न्यायिक अधिकार का विवेकपूर्ण प्रयोग, बेंच के अंदर और बाहर दोनों जगह, न्यायपालिका की विश्वसनीयता और वैधता, समाज के विश्वास को बनाए रखता है।
CJI ने लिखा- मैं सभी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को इस आग्रह के साथ लिख रहा हूं कि वे इन चिंताओं को सभी सहयोगियों के साथ शेयर करें। न्यायपालिका के भीतर आत्मचिंतन और परामर्श आवश्यक है। जजों को उपलब्ध कराई जाने वाली प्रोटोकॉल सुविधाओं का उपयोग इस तरह से नहीं किया जाना चाहिए। जिससे दूसरों को असुविधा हो या न्यायपालिका की सार्वजनिक आलोचना हो।