SC मनी लॉन्ड्रिंग को लेकर दाखिल रिव्यू पिटीशन को सुनेगा:अदालत कानून के दो नियमों का रिव्यू करेगी, 2022 में केंद्र को नोटिस भेजा था

सुप्रीम कोर्ट आज यानी 18 अक्टूबर को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) को लेकर दाखिल रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई करेगी। कोर्ट ने जुलाई 2022 में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट को सही ठहराया था। याचिकाकर्ताओं ने रिव्यू पिटीशन दाखिल कर कोर्ट से मामले पर दोबारा विचार करने की अपील की थी।

इससे पहले 25 अगस्त 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू पिटीशन पर सुनवाई की थी। कोर्ट ने कहा- हम काला धन और मनी लॉन्ड्रिंग रोकने के समर्थन में हैं, लेकिन हमें लगता है कि कुछ मुद्दों पर फिर से विचार करने की जरूरत है। सुप्रीम कोर्ट ने इस एक्ट के दो नियमों को लेकर केंद्र को नोटिस भेजा था।

कोर्ट ने इन दो नियमों को लेकर केंद्र को नोटिस भेजा था

  • ECIR (ED की तरफ से दर्ज FIR) की रिपोर्ट आरोपी को न देने का प्रावधान
  • खुद को निर्दोष साबित करने का जिम्मा आरोपी पर होने का प्रावधान

तब रिव्यू पिटीशन पर तात्कालीन CJI एनवी रमना, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने सुनवाई की थी। यह सुनवाई ओपन कोर्ट में हुई, यानी इसमें मीडिया और आम लोगों को कोर्ट की कार्यवाही में देखने के लिए शामिल होने दिया गया था।

कोर्ट ने ED के गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा था
सुप्रीम कोर्ट ने 27 जुलाई 2022 को PMLA के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली 241 याचिकाओं पर फैसला दिया था। इस एक्ट के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) को मिले गिरफ्तारी के अधिकार को बरकरार रखा था। कोर्ट ने कहा – मनी लॉन्ड्रिंग के तहत गिरफ्तारी मनमानी नहीं है। इसे लेकर सांसद कार्ति पी चिदंबरम ने कोर्ट में रिव्यू पिटीशन दाखिल की थी।

तीन जजों की बेंच ने सुनाया था फैसला

जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार की बेंच ने विजय मदनलाल चौधरी v/s यूनियन ऑफ इंडिया केस और 240 याचिकाओं पर फैसला सुनाया था। इसमें पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम, महाराष्‍ट्र सरकार के पूर्व मंत्री अनिल देशमुख, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी ED की गिरफ्तारी, जब्ती और जांच प्रक्रिया को चुनौती दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा था-

1. ED का गिरफ्तारी करने, सीज करने, संपत्ति अटैच करने, रेड डालना और बयान लेने के अधिकार बरकरार रखे गए हैं।

2. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायत ECIR को FIR के बराबर नहीं माना जा सकता है। ये ED का इंटरनल डॉक्यूमेंट है।

3. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ECIR रिपोर्ट आरोपी को देना जरूरी नहीं है। गिरफ्तारी के दौरान केवल कारण बता देना ही काफी है।

4. PMLA में 2018-19 में हुए संशोधन क्या फाइनेंस एक्ट के तहत भी किए जा सकते हैं? इस सवाल पर 7 जजों की बेंच मनी बिल के मामले के तहत विचार करेगी।