राहुल गांधी को कोर्ट का नोटिस सरकार बनी पक्षकार:भारत जोड़ो यात्रा में वीर सावरकर पर की थी टिप्पणी; एक सप्ताह में पूरा करने का निर्देश

वीर सावरकर पर टिप्पणी के मामले में राहुल गांधी को 11 मार्च का नोटिस मिला है। इस दौरान एफीडेविट से संबधित दस्तावेज एक सप्ताह में पूरा करने का निर्देश कोर्ट ने दिया है। आज लखनऊ के एमपी, एमएलए कोर्ट में विशेष जज हरिवंश नारायण ने सुनवाई की। कोर्ट ने प्रदेश सरकार को पक्षकार बनाने का आदेश दिया।

वहीं, मामले में याचिकाकर्ता वकील निपेन्द्र पांडेय ने बताया कि राहुल गांधी के पक्ष की तरफ से वकालत नामा दाखिल किया गया था। उसमें कोई एफीडेवेट नहीं लगाया गया था।

आधार कार्ड और फोटो भी नहीं लगाई गई थी। इसके साथ ही वकालत नामा भी नहीं सर्टिफाइड कराया गया। इसी का विरोध करते कोर्ट में कहा गया कि इससे कोर्ट को गुमराह कराने का प्रयास किया जा रहा है।

राहुल गांधी के पक्ष ने कोर्ट में कहा कि सरकार को पक्षकार बनाने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए। वकील ने कहा कि यह पहले किया जाना चाहिए था। हालांकि, कोर्ट ने प्रदेश सरकार को पक्षकार बनाने का निर्णय देकर 11 मार्च को सुनवाई करने की तारीख दी है।

इस दिन कोर्ट अब दोबारा से मामले की सुनवाई करेगी। मामले को लेकर पहले निचली अदालत में याचिका खरिज हो गई थी, लेकिन जिला जज अश्वनी कुमार त्रिपाठी ने सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया था।

1 अक्टूबर को दाखिल हुई थी याचिका

एक अक्टूबर 2023 को याचिकाकर्ता नृपेंद्र पांडेय ने एमपी/एमएलए के विशेष एसीजेएम अम्बरीष कुमार श्रीवास्तव की कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज किए जाने की मांग वाली अर्जी दी थी। इसके बाद हुई सुनवाई में ही पत्रावली को सुनवाई के लिए एमपी/एमएलए कोर्ट के विशेष न्यायाधीश की कोर्ट मे ट्रांसफर कर दिया गया था। आज कोर्ट में दोनों पक्ष की बहस के बाद नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।

यह है पूरा मामला

याचिकाकर्ता नृपेंद्र पांडेय ने एमपी/एमएलए के विशेष एसीजेएम अम्बरीष कुमार श्रीवास्तव की कोर्ट में राहुल गांधी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज किए जाने की मांग वाली अर्जी दी थी। इसमें आरोप लगाया था कि राहुल गांधी ने सावरकर के खिलाफ 17 नवंबर 2022 को अकोला महाराष्ट्र में जानबूझकर टिप्पणी की थी। राहुल गांधी ने देश के सभी स्वतंत्रता सेनानियों का अपमान किया है।

राहुल गांधी ने लगातार अंग्रेजों का पेंशनर, अंग्रेजों का नौकर, मददगार, अपनी रिहाई के लिए माफी मांगने वाला बताकर कई आरोप लगाए थे। निचली अदालत ने पहले इस अर्जी को परिवाद के रूप में दर्ज करने का आदेश दिया, लेकिन बाद में परिवाद को क्षेत्राधिकार के बाहर का बताते हुए खारिज कर दिया था। निचली कोर्ट के इसी आदेश को निगरानी याचिका के जरिए चुनौती दी गई है।