पोप के ‘सफेद झंडा उठाने’ वाले बयान से नाराज यूक्रेन:बोला- हम नहीं झुकेंगे; फ्रांसिस ने कहा था- जंग खत्म करने के लिए रूस से बात करे यूक्रेन

कैथोलिक ईसाइयों के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप फ्रंसिस ने यूक्रेन को जंग खत्म करने के लिए सफेद झंडा उठाने का साहस रखने की सलाह दी थी। इस पर वो भड़क गया है। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने आत्मसमर्पण से साफ इंकार कर दिया।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सफेद झंडे को युद्धविराम करने, बातचीत के लिए इच्छुक होने या आत्मसमर्पण करने के संकेत के तौर पर माना जाता है। जेलेंस्की ने पोप का नाम लिए बिना जंग में यूक्रेन के चर्च और धर्मगुरुओं के योगदान की सराहना की।

उन्होंने कहा- यूक्रेन के चर्च और धर्मगुरु दुआ, बातचीत और आशीर्वाद से लोगों की मदद कर रहे हैं न कि ढाई हजार किलोमीटर दूर बैठकर उन पक्षों के बीच मध्यस्थता कराने की को​शिश कर रहे हैं, जिसमें एक पक्ष जीना चाहता है और दूसरा पक्ष आपको बर्बाद करना चाहता है।

दूसरे विश्व युद्ध और हिटलर का जिक्र किया
ब्रिटिश मीडिया BBC के मुताबिक, वेटिकन में यूक्रेन के राजदूत ने पोप के बयान की तुलना उन लोगों से की जिन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के दौरान हिटलर के साथ बातचीत करने की वकालत की थी।

वहीं, यूक्रेनी विदेश मंत्री दिमित्री कुलेबा ने भी पोप पर आरोप लगाते हुए कहा कि वेटिकन ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नाजी जर्मनी का विरोध तक नहीं किया था। इस आरोप पर वेटिकन ने बयान जारी कर कहा कि उसने पर्दे के पीछे रहकर यहूदियों के लिए काम किया था।

उन्होंने कहा- हमारा झंडा पीला और नीला है। यह वह झंडा है जिसके लिए हम जीते हैं, मरते हैं और जीतते हैं। हम कभी भी कोई अन्य झंडा नहीं उठाएंगे।

पोप ने कहा था- जेलेंस्की को पुतिन से बातचीत में कोई शर्म नहीं होनी चाहिए
स्वीडिश टीवी चैनल आरएसआई को दिए इंटरव्यू में पोप ने कहा- शांति के लिए व्हाइट फ्लैग का इस्तेमाल करें। पहले सीजफायर करें और इसके बाद जेलेंस्की को पुतिन से बात करनी चाहिए। इसके लिए हिम्मत जुटानी होगी और जेलेंस्की को यह समझना होगी कि अगर वो बातचीत की पहल करते हैं तो इसमें कोई शर्म की बात नहीं है। मैं ये बात इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि अब भी हालात सुधरने की उम्मीद है।

उन्होंने कहा- जब आपको लगने लगता है कि आप हार सकते हैं या चीजें आपके फेवर में नहीं जा रही हैं तो सबसे अच्छा तरीका यही होता है कि बातचीत की पहल की जाए। मैं कहना ये चाहता हूं कि बातचीत का मतलब सरेंडर करना नहीं होता, क्योंकि इसके लिए भी हिम्मत चाहिए। दुनिया को इस जंग को रुकवाने के लिए नए सिरे से कोशिश करनी चाहिए। बदकिस्मती से ऐसा हो नहीं रहा है।