प्रेस विज्ञप्ति 4 /12 /2024
संसद में उठा मामला —
* प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस पदों पर नियुक्ति करने से पूर्व रोस्टर रजिस्टर तैयार करें , एससी/एसटी व ओबीसी को दे आरक्षण ।
* बैकलॉग व शॉर्टफाल पदों पर प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस लगाए जाने से आरक्षण समाप्त करने की साजिश –डॉ.सुमन
फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस ने देशभर के विश्वविद्यालयों के विभिन्न विभागों में एससी/एसटी व ओबीसी के खाली पड़े आरक्षित पदों पर प्रोफेसर ऑफ़ प्रैक्टिस के माध्यम से विश्वविद्यालयों /कॉलेजों व आईआईटी में 17 हजार 849 प्रोफेसरों की नियुक्ति किए जाने की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहा है कि यह विश्वविद्यालयों /कॉलेजों /संस्थानों द्वारा केंद्र सरकार की आरक्षण नीति को समाप्त करने की गहरी साजिश बताया है । फोरम का कहना है कि यूजीसी द्वारा शिक्षकों के पदों पर नियुक्ति के नये नियम प्रोफेसर आफ प्रैक्टिस लागू कर उच्च शिक्षा में युवा शोधार्थियों को आने से रोकना है । फोरम ने इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के चेयरमैन प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार को पत्र लिखकर मांग की है कि जिन विश्वविद्यालयों के विभागों में आरक्षित वर्गों के उम्मीदवारों के पदों पर नियुक्ति होनी है उन पदों पर नियुक्ति के नये नियम लागू कर प्रोफेसर ऑफ़ प्रैक्टिस के माध्यम से प्रोफेसर न लगाए जाएँ। इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग को सभी विश्वविद्यालयों के लिए सर्कुलर जारी करना चाहिए ताकि आरक्षित पदों पर सामान्य वर्ग के लिए प्रोफेसर आफ प्रैक्टिस के द्वारा नियुक्ति न की जाए।
फोरम के चेयरमैन डॉ.हंसराज सुमन ने बताया है कि राजसभा के अतारांकित प्रश्न संख्या –176 में श्री अमित कुमार यादव के प्रश्न का उत्तर देते हुए शिक्षा मंत्रालय के राज्यमंत्री डॉ.सुकान्त मजूमदार ने 27 नवम्बर 2024 को उत्तर देते हुए बताया कि इसमें विश्वविद्यालयों में नियुक्त प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस की संख्या –15325 , कॉलेजों में नियुक्त प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस की संख्या — 2444 व आईआईटी में नियुक्त प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस की संख्या — 80 है । उनका कहना है कि यह यूजीसी की एक योजना के तहत प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के द्वारा प्रोफेसरों की नियुक्ति की गई है। प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस में किसी भी तरह की शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं होती बल्कि उसके कार्य क्षेत्र की विशेषज्ञता के आधार पर चयन किया जाता है । बता दें कि जिन विश्वविद्यालयों के विभागों / कॉलेजों में प्रोफेसर के पद एससी /एसटी व ओबीसी के बन रहे थे उन्हीं पदों पर वहाँ के विश्वविद्यालय प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के तहत प्रोफेसरों की नियुक्ति कर रहे है। यहाँ भारत सरकार की आरक्षण नीति की सरेआम अवहेलना की जा रही है।
उनका कहना है कि यदि प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस की योजना को विश्वविद्यालयों में लागू करना है तो सबसे पहले प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के लिए उन विश्वविद्यालयों / कॉलेजों / शैक्षिक संस्थानों को रोस्टर रजिस्टर तैयार करना चाहिए। क्योंकि पिछले दो दशकों से एससी/एसटी व ओबीसी के शिक्षकों का बैकलॉग व शॉर्टफाल भी नहीं भरा गया है। अब उनके रिक्त पदों को भरने के लिए जब विज्ञापन दिए जा हैं तो उन पर विश्वविद्यालय प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के नये नियम के तहत प्रोफेसर लगा रही है। यह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की 2006 की रोस्टर और आरक्षण संबंधी गाइडलाइंस के बिलकुल विरुद्ध बताया है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपनी 2006 की गाइडलाइन के तहत ही विश्वविद्यालयों / शिक्षण संस्थानों में प्रोफेसर के पदों पर आरक्षण दिया था लेकिन विश्वविद्यालयों द्वारा इन पदों को प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के द्वारा भरा जा रहा है ।
डॉ. हंसराज सुमन ने यह भी बताया है कि प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस नियुक्ति के संबंध में विद्यार्थी समुदाय से किसी प्रकार का कोई फीडबैक नहीं लिया गया , विश्वविद्यालय अपनी मर्जी से चहेते अभ्यर्थियों की नियुक्ति कररहे हैं । उन्होंने यूजीसी चेयरमैन से यह मांग की है कि वह सभी केंद्रीय , राज्य व मानद विश्वविद्यालयों के कुलपति /कुलसचिव को यह सर्कुलर जारी करे कि जब भी वह प्रोफेसर ऑफ प्रेक्टिस के तहत नियुक्ति करे तो उसमें सभी वर्गों एससी/एसटी , ओबीसी व विकलांग कोटे के उम्मीदवारों को भी प्रतिनिधित्व दिया जाए । साथ ही नियुक्ति करते समय शिक्षकों के रोस्टर रजिस्टर का पालन किया जाए । उन्होंने यह भी मांग की है कि प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के पदों को विश्वविद्यालय अलग से बनाए , विश्वविद्यालयों / कॉलेजों व संस्थानों में स्वीकृत पदों से अलग पद पर प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस में नियुक्ति की जाए ।
डॉ. हंसराज सुमन
चेयरमैन – फोरम ऑफ एकेडेमिक्स फॉर सोशल जस्टिस
फोन – 9717114595