होली पर संस्कृति व संस्कारों के साथ पर्यावरण संरक्षण की भी चिंता होगी। उत्तर प्रदेश के उन्नाव, जालौन और मध्य प्रदेश के ग्वालियर समेत देशभर में कई जगहों पर हरियाली को नवजीवन देने के लिए गोकाष्ठ से होलिका दहन की तैयारी है। इसके लिए बड़े पैमाने पर गोकाष्ठ तैयार किए जा रहे हैं। कई संस्थाएं जागरूकता अभियान चला रही हैं।
होली से एक दिन पूर्व गांव-गांव में होलिका दहन होता है। अनुमानत: एक स्थान पर दो से तीन क्विंटल लकड़ी जलाई जाती है। कुछ जगहों पर इसके लिए हरे-भरे पेड़ भी काट दिए जाते हैं, जबकि इन्हें तैयार होने में सालों लग जाते हैं। पर्यावरण को इसका बड़ा नुकसान है। आक्सीजन के बड़े स्नोत तो खत्म होते ही हैं, लकड़ी जलाने पर इसके धुएं से निकलती कार्बन मोनोआक्साइड, कार्बन डाइआक्साइड, सल्फर नाइट्रेट एवं नाइट्रोजन आक्साइड जैसी गैसें स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती है।
वहीं, एक जगह होलिका दहन में लगभग एक क्विंटल गोकाष्ठ की जरूरत होती है, जिसकी कीमत 500 रुपये है। पर्यावरण के लिहाज से भी यह अहम है। केवल दो फीसद नमी होने के कारण धुआं बहुत कम होता है और कार्बन मोनोआक्साइड गैस नहीं निकलती है। इसके धुएं में हल्की कार्बन डाइआक्साइड और नाइट्रेट होती है। यदि देसी घी, कपूर, लौंग मिला दिए जाएं तो इन गैसों का भी प्रभाव खत्म हो जाता है।
चला रहे जागरूकता अभियान
कई संस्थाएं जागरूकता अभियान चला रही हैं। उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में सहजनी स्थित गोकाष्ठ निर्माता गौरी इंटरप्राइजेज के संचालक रमाकांत द्विवेदी बताते हैं कि गोकाष्ठ से होलिका दहन के लिए लोगों को प्रेरित किया जा रहा है। नवयुग जन चेतना सेवा संस्थान भी इस कार्य में जुटा है। हिंदू जागरण मंच के ग्वालियर प्रभारी विमल द्विवेदी इसके लिए जागरूक कर रहे हैं।
घर-घर देंगे कंडे-गोकाष्ठ
उप्र के जालौन के रामपुरा नगर पंचायत अध्यक्ष शैलेंद्र सिंह के मुताबिक इस बार होलिका दहन के लिए घर-घर गाय के गोबर के उपले एवं गोकाष्ठ उपलब्ध कराएंगे। इसके बदले प्रति घर से 21 रुपये शुल्क लिया जाएगा। इस आय से गोवंश के चारे-पानी का प्रबंध किया जाएगा।
ऐसे बनता है: मशीन में गोबर डालने के बाद उसका पानी अलग हो जाता है और 1.5 किलो वजन का दो फीट लंबा गोकाष्ठ निकलता है। सूखने के बाद एक किलो का रह जाता है।
कई राज्यों में जा चुकी हैं मशीनें
ग्वालियर की समाजसेवी ममता कुशवाह ने इसके लिए मशीन बनाई है। वह बताती हैं कि उनकी बनाई मशीनें कानपुर, जयपुर, मुंबई, सागर, कटनी, ¨भड, मुरैना, सबलगढ़, रायसेन, दिल्ली तक भेजी जा चुकी हैं। एक मशीन की कीमत 60 हजार रुपये है। इसे चलाने में दिनभर में करीब 100 रुपये की बिजली की खपत होती है।
गोकाष्ठ से होलिका दहन हो तो बचेंगे पेड़
करीब सात हजार गोवंश वाली मप्र के ग्वालियर नगर निगम की लालटिपारा गोशाला भी इस दिशा में काम कर रही है। इसकी देखरेख करने वाले संत अच्युतानंद महाराज ने बताया कि अंतिम संस्कार के अलावा होलिका दहन में भी बड़ी संख्या में पेड़ों को नष्ट कर दिया जाता है, जबकि गोकाष्ठ इसका बड़ा विकल्प है। एक हजार क्विंटल गोकाष्ठ से करीब 500 पेड़ों को सिर्फ होलिका दहन के दिन बचाया जा सकता है।
ग्वालियर के नगर निगम आयुक्त शिवम वर्मा ने बताया कि हमारी गोशाला में 7000 गाय होने से करीब 50 हजार से 70 हजार किलो गोबर निकलता है। जितने गोबर के गोकाष्ठ बन सकते हैं, हम बनवा लेते हैं। बचे गोबर से खाद बनाने का कार्य किया जाता है। गोशाला में गोबर गैस प्लांट भी संचालित होता है।