इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ग्रामीण इलाकों और छोटे शहरों व कस्बों में कोरोना संक्रमण के फैलने पर चिंता जताते हुए कहा कि सामुदायिक व प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में अभी भी कोरोना से पीड़ित मरीजों के उपचार की सुविधाएं नहीं हैं। लोग इलाज के अभाव में मर रहे हैं। कोर्ट ने राज्य सरकार से छोटे कस्बों, शहरों और गांवों में सुविधाओं तथा टेस्टिंग का ब्यौरा मांगा है। कोराना पीड़ित मरीजों को जीवन रक्षक दवाएं और सही इलाज न मिलने की शिकायतों की जांच के लिए कोर्ट ने 48 घंटे के भीतर हर जिले में कोविड शिकायत प्रकोष्ठ खोलने के आदेश दिए हैं। इसमें मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट स्तर का न्यायिक अधिकारी, मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर व एडीएम रैंक के एक प्रशासनिक अधिकारी इस कमेटी के सदस्य होंगे। ग्रामीण इलाकों में तहसील के एसडीएम से सीधे शिकायत की जा सकेगी जो शिकायतों को शिकायत समिति के समक्ष भेजेंगे।
कोविड 19 महामारी की रोकथाम और इंतजामों की निगरानी कर रही न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजीत कुमार की पीठ ने बहराइच, बाराबंकी, बिजनौर, जौनपुर और श्रावस्ती जैसे छोटे जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं और कोरोना से लड़ने के लिए आवश्यक जीवन रक्षक सुविधाओं का ब्यौरा अगली तारीख पर प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में की गई टेस्टिंग का भी रिकॉर्ड तलब किया है। अगली सुनवाई 17 मई को होगी।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पिछले निर्देशों के पालन में अपर सॉलिसिटर जनरल द्वारा प्रस्तुत हलफनामे को असंतोषजनक करार देते हुए 27 अप्रैल को हाई कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुसार अस्पतालों द्वारा मेडिकल बुलेटिन जारी करने, ऑक्सीजन व जीवन रक्षक दवाओं की उपलब्धता से संबंधित जानकारियां हलफनामे में नहीं दी गई हैं। कोर्ट ने कोविड मरीजों को अस्पतालों में उपलब्ध कराए जा रहे पौष्टिक आहार और कोर्ट ने कोरोना से हुई मौतों का तारीखवार ब्यौरा उपलब्ध न कराने पर भी नाखुशी जाहिर की है। एएसजीआइ ने अगली सुनवाई पर आदेशों के अनुपालन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने का कोर्ट को आश्वासन दिया।
दिव्यांगजन को वैक्सीन लगाने के बारे में दिए गए आदेश के अनुपालन में राज्य सरकार का कहना था कि वह केंद्र सरकार की गाइडलाइन का ही पालन कर रही है। केंद्र की गाइडलाइन में इस बारे में कोई निर्देश दिया गया है। इसी प्रकार से 45 से कम आयु के लोगों को वैक्सीन लगवाने के लिए पंजीकरण अनिवार्य करने के मामले में कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा है कि अशिक्षित लोगों और मजदूर जो स्वयं अपना ऑनलाइन रिजस्ट्रेशन करने में सक्षम नहीं हैं को वैक्सीन लगाने के मामले में क्या योजना है। कोर्ट ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि दिव्यांग जनों को वैक्सीन लगाने के लिए खुद की नीति बनाने में उसे क्या दिक्कत है।
डीएम मेरठ की जांच रिपोर्ट पर कोर्ट ने फिर जताया असंतोष : मेरठ में ऑक्सीजन की कमी से हुई 20 मौतों के मामले में डीएम मेरठ की जांच रिपोर्ट पर कोर्ट ने असंतोष जताया है। पीठ ने मेडिकल कॉलेज के प्रिंसपल की ओर से दी गई सफाई पर भी असंतोष जताया। इनका कहना था कि जो मौते हुई हैं वह संदिग्ध कोरोना मरीजों की हुई हैं क्योंकि उनकी एनटीपीसीआर टेस्ट रिपोर्ट नहीं आई थी। इस पर कोर्ट का कहना था कि यदि संदिग्ध मरीजों की मौत पर उनका शव परिजनों को सौंप दिया जाना उचित कदम नहीं है। यदि किसी भी मरीज की मौत टेस्ट रिपोर्ट आने से पहले हो जाती है और उसे इंफ्लुएंजा जैसे लक्षण हैं तो उसे संदिग्ध कोरोना मौत मानकर ही प्रोटोकॉल के तहत अंतिम संस्कार किया जाए।
गृह सचिव ने दाखिल किया हलफनामा : गृह सचिव ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि पांच मई से ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू किए गए सर्वे के तहत दो लाख 92 हजार से अधिक घरों का सर्वे किया गया है। 4,24,631 लोगों में कोरोना जैसे लक्षण पाए गए हैं। इनको दवाओं की किट मुहैया कराई गई है।
सन हास्पिटल पर उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक : कोर्ट ने लखनऊ के सन हास्पिटल के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के तहत उत्पीड़नात्मक कार्रवाई करने पर रोक लगा दी है। अस्पताल की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया कि उसने प्रशासन की ओर से जारी कारण बताओ नोटिस का जवाब दिया है मगर उसे कोई रिसीविंग नहीं दी गई और बिना विचार किए मुकदमा दर्ज करा दिया गया जबकि अस्पताल में एक व दो मई को कोई ऑक्सीजन की सप्लाई नहीं की गई थी।
युद्ध स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाने के निर्देश : कोर्ट ने शहरी और ग्रामीण इलाकों में तेजी से फैल रहे संक्रमण को देखते हुए प्रदेश सरकार से वैक्सीन की खरीद का काम जल्दी करने और युद्ध स्तर पर टीकाकरण अभियान चलाने के लिए कहा है। हालांकि कोर्ट ने सरकार द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
मुआवजे पर विचार करे सरकार : चुनाव आयोग की ओर से अधिवक्ता तरुण अग्रवाल ने पंचायत चुनाव के दौरान कोविड गाइडलाइन का पालन करवाने के लिए नियुक्त नोडल अफसरों की सूची देने के लिए और समय की मांग की। इसी प्रकार से उन्होंने चुनाव के दौरान ड्यूटी करने वाले कर्मचारियों की मौतों का ब्यौरा देने के लिए भी और समय की मांग की। वकीलों ने कोर्ट से कहा कि सरकार को चुनाव ड्यूटी के दौरान संक्रमण के खतरे की जानकारी की थी। किसी ने स्वेच्छा से चुनाव ड्यूटी नहीं की बल्कि शिक्षकों, अनुदेशकों और शिक्षामित्रों से जबरदस्ती चुनाव ड्यूटी कराई गई। इसलिए सरकार को एक करोड़ रुपये मुआवजा कोराना से मरने वाले इन कर्मचारियों को देना चाहिए। कोर्ट ने सरकार और चुनाव आयोग को मुआवजे की राशि पर फिर से विचार करने का निर्देश दिया है।
जस्टिस वीके श्रीवास्तव की मौत की जांच के लिए कमेटी गठित : इलाहाबाद हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति वीके श्रीवास्तव की कोरोना से मौत और उनके इलाज में लापरवाही की शिकायत पर कोर्ट के निर्देश पर सरकार की ओर से इलाज संबंधी दस्तावेज अदालत में सौंपे गए। कोर्ट ने एसजीपीजीआइ के सीनियर पनमनोलॉजिस्ट और हाई कोर्ट लखनऊ बेंच के एक सीनियर एडवोकेट और सरकार के सचिव स्तर के अधिकारी की संयोजक के रूप में नियुक्ति कर जांच कराने का निर्देश दिया है। लखनऊ बेंच के सीनियर रजस्ट्रिरि को कमेटी के तीनों सदस्यों केबीच तालमेल बैठाने का निर्देश दिया है। कोर्ट ने दो सप्ताह में जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।जांच समिति का गठन तीन दिन में करने का निर्देश दिया है।