किसने दिया सियासी रगड़ाई इंस्टीट्यूट का आइडिया?:स्विस टेंट पर क्यों उठे सवाल; चर्चा में सरकारी कैलेंडर का गणित

जम्बूरी के लिए स्काउड गाइड के मुख्यालय से निकला एक आदेश सियासी और प्रशासनिक हलकों में खूब चर्चित हो रहा है। ये वाकया 31 दिसंबर को रखी गई बैठक से जुड़ा था। बैठक में भाग लेने वाले अफसरों और जिम्मेदार पदाधिकारियों के रहने की व्यवस्था स्विस टेंट में करने का आदेश में दिया गया। किसी ने इसे नए साल के जश्न ने जोड़ा, लेकिन आदेश पर दूसरी चर्चा एक कमेटी को लेकर है।

जम्बूरी में एक आईएएस अफसर को गर्म पानी व्यवस्था समिति के अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई, यह पद पहली बार सुना गया। स्विस टेंट का जिक्र आया तो सियासी हलकों में प्रदेश की पूर्व मुखिया के राज का वाकया ले आए। जब प्रदेश की पूर्व मुखिया का पहला कार्यकाल था तो ,ऐसे टेंट को लेकर मौजूदा सत्ताधारियों ने खूब सवाल उठाए थे।

बड़े नेता क्यों हुए नाराज ?
सत्ताधारी पार्टी में ढाई साल से ग्रासरूट स्तर पर संगठन के नाम पर कुछ नहीं था। नए प्रभारी के आने के बाद अब किस्तों में ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्तियां हो रही हैं। अब सत्ताधारी पार्टी में कोई फैसला हो और नाराजगी न हो, ऐसा असंभव है।

पार्टी के कुछ जानकारों में चर्चा है कि प्रदेश में संगठन में बांटे जा रहे पदों को लेकर चुनाव प्राधिकरण के मुखिया से राय नहीं ली गई, वे इसी बात पर नाराज बताए जा रहे हैं।

एक धड़े के नेताओं का तर्क है कि मेंबर तक ही उन्हें लूप में लेना था, अब जरूरत नहीं है। अब नेताओं के अपने तर्क हैं, लेकिन चुनाव करवाने वाले नेताजी की नाराजगी साधारण बात नहीं है।

किसने दिया सियासी रगड़ाई इंस्टीट्यूट का आइडिया
प्रदेश के मुखिया ने साफ संकेत दे दिया है कि फिलहाल वे राजनीति से रिटायरमेंट के मूड में नहीं हैं। सरकार के चार साल पूरे होने पर मुखिया ने रिटायरमेंट के बाद पॉलिटिकल क्लास लेने की इच्छा जताई थी तबसे यह सवाल बना हुआ था कि यह टाइम कब आएगा?

प्रभावशाली नेताओं के बीच मुखिया के रिटायरमेंट और पॉलिटिकल क्लास की नए सिरे से चर्चा हो रही थी। तभी एक प्रभावशाली नेता ने तंज कसते हुए आइडिया दिया कि पहले सियासी रगड़ाई का इंस्टीट्यूट खोल दीजिए, उसमें उनकी क्लास बेहतर रहेगी, हो सके तो सिलेबस भी उन्हीं से डिजाइन करवा लेना।

एक नेता ने रगड़ाई शब्द को लेकर भी लंबा डिस्कशन किया, बाकायदा डिक्शनरी खंगाली गई और शब्द का रोचक अर्थ भी बता दिया। फिलहाल, प्रदेश की सत्ताधारी पार्टी के नेताओं के संदर्भ में डिकोड करके देखिए, मजेदार समीकरण बनते दिखेंगे।

केंद्रीय मंत्रिमंडल फेरबदल में प्रदेश के दो नेताओं को उम्मीद
केंद्रीय मंत्रिमंडल में फेरबदल की चर्चाएं एक बार फिर शुरू हो गई है। ऐसे में सियासी जानकार तरह तरह के अनुमान लगा रहे हैं। दो राज्यसभा सांसद और एक लोकसभा सांसद केंद्रीय मंत्री बनने के दावेदारों में हैं।

पूर्वी राजस्थान के क्रांतिकारी छवि वाले नेता का नाम भी कई दिनों से चल रहा है। पहले अलग पार्टी बनाकर वापस घर वापसी करने वाले वरिष्ठ नेता के समर्थक भी उम्मीद लगाए बैठे हैं।

एक लोकसभा सांसद के शुभचिंतक भी दिल्ली से फील्ड तक चर्चाएं कर रहे हैं। मंत्री बनने में किसका नंबर आएगा यह तो शपथ के बाद ही साफ हो सकेगा क्योंकि मौजूदा केंद्र सरकार में जिसकी चर्चा होती है वह होता नहीं है, बाद में चौंकाने वाला नाम ही सामने आता है। जब तक फैसला नहीं होता तब तक दिल बहलाने के लिए गालिब ख्याल अच्छा है वाली बात तो है ही।

नए साल के सरकारी कैलेंडरों का गणित क्यों चर्चा में?
साल 2023 सबसे खास है, क्योंकि चुनावी साल है तो इससे खास क्या होगा? नए साल के लिए इस बार सरकार की छवि चमकाने वाले विभाग ने बड़ी संख्या में कैलेंडर छपवाए हैं। इस कैलेंडर में प्रदेश के मुखिया और उनकी फ्लैगशिप योजनाओं का प्रचार है।

आइडिया तो अच्छा है लेकिन बात इतनी सीधी नहीं है। एक व्हिसल ब्लोअर ने कैलेंडर की पड़ताल की तो कई रोचक फैक्ट सामने आ गए। बताया जाता है कि 91 लाख कैलेंडर छपे हैं। इतने कैलेंडर तो राजस्थान के लगभग हर परिवार तक पहुंच सकते हैं। अब कैलेंडर बांटने के एक्शन प्लान का इंतजार है।

संविधान पार्क और अंबेडकर
राजस्थान के राजभवन के नाम पर रिकॉर्ड बन गया है। संविधान पार्क बनाने वाला यह पहला राजभवन बन गया है। संविधान पार्क में पूरे संविधान को समझाया है और इसे बनाने वाले नेताओं को भी उसी हिसाब से जगह दी गई है।

गांधी, पटेल, नेहरू से लेकर अकबर का दरबार और टीपू सुल्तान को भी जगह दी गई है। संविधान पार्क को घूमने के बाद कइयों को एक बात खटकी, वह थी बाबा साहब भीमराव अंबेडकर को समुचित जगह नहीं मिलने की।

अंबेडकर को संविधान की प्रति देते हुए एक कलाकृति में जगह दी गई है। इसे लेकर अब सवाल उठाए जा रहे हैं, फिलहाल किसी ने मुखर होकर बात नहीं उठाई है लेकिन कई स्तरों पर इसकी चर्चा जरूर शुरू हो गई है।

एक बड़े नेता ने इस पर तंज के अंदाज में कमेंट किया कि संविधान पार्क में अंबेडकर को वही जगह दी गई हैं, जितनी आज की राजनीति में नैतिकता को दी जाती है।

जानकारी छिपाने वाले विधायक को नोटिस की तैयारी
मोटा कर्ज लेकर चुनावी हलफनामे में जानकारी नहीं देना सत्ताधारी पार्टी के एक विधायक को भारी पड़ने वाला है। राजधानी से ताल्लुक रखने वाले विधायक के खिलाफ कोर्ट से फैसला आ चुका है।

करोड़ों के कर्ज की जानकारी चुनावी एफिडेविट में नहीं देने का मामला अब चुनाव आयोग तक पहुंच गया है। विधायक को नोटिस देने की तैयारी है।

विपक्षी पार्टी में अपनी-अपनी लॉबिंग
विपक्षी पार्टी में चुनावी साल में संगठन के बदलावों को लेकर लॉबिंग शुरू हो गई है। हर नेता अपने अपने समीकरणों के हिसाब से भविष्यवाणी करता दिख जाएगा। संगठन का मुखिया बनने के लिए आधा दर्जन नेताओं ने एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है, सबके अपने अपने समीकरण हैं।

एक केंद्रीय मंत्री मौजूदा स्थिति को ही बरकरार रखने के पक्ष में हैं, वे अपना नरेटिव चला रहे हैं। संगठन पर नजर रखने वाले और विचार परिवार से जुड़ा एक खेमा युवा सांसद के लिए पैरवी करने में जुटा है। एक प्रभावशाली नेता पार्टी में घर वापसी करने वाले राज्यसभा सांसद के लिए लॉबिंग कर रहे हैं। गोडवाड़ इलाके से आने वाले एक प्रभावशाली नेता के समर्थक भी दिल्ली में सक्रिय हैं।

चुनावी साल में अफसरों की च्वाइस, ब्यूरोक्रेसी में बड़े बदलाव की एक्सरसाइज
मौजूदा साल चुनावी साल है, इसलिए साल की शुरुआत में ही इसका अहसास होने लगा है। ब्यूरोक्रेसी में बड़े बदलाव की अंदरूनी तैयारी शुरू हो चुकी है।

सत्ता के बड़े ऑफिस ने सियासी होमवर्क करना शुरू कर दिया है। रिजल्ट ओरिएंटेड अफसरों की अदला बदली का गणित बैठाया जा रहा है।

अफसरों को उनकी रुचि भी पूछी जा रही है, वे कहां अच्छा रिजल्ट दे सकते हैं, इन सब बातों पर अभी से होमवर्क चल रहा है। संकेत साफ हैं, बदलाव होगा लेकिन इसे बाय च्वाइस बनाने की कोशिश हो रही है।