2024 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्षी दल लगातार रणनीति तैयार कर रहे हैं। I.N.D.I.A गठबंधन की 19 दिसंबर को दिल्ली में बैठक हुई। इसमें 28 दल शामिल हुए। बसपा इसमें शामिल नहीं हुई। क्योंकि, बसपा I.N.D.I.A गठबंधन का हिस्सा नहीं है। साथ ही, मायावती पहले ही अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी हैं। बावजूद इसके बैठक में बसपा की चर्चा हुई।
इस चर्चा पर बसपा बिफर पड़ी है। पहले भतीजे आकाश आनंद ने ट्वीट कर निशाना साधा। उन्होंने कहा, ”बैठक में कुछ लोग बीजेपी से कम और बसपा से ज्यादा डरे हुए हैं।” फिर मायावती ने इसे लेकर सभी दलों को नसीहत दे डाली। उन्होंने कहा कि बेफिजूल कोई भी टीका-टिप्पणी करना उचित नहीं है। क्योंकि, कब किसको किसकी जरूरत पड़ जाए। कुछ भी कहा नहीं जा सकता है।
मायावती और उनके भतीजे आनंद के बयान के बाद अब सवाल उठ रहा है कि क्या I.N.D.I.A गठबंधन के दल BJP से ज्यादा बसपा से घबराए हुए हैं? अगर ऐसा है, तो इसके पीछे क्या वजह है?
गुरुवार को मायावती ने I.N.D.I.A गठबंधन को लेकर बड़े बयान दिए। कहा कि विपक्ष के गठबंधन में बसपा सहित जो भी विपक्षी पार्टियां शामिल नहीं हैं। उनके बारे में किसी को भी बेफिजूल कोई भी टीका-टिप्पणी करना उचित नहीं है।
इससे इनको बचना चाहिए, मेरी इनको यही सलाह है। क्योंकि, भविष्य में देश और जनहित में कब किसको किसकी जरूरत पड़ जाए। यह कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। फिर ऐसे लोगों को और पार्टियों को भी काफी शर्मिंदगी उठानी पड़े। ये ठीक नहीं है।
दरअसल, मायावती का ये बयान उन खबरों के बाद आया है, जिसमें I.N.D.I.A गठबंधन की बैठक में सपा के राष्ट्रीय महासचिव प्रोफेसर राम गोपाल यादव ने कांग्रेस से इस गठबंधन में बसपा के शामिल होने की दशा में सपा के गठबंधन से बाहर होने की बात कही थी।
इसके बाद से मायावती सीधे सपा पर हमलावर हैं। इस बयान से उन्होंने एक संकेत भी दे दिया है। वह यह है कि बसपा भले ही अभी किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं है। लेकिन चुनाव के बाद अलायंस को लेकर संभावनाएं बरकरार हैं।
आकाश आनंद का गठबंधन को लेकर दिया बयान
हाल ही में मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया है। यूपी और उत्तराखंड को छोड़कर बाकी देश के सभी राज्यों की जिम्मेदारी आकाश देख रहे हैं। वह बसपा के यंग नेशनल कोऑर्डिनेटर हैं। I.N.D.I.A गठबंधन की बैठक के बाद आकाश आनंद ने सोशल मीडिया अकाउंट X पर लिखा-
”बैठक में कुछ लोग बीजेपी से कम और बसपा से ज्यादा डरे हुए हैं। ऐसा कुछ साथियों और मीडिया रिपोर्ट से पता चला है। भाजपा का खौफ दिखाकर वोट लेने वाली नफरत की राजनीति में बसपा विश्वास नहीं करती। एक वक्त कांग्रेस का ख़्वाब दिखाकर कुछ लोग सत्ता पर काबिज हुए थे। उसका खामियाजा आज तक देश भुगत रहा है।”
आकाश ने आगे लिखा है, ”कांशीराम साहब और बहनजी की मेहनत से खड़े हुए बहुजन समाज के सम्मान और अधिकार की लड़ाई के सफल नतीजे बड़े पैमाने पर दिख रहे हैं। दलित समाज का अनदेखी करने का दम आज किसी राजनीतिक दल में नहीं है। देश के वर्तमान हालात को समझाते हुए बसपा संविधान और लोकतंत्र को बचाने के लिए कोई समझौता नहीं करेगी।”
इस ट्वीट से आकाश ने भी यह भी साफ किया है कि बसपा फिलहाल किसी गठबंधन का हिस्सा होने नहीं जा रही है और अकेले ही चुनाव लड़ेगी।
मायावती और आकाश ने आखिर सपा को ही क्यों घेरा?
राजनीतिक जानकार इसकी दो वजह बताते हैं। पहली, यूपी में बसपा और सपा के बीच पुराना टकराव है। अखिलेश अक्सर अपने बयानों में बसपा को भाजपा की B-पार्टी कहते हैं। वहीं, मायावती के बयानों में भी सपा पर निशाना रहता है। दूसरी वजह राम गोपाल यादव की बात, जो कि बसपा को तीर की तरह चुभ गया है।
यही वजह है कि आकाश अब यह बताने में जुटे हैं कि बसपा इतनी महत्वपूर्ण है कि सपा उससे घबराई है। वहीं, मायावती कह रहीं हैं कि राजनीति में कब किसको किसकी जरूरत पड़ जाए, इसका कुछ पता नहीं है। राजनीतिक जानकार कहते हैं कि मायावती का बयान का इशारा इस तरफ भी है कि भले ही उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया हो, लेकिन अगर जरूरत पड़ी तो वह अपने फैसले पर दोबारा विचार कर सकती हैं।
राजभर बोले- सपा को चुनाव लड़ने वाले लोग नहीं मिलेंगे
दैनिक भास्कर ने इस मसले पर सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से बातचीत की। उन्होंने कहा कि आकाश ने सही कहा है। 2024 के चुनाव से पहले I.N.D.I.A गठबंधन से कुछ दल ‘आउट’ होंगे, तो कुछ दल ‘इन’ होंगे। इसमें सपा शामिल है। सपा को चुनाव लड़ने वाले लोग नहीं मिलेंगे। बता दें कि राजभर ने अखिलेश के साथ मिलकर 2022 में विधानसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि, जुलाई में वह भाजपा गठबंधन में शामिल हो गए।
सपा ने आखिर बसपा को लेकर ऐसा क्यों कहा…अब ये समझिए
वर्तमान में बसपा के उत्तर प्रदेश में 10 सांसद हैं, जबकि सपा के अब केवल 3 सांसद ही रह गए हैं। वहीं, कांग्रेस के पास केवल रायबरेली की सीट है। बसपा ने अभी तक लोकसभा प्रभारी की भी अपनी घोषणा नहीं की है, जबकि बसपा चुनाव से 6 महीने पहले लोकसभा प्रभारी घोषित कर देती है। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है।
हालांकि, अब बसपा की यह रणनीति का भी हिस्सा हो सकता है कि इस बार वह उम्मीदवारों के नाम की घोषणा तब करें। जब सपा या अन्य दल अपने उम्मीदवार घोषित कर दें। इसके बाद जातीय समीकरणों और क्षेत्रीय समीकरणों के आधार पर बसपा उम्मीदवार उतार सकती है। यही समाजवादी पार्टी की सबसे बड़ी चिंता है। खासतौर से उन सीटों पर जहां मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
अगर एक सीट पर एक ही जाति या बिरादरी के उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरेंगे, तो उससे वोट का बंटवारा होगा और उसका फायदा बीजेपी को मिल सकता है।
इसके अलावा, सपा यह बार-बार कहती भी आई है कि जब उसने 2019 में बसपा के साथ गठबंधन किया था। तब सपा का वोट तो बसपा को शिफ्ट हुआ। मगर बसपा का वोट सपा को शिफ्ट नहीं हुआ। जिसके चलते बसपा को 10 सीट मिल गई और सपा केवल 5 सीटों पर सिमट कर रह गई। यह भी एक बड़ी वजह है कि सपा इस बार लोकसभा चुनाव में बसपा से दूरी बनाए हुए है और दूसरों को भी यही सलाह दे रही है।