Jammu Kashmir Terror Attack: विस्थापन के 31 साल बाद भी कश्मीर में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं

कश्मीर में एक शिक्षक और एक प्रधानाचार्य की हत्या से दिल्ली में रह रहे विस्थापित कश्मीरी पंडितों में भी आक्रोश है। इनका कहना है कि विस्थापन के 31 साल बाद भी कश्मीर में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं। हाल ही में आतंकियों द्वारा की गई हत्याओं से वापस कश्मीर का रुख करने वाले विस्थापितों में डर का माहौल है। अलगाववादी कभी नहीं चाहते कि कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदू और सिख रहें। इसलिए वे आतंकवादियों के साथ मिलकर खून-खराबा करा रहे हैं।जिससे डर कर अल्पसंख्यक फिर से पुनर्वास के लिए कश्मीर न जाएं।

लाजपत नगर में रहने वाले विस्थापित कश्मीरी पंडित विट्ठल चौधरी ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा कश्मीरी पंडितों को घर वापसी करा और उनकी छीनी गई संपत्ति का दावा करने के लिए शुरू की गई मुहिम से कट्टरपंथी बौखला गए हैं। वो नहीं चाहते कि विस्थापित कश्मीरी पंडित अपनी पुरानी संपत्तियों पर दावा करें और उन्हें संपत्तियों से कब्जा छोड़ना पड़े। इसलिए हिंदुओं को गैर मुस्लिमों को चुन-चुन कर मार रहे हैं। जिससे एक बार फिर 1990 जैसा माहौल बने और बचे हुए कश्मीरी पंडित भी यहां से पलायन कर जाएं।

वहीं, अमर कालोनी में रहने वाले विस्थापित कश्मीरी पंडित विजय रैना ने कहा कि जिन कट्टरपंथी नेताओं की वजह अल्पसंख्यकों को वहां से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा वो अभी भी बचे हुए अल्पसंख्यकों को कश्मीर से भगाने के प्रयास में लगे हुए हैं। वे सरकार की पुनर्वास योजना को विफल करना चाहते हैं। इसलिए सरकार अल्पसंख्यकों को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराए नहीं तो पुनर्वास प्रक्रिया पर असर पड़ेगा।

रविंदर पंडिता (विस्थापित कश्मीरी पंडित व संस्थापक शारदा पीठ बचाओ समिति) के मुताबिक, विस्थापित कश्मीरी पंडित फिर से अपनी संपत्तियों को पाने के लिए सरकार के पोर्टल पर आवेदन कर रहे हैं। जिससे उनको पुनर्वास के साथ अपनी संपत्तियां वापस मिल सकें। इससे जिन कट्टरपंथियों का उनकी संपत्तियों पर कब्जा है वो इन्हें डारने के लिए फिर से खून खराबे पर उतारू हैं। इसकी के चलते एक शिक्षक और प्रधानाचार्य की हत्याएं की गई हैं। पिछले दो साल में कश्मीर में शुरू हुए विकास कार्यों को कट्टरपंथी बर्दाश नहीं कर पा रहे हैं।

उधर, सुमीर चरंगू (विस्थापित कश्मीरी पंडित व अध्यक्ष कश्मीरी समिति दिल्ली) का कहना है कि विस्थापन के तीन दशक बाद भी कश्मीरी अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं। बीते दो साल में धारा 370 और 35ए हटने के बाद सरकार लगातार स्थिति को सुधारने का प्रयास कर रही है, लेकिन फिर से शुरू हुए खून खराबे के चलते अल्पसंख्यकों की सुरक्षा चिंता का विषय है। सरकार को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया करानी चाहिए। दिन-दहाड़े खून खराबे से फिर पलायन शुरू हो सकता है।