चीन की विस्तारवादी नीति और कर्ज जाल से मुक्ति के खिलाफ विश्व के कई देशों का मुखर विरोध

चीन के कर्ज देने और गुलाम बनाने की नीति वैश्विक अर्थव्यवस्था में काफी जानी-पहचानी है। पाकिस्तान, श्रीलंका और मालदीव चीन के बड़े कर्जदार हैं। लाओस में छह अरब डालर की लागत से रेल परियोजना के निर्माण में 70 प्रतिशत हिस्सा चीन का है। लाओस का विदेशी मुद्रा भंडार एक अरब डालर से भी नीचे पहुंच जाने से मूडीज को उसे एक -जंक स्टेट- घोषित करना पड़ा। इसी प्रकार 62 अरब डालर की सीपीईसी यानी चीन पाकिस्तान इकोनमिक कारीडोर में बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट के विकास के नाम पर चीन का कब्जा है। कर्ज के जाल में फंस चुके पाकिस्तान को जून 2022 तक 8.6 अरब डालर के कर्ज को चुकाने के लिए कर्ज लेने की स्थिति बनी हुई है।

बंदरगाह विकसित करने और यातायात नेटवर्क को बढ़ाने के लिए मोंटेनेग्रो भी चीनी कर्ज के जाल में फंस गया है और वर्ष 2018 तक कर्ज उसकी जीडीपी का 83 प्रतिशत था। तजाकिस्तान कर्ज के बोझ तले दबा हुआ है जिसमें कुल विदेशी कर्ज में चीन का हिस्सा 80 प्रतिशत है। किर्गिस्तान में वर्ष 2016 में चीन ने 1.5 अरब डालर निवेश किया था। कुल विदेशी कर्ज में चीन का 40 प्रतिशत हिस्सा है। इसी प्रकार आधारभूत ढांचा विकसित करने के नाम पर कांगो, कंबोडिया, बांग्लादेश, नाइजर और जांबिया जैसे देशों को चीन ने उनकी जीडीपी के 20 प्रतिशत से अधिक कर्ज दिया है।