Encroachment In Delhi: दिल्ली में जिन सड़कों से गुजर जाती थी टाटा 407 अब वहां पर बाइक चलाना भी मुश्किल

बात महज साढ़े चार दशक पुरानी है। उस समय जहांगीरपुरी का इलाका पूरी तरह खुला-खुला और अतिक्रमण से मुक्त था। चौड़ी सड़कें, हरे-भरे पार्क, मन मोह लेने वाली हरित पट्टियां यहां की शान हुआ करती थीं। स्थानीय लोग इलाके की खूबसूरती को लेकर इतराते थे। लेकिन, आज यहां का नक्शा पूरी तरह बदल गया है। पहले जिन गलियों में टाटा 407 जैसी गाड़ियां सरपट आवाजाही कर लेती थीं, उनसे आज दो मोटरसाइकिलों का साथ निकलना भी संभव नहीं है। जहांगीरपुरी के बी-ब्लाक में वर्ष 1981 से रह रहे हसीब अहमद उर्फ पप्पू की ये बातें जहांगीरपुरी में अतिक्रमण की समस्या की भयावहता बताने के लिए पर्याप्त हैं।

पप्पू की बातों के समर्थन में शिव नारायण भी आगे आते हैं। वह बताते हैं कि अतिक्रमण तो यहां के लिए कुष्ठ रोग बन गया है। लोगों ने पहले घरों के आगे की नाली पर चबूतरा बनाया। फिर उस पर सीढ़ियां-शौचालय का निर्माण करा लिया। उसके बाद कबाड़-रेहड़ी आदि रखकर सड़क पर कब्जा कर लिया।

दुर्भाग्य की बात यह कि सड़कों और गलियों में अवैध कब्जे के बाद लोगों ने पार्कों-हरित पट्टियों से लेकर खाली प्लाट तक को नहीं छोड़ा और वहां भी अवैध निर्माण कर डाला है। साल-दर-साल बीतते गए, लेकिन तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति अतिक्रमण के इस अवैध साम्राज्य पर बुलडोजर चलाने की राह में रोड़ा अटकाती रही।

बता दें कि दिल्ली के सुंदरीकरण करने की पूर्व प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी की कोशिश ने जहांगीरपुरी जैसी जेजे कालोनी को जन्म दिया था। उनकी कोशिश को मूर्त रूप देते हुए उनके पुत्र संजय गांधी ने जगतपुरी, किंग्जवे कैंप, मजनू का टीला, गोल मार्केट, मिंटो रोड आदि जगहों पर स्थित झुग्गियों में रहने वालों को यहां साढ़े 22-22 गज का प्लाट देकर पुनर्वासित किया गया था। ए और के ब्लाक में फ्लैट बनाकर भी आवंटित किए गए थे। पुनर्वासित लोगों ने ज्यादातर पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के थे।