चिप की कमी से जूझ रही दुनिया, तकनीक ही नहीं; राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी जरूरी है सेमीकंडक्टर

बेंगलुरू में शुरू हुए सेमीकान- 2022 तीन दिवसीय सम्मेलन का उद्देश्य भारत को सेमीकंडक्टर डिजाइन, निर्माण और प्रौद्योगिकी के लिए एक वैश्विक केंद्र बनाना है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आज शुक्रवार सुबह सेमीकान- 2022 सम्मेलन का उद्घाटन किया। इस सम्मेलन के जरिये उद्योग, शिक्षा और अनुसंधान संस्थानों को एक साथ लाने की कोशिश भी है। सेमीकंडक्टर के निर्माण क्षेत्र में भारत का आत्मनिर्भर होना क्यों जरूरी है? इसका वैश्विक बाजार कितना है? इस पर रिपोर्ट:

यह है सेमीकंडक्टर : सेमीकंडक्टर एक अर्धचालक होता है। इससे करंट को नियंत्रित करने में किया जाता है। सेमीकंडक्टर सिलिकान से बना चिप होता है। कार, कम्प्यूटर, लैपटाप से लेकर स्मार्टफोन जैसी दैनिक उपयोग की चीजों से लेकर अंतरिक्ष यान तक में इसका उपयोग हो रहा है। कोरोना संक्रमण के दौरान इसकी मांग और आपूर्ति में बहुत अंतर आ गया। इसका असर कितना व्यापक हुआ कि इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि टाटा समूह को जगुआर कार का उत्पादन रोकना पड़ा था। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अन्य बड़ी कंपनियों को भी गाड़ियों का उत्पादन भी घट गया।

दो कंपनियों ने निवेश का प्रस्ताव रखा : अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दो कंपनियां वेदांता और एलेस्ट ने 6.7 अरब डालर के अनुमानित निवेश से डिस्प्ले मैन्युफैक्चरिंग प्लांट लगाने का प्रस्ताव रखा है। इसके अलावा डिजाइन लिक्ड इंसेटिव स्कीम, एसपीईएल सेमीकंडक्टर, एचसीएल, सिर्मा टेक्नोलाजी और वेलेंकनी इलेक्ट्रानिक्स ने सेमीकंडक्टर पैकेजिंग के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया है। वहीं रुटोन्सा इंटरनेशनल रेक्टिफायर ने कम्पाउंड सेमीकंडक्टर के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया है।

सेमीकंडक्टर बनाने के 400-500 चरण होते हैं : जानकार बताते हैं कि एक छोटे से सेमीकंडक्टर को बनाने की प्रक्रिया के 400-500 चरण होते हैं। ऐसे में अगर एक भी चरण गलत होता है तो करोड़ों रुपए का नुकसान हो सकता है। मधुकर कृष्णा बताते हैं सेमीकंडक्टर्स की दुनिया बहुत विशाल है, जिन्हें हम सेमीकंडक्टर्स की सबसे बड़ी कंपनियों के तौर पर जानते हैं, जरूरी नहीं वही सारे सेमीकंडक्टर बना रही हों। इस क्षेत्र में कई तरह की कंपनियां हैं। ज्यादातर बड़ी कंपनियां के पास अलग-अलग सेमीकंडक्टर के पेटेंट हैं।

दो बड़ी कंपनियों के सीईओ भारतीय, उनकी उपस्थिति अहम : सेमीकंडक्टर बनाने वाली विश्व की दो बड़ी कंपनियां माइक्रोन और कैडेंस के सीईओ भारतीय हैं। माइक्रोन सीईओ संजय मेहरोत्र और कैडेंस के सीईओ अनिरुद्ध देवगन के इस आयोजन में शामिल होने की संभावना जताई जा रही है। विश्व बाजार को संदेश देने के लिए उनकी उपस्थिति अहम मानी जा रही है। तीन दिवसीय आयोजन के बाद बड़े निवेश भी हो सकते हैं।

आइआइटी बीएचयू के इलेक्टिकल इंजीनियरिंग के एसो.प्रोफेसर डा. आरके सिंह ने बताया कि फोन, कंप्यूटर, गीजर, इंडक्शन और इलेक्टिक से चलने वाली गाड़ी आदि को चलाने के लिए अलग-अलग पावर चाहिए। इसे नियंत्रित करने का ही काम सेमीकंडक्टर करती है। हम सेमीकंडक्टर के लिए पावर एप्लीकेशन बनाने का काम कर रहे हैं। वर्ष 2030 तक पेट्रोल-डीजल से चलने वाले 40 प्रतिशत वाहनों को इलेक्टिक व्हीकल में बदलना है।

आइआइटी इंदौर के इलेक्टिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर संतोष कुमार विश्वकर्मा ने बताया कि आइआइटी इंदौर सहित मप्र के सभी इंजीनियरिंग कालेज मिलकर 2016-17 से सेमीकंडक्टर पर शोध करने के साथ ही इसके लिए बाजार तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। मप्र में स्थित विशेष आर्थिक क्षेत्र (स्पेशल इकनोमिक जोन) पीथमपुर है। यहां आटोमोबाइल,आइटी और फार्मा उद्योग है। सभी को बड़े पैमाने पर सेमीकंडक्टर चाहिए। हमारी यह कोशिश है कि हम ऐसी तकनीक विकसित करें कि चिप का आकार छोटा हो सके। निवेश के बाद न सिर्फ यह तकनीक हमारे यहां आएगी बल्कि एक बड़ा बाजार भी उपलब्ध होगा।

आइआइटी मंडी के प्रो. सत्येंद्र कुमार शर्मा ने बताया कि भारत में अभी 180 नैनो मीटर का सेमीकंडक्टर बनता है। वह भी इसरो और डीआरडो द्वारा उपयोग किया जाता है। फोन से लेकर वाहनों में 65, 45,32, 28 नैनोमीटर टेक्नोलाजी वाले चिप की जरूरत है। वर्ष 2025 तक इसकी मांग कई गुना बढ़ जाएगी। सिर्फ बाजार की दृष्टि से ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना जरूरी है।