Food Safety Day: भारत में हर साल उतना गेहूं बर्बाद होता है, जितना आस्ट्रेलिया की कुल पैदावार; जानिए- इसकी वजह

संयुक्त राष्ट्र ने विश्व खाद्य एवं कृषि संगठन को दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों का नेतृत्व करने और पौष्टिक खाने के प्रति लोगों को जागरूक करने की जिम्मेदारी दी है। इसी जागरूकता को बढ़ाने के लिए पिछले चार साल से सात जून को विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मनाया जाता है। रोटी, कपड़ा और मकान मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं मानी जाती हैं, जिसके बिना मनुष्य का जीवन बहुत मुश्किल है। इसमें रोटी सबसे महत्वपूर्ण है, क्योंकि रोटी के बिना तो मनुष्य जीवित भी नहीं रह सकता है।

खाद्य सुरक्षा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि हर व्यक्ति को पर्याप्त मात्र में सुरक्षित और पौष्टिक भोजन मिल सके। दुनिया में हर दस में से एक व्यक्ति दूषित भोजन का सेवन करने से बीमार पड़ जाता है। हर वर्ष भोजन और जलजनित बीमारियों से लगभग तीस लाख लोगों की मौत हो जाती है। इस बार हम चौथा विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस मना रहे हैं, जिसका विषय ‘सुरक्षित भोजन, बेहतर स्वास्थ्य’ है, जो मानव स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने में सुरक्षित और पौष्टिक भोजन की भूमिका पर प्रकाश डालता है।

यह ठीक है कि भारत सहित दुनिया भर के अधिकांश देशों में भूखे पेट सोने वालों की संख्या में कमी आई है। फिर भी आज विश्व में कई ऐसे देश है, जहां लोग भुखमरी से जूझ रहे हैं। विश्व की आबादी वर्ष 2050 तक नौ अरब होने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसमें करीब 80 फीसद लोग विकासशील देशों में रहेंगे। ऐसे में सबसे अहम सवाल यह है कि एक ओर हमारे और आपके घरों में रोज सुबह रात का बचा हुआ खाना बासी समझकर फेंक दिया जाता है, तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी हैं जिन्हें एक वक्त का खाना तक नसीब नहीं होता। कई बार वे भूख की वजह से दम तोड़ देते हैं।

एक अनुमान के मुताबित, भारत में हर वर्ष जितना भोजन तैयार होता है उसका एक तिहाई बर्बाद चला जाता है। बर्बाद जाने वाला भोजन इतना होता है कि उससे करोड़ों लोगों की खाने की जरूरतें पूरी हो सकती हैं। जाहिर है खाद्य अपव्यय को रोके बिना खाद्य सुरक्षा संभव नहीं है। हमारे देश में हर साल उतना गेहूं बर्बाद होता है, जितना आस्ट्रेलिया की कुल पैदावार है। इससे 30 करोड़ लोगों को सालभर भरपेट खाना दिया जा सकता है। हमारे देश में 2.1 करोड़ टन अनाज केवल इसलिए बर्बाद हो जाता है, क्योंकि उसे रखने के लिए हमारे पास पर्याप्त भंडारण की सुविधा नहीं है।

औसतन हर भारतीय एक साल में छह से 11 किलो अन्न बर्बाद करता है। कह सकते हैं कि भूख से मौत कहीं भी हो, किसी की भी हो, यह वैश्विक व्यवस्था और अर्थव्यवस्था ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के नाम पर काला धब्बा है। यह मिटना ही चाहिए। भोजन की बर्बादी रोकने के लिए हमें अपनी आदतों को सुधारने की जरूरत है।