भारत में भजन सुनकर बन गईं ‘बुलबुल-ए-पाकिस्तान’:एक प्रोफेसर की देरी ने बना दिया सिंगर, लता थीं पसंदीदा गायक

‘बुलबुल-ए-पाकिस्तान’ के नाम से मशहूर गायिका नय्यारा नूर ने दुनिया को तो अलविदा कह दिया, लेकिन वो अपनी रूहानी आवाज के जरिए सदा हमारे बीच रहेंगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, नूर 71 साल की थीं और कैंसर से जूझ रही थीं। उनका कराची में काफी समय से इलाज चल रहा था। उन्होंने अपनी फेवरेट बेगम अख्तर की गजल “वो जो हम में तुम में करार था, तुम्हें याद हो कि ना याद हो” को दोबारा गाया था, जो लोगों ने बहुत पसंद किया। इन्हीं गीतों और गजलों के कारण नय्यारा के फैन्स न केवल पाकिस्तान में बल्कि भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया में मौजूद हैं।

साल 2005 में उन्हें पाकिस्तान सरकार की तरफ से राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था। हालांकि 2012 में अपनी सेहत को देखते हुए गायिका ने ऑफिशियली गाना छोड़ दिया था। मगर, क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तान की मशहूर गायिका का भारत से भी गहरा नाता रहा है।

भजन सुनते-सुनते हुआ संगीत से प्यार

‘रूठे हो तुम तो तुमको कैसे मनाऊं पिया’, ‘तुम मेरे पास रहो’ जैसे उनके मशहूर गाने आज भी उनके चाहने वालों के फेवरेट प्लेलिस्ट का हिस्सा है। मगर क्या आप जानते हैं कि पाकिस्तानी गायिका नय्यारा नूर का जन्म भारत के असम में हुआ था। नूर के पिता ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के एक्टिव मेंबर थे। नय्यारा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कि उनका बचपन असम में बीता, जहां उनके घर के पास लड़कियां सुबह घंटी बजाती थीं, भजन गाती थीं और वो उस भजन को पूरा सुनती थीं और गुनगुनाती थीं। यही वो समय था जब नूर को संगीत से लगाव होने लगा।

उन्होंने इंटरव्यू में कहा था, “मैं अपने आप को रोक नहीं पाती थी, जब तक लड़कियां वहां से चली नहीं जाती थीं तब तक मैं वहीं बैठ कर उनको सुनती रहती थी।”

बंटवारे के कुछ साल बाद उनका परिवार पाकिस्तान में बस गया

1950 में गुवाहाटी में जन्मीं नय्यार नूर की मां भारत के आजाद होने के 10 साल बाद यानी1958 में अपने बच्चों के साथ पाकिस्तान के कराची में सेटल हो गईं थी। जबकि उनके पिता 1993 तक भारत के असम में ही रहते थे।

भरतीय गायिका लता मंगेशकर और कानन देवी के गाने के बोल दोहराती थीं

बेगम अख्तर के अलावा नय्यारा नूर को भारतीय गायिका लता मंगेशकर और कानन देवी के गाने बहुत पसंद थे। वो अक्सर उनके गाने के बोल गुनगुनाते रहती थीं। उनके परिवार में गायन पर पाबन्दी थी खासतौर से पिता और उनके तरफ को लोगों को ये सब बिल्कुल भी पसंद नहीं था, लेकिन बाद में पिता ने उन्हें समझा और पाबंदी हटा दी।

सबसे पहले लाहौर के यूथ फेस्टिवल में गाने का मिला था मौका

कॉलेज में नय्यारा अपनी सहेलियों के बीच गाती थीं। उन्होंने कभी भी औपचारिक तौर पर गायिकी की कोई तालीम नहीं ली थी, लेकिन वो रेडियो सुनती थीं। रेडियो के अलावा बेगम अख्तर की गजलें सुनना बहुत पसंद है, जबकि शायरों में उन्हें फैज अहमद फैज और नासिर काजमी की शायरी बहुत पसंद थी। उन्हें एक बार लाहौर के एक यूथ फेस्टिवल में इकबाल ओपेरा के लिए बुलाया गया था, जहां उन्होंने पहली बार स्टेज पर गाया था। उसके बाद नूर ने लाहौर में ओपन एयर में गाने के लिए गोल्ड मेडल जीता था। लाहौर में अपने कॉलेज- नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स में एक संगीत समारोह के दौरान इस्लामिया कॉलेज के प्रोफेसर असरार अहमद ने उनकी प्रतिभा को पहचाना।

जिसके बाद उन्हें जल्द ही नूर विश्वविद्यालय के रेडियो पाकिस्तान कार्यक्रमों में गाने का मौका मिला। 1971 में नय्यारा नूर ने पाकिस्तानी टेलीविजन धारावाहिकों में प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत की। इसके बाद उन्होंने ‘घराना’ और ‘तानसेन’ जैसी फेमस फिल्मों के गीत भी गाए। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि एक गायिका बन जाएंगी।

बातचीत के दौरान शुरू हुआ था गाने का सिलसिला

नय्यारा नूर ने एक इंट्ररव्यू में अपने गाने की शुरुआत को लेकर बताया था कि “मैं शायद कभी भी यह बात नहीं समझ सकती थी, नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स में कंसर्ट होते थे और बड़े गायक उसमें आते थे। एक बार प्रोफेसर इसरार को थोड़ी देर हो गई थी, तो मेरे दोस्तों ने कहा कि जब तक वो नहीं आते तब तक तुम गा दो। जब मैं गाने के बाद नीचे आई, तो प्रोफेसर ने मुझसे कहा कि मैं तुमसे यह कहने आया हूं कि तुम बहुत अच्छा गाती हो और आप इस कला को बर्बाद मत करो। वो ही हैं जो पहले मुझे रेडियो पर लाए। मैंने पहली गजल रेडियो पर ही गाई थी।”

नय्यारा नेशनल कॉलेज ऑफ आर्ट्स में पढ़ती थीं, वहां उन्होंने पहले यूनिवर्सिटी में गाना शुरू किया, फिर रेडियो और टीवी पर गाने लगीं। उन्होंने पहले वैसे ही बातचीत के लिए गाया था, जो सिलसिला ताउम्र चलता गया।

गायिकी सीखी तो नहीं पर रोजाना रियाज जरूर करती थीं

नय्यारा नूर ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी। मगर, वो रोजाना सुबह डेढ़ घंटे रियाज जरूर करती थीं। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि शादी के बच्चों के बाद रियाज करना थोड़ा मुश्किल होता था, लेकिन मैं अपनी पूरी कोशिश करती थी कि कुछ भी हो जाए रियाज न छूटे। उनकी शादी उनके साथी गायक शहरयार जैदी से हुई जो अभिनय के क्षेत्र में काफी मशहूर रहे। नय्यारा के दो बेटे हैं जिनका नाम जाफर जैदी, नाद-ए-अली बरखा है। जाफर जैदी भी पाकिस्तान के फेमस कम्पोजर और सिंगर के तौर पर जाने जाते हैं।