6 जिंदगियां बचाने वाले 3 लड़कों की कहानी:हटिया हादसा के बाद हाथ से पत्थर हटाते रहे; बोलें- कुछ जिंदगियां नहीं बचा सके, इसका दुख है

प्रयागराज में 6 नवंबर की महज आधे घंटे की बारिश ने हटिया चौराहे के पास हुए हादसे ने लोगों को हिला दिया। इस हादसे में 2 व्यापारी सहित 3 मजूदरों को मौत हो गई। वहीं 9 लोगों अस्पताल में एडमिट कराना पड़ा। जहां उनका इलाज चल रहा है। जैसे ही जर्जर मकान का बारजा गिरा। देखते-देखते सैकड़ों लोगों की भीड़ इकट्‌ठा हो गई।

बहुत से लोगों ने उस सीन को मोबाइल कैमरे में कैद करना शुरू किया, पर कुछ ऐसे लोग भी रहे जो अपनी जान की परवाह किये बगैर मलबे में दबे लोगों को बचाने की कवायद कर रहे थे। एनडीआरएफ और प्रशासन के आने से पहले लोकल लोगों ने मलबा हटाने का काम शुरू किया था।

 तीन युवाओं से बातचीत की, जिसने 8 लोगों को मलबे से बाहर निकालकर अस्पताल पहुंचाने में मदद की। जिसमें 6 लोगों का अस्पताल में इलाज चल रहा है, जबकि 2 लोगों की मौत इलाज के दौरान हो गई।

घटना के दौरान वहां मौजूद शिवम गुप्ता ने बताया, “मैं खुद किस्मत था कि बच गया, दरअसल बारिश शुरू होने वाली थी, जर्जर मकान में स्थित पान की दुकान से सिगरेट लिया। इतने में बारिश शुरू हो गई। वह भागकर बारजे के नीचे जा खड़े हुए, पर वहां पर पानी की बौछार आ रही थी। खुद को सेफ करने के लिए रोड की दूसरी तरफ चला गया।”

उन्होंने बताया, इसी बीच उसने देखा कि जर्जर मकान के बारजे का एक हिस्सा गिरता है और कुछ मिनटों में पूरा बारजा गिर जाता है। चारों ओर धूल ही धूल दिख रही थी। इस बीच कुछ स्थानीय लोग मलबा निकालने लगे। मेरे साथ मनोज केसरवानी और विपिन केसरवानी भी मौजूद थे।

विपिन ने बताया कि मलबे के नीचे दबे धीरज की कराहने की आवाज आ रही थी, सिर से खून बह रहा था, हमलोगों ने किसी तरह मलबा हटाकर धीरज को बाहर निकाला काफी खून निकल रहा था, तत्काल उसे पास के निजी अस्पताल में एडमिट कराया।

मनोज को अफसोस, सुशील को नहीं बचा सके

मनोज ने बताया कि इसी तरह हरिश्चंद्र, इकबाल अहमद , ओम प्रकाश निवासी नैनी, सूरज पाल विनोद को मलबे से निकाल कर पास अस्पताल भेजा गया। जहां पर कुछ लोगों को प्राइवेट अस्पताल वहीं कुछ को एसआरएन में एडमिट किया।

मनोज ने बताया कि सुशील अग्रहरि की चाय की दुकान उसी जर्जर मकान में थी। हम लोगों ने देखा की उसी चाय की दुकान के नीचे सुशील भी मलबे में दबा था। उसके सिर में भारी पत्थर गिरा था। वह बेसुध पड़ा था, तब तक प्रशासन भी पहुंच चुका था, उसे तत्काल एंबुलेंस में डाला गया, पर बाद में पता चला कि सुशील नहीं बच सका। अस्पताल जाने के दौरान रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया।

नीरज को जब निकाला तो सांसे चल रही थी

शिवम पूरे घटना क्रम को लेकर भास्कर से बातचीत कर रहा था, पर उसकी जुबान उस पल को याद कर लड़खड़ा रही थी। उसने बताया कि हम लोगाें ने कई लोगों को मिलकर मलबे से बाहर निकाला। पर नीरज केसरवानी का कुछ पता नहीं चल रहा था, कुछ लोगों ने बताया कि नीरज वहां था ही नहीं, पर नीरज है कहां इसकी खोज की जाने लगी।

देखा गया कि नीरज की स्कूटी वही पान की दुकान के पास खड़ी थी, एक स्थानीय व्यक्ति ने बताया कि नीरज भी मलबे के नीचे है, तब सभी लोगों ने मिलकर वहां मलबा हटाना शुरू किया। नीरज दुकान के नीचे बह रही नाली के अंदर मलबे में दबा पड़ा था, उसके ऊपर लोहे गाटर था।

मलबा हटाने के दौरान नीरज का हाथ दिखा, हमसब अब यकीन कर गये कि नीरज यहीं पर है। तेजी से मलबा हटाना शुरू कर दिया गया। नीरज को जब बाहर निकाला गया तो नीरज की सांसे चल रही थी। उसके हाथ में हलचल थी। जल्दी से एम्बुलेंस में नीरज को लादा गया और एसआरएन अस्पताल भेज दिया गया। पर कुछ घंटे बाद पता चला कि नीरज की मौत हो गई।