ईरान में लगभग एक महीने से चल रहा हिजाब विरोधी प्रदर्शन 30 शहरों में फैल चुका है। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद विरोध प्रदर्शनों पर रोक नहीं लग पा रही है। इस बीच ईरान के शिक्षा मंत्री का कहना है कि हिजाब का विरोधी करने वाली स्कूल और कॉलेज की छात्राओं की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है।
उन्होंने कहा- ये सभी छात्राएं दिमागी रोग से ग्रसित हैं। इन छात्राओं को साइकेट्रिक हॉस्पिटल में भर्ती कराया जा रहा है। जिससे इन छात्राओं में पनप रहे असामाजिक व्यवहार को दुरुस्त किया जा सके।
200 से ज्यादा लोग मारे गए
ईरानी पुलिस ने गुरुवार रात एक बार फिर कुर्दिस्तान में हिजाब विरोधी प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग और लाठी चार्ज किया। कुर्दिस्तान के 10 शहरों में उग्र प्रदर्शनों का दौर जारी है। पुलिस फायरिंग में अब तक 210 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। दो हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। कुर्दिस्तान के करनमशाह शहर में प्रदर्शनकारियों की पुलिस के साथ हिंसक झड़पें हुई हैं। इस संघर्ष में दो पुलिस वालों के भी मारे जाने की जानकारी मिली है।
रेवोल्यूशनरी गार्ड्स तैनात किए गए
ईरान में हिजाब विरोधी प्रदर्शनों को कुचलने में पुलिस पस्त हो चुकी है। राष्ट्रपति इब्राहीम रहीसी की सरकार की विफलता को देखते हुए सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खमेनेई ने अब आंदोलन को कुचलने के लिए रेवोल्यूशनरी गार्ड्स (सेना की एक ब्रांच) को तैनात किया है। सबसे ज्यादा रेवोल्यूशनरी गार्ड्स कुर्दिस्तान में तैनात किए गए हैं।
प्रदर्शन के 4 कारण
16 सितंबर को जब ईरान में आंदोलन तेज हुआ तो पुलिस के पास ही हालात से निपटने की जिम्मेदारी थी, लेकिन इसके बाद पुलिस को हटा कर खमेनेई के विश्वासपात्र रेवोल्यूशनरी गार्ड्स को लगाया गया है। सरकार इनसे आंदोलन को दबाना चाहती है।
ईरान पुलिस ने 13 सितंबर को महसा अमिनी नाम की युवती को हिजाब नहीं पहनने के लिए गिरफ्तार किया था। तीन दिन बाद, यानी 16 सितंबर को उसकी मौत हो गई थी। ईरानी मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमिनी गिरफ्तारी के कुछ घंटे बाद ही कोमा में चली गई थी। उसे अस्पताल ले जाया गया। रिपोर्ट्स में कहा गया कि अमिनी की मौत सिर पर चोट लगने से हुई। पुलिस ने दावा किया कि अमिनी की मौत हार्टअटैक की वजह से हुई।
ईरान में वैसे तो हिजाब को 1979 में मेंडेटरी किया गया था, लेकिन 15 अगस्त को प्रेसिडेंट इब्राहिम रईसी ने एक ऑर्डर पर साइन किए और इसे ड्रेस कोड के तौर पर सख्ती से लागू करने को कहा गया। साथ ही जुर्माना भी लगाया गया।
हिजाब पहनने की अनिवार्यता 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद लागू हुई
1979 से पहले शाह पहलवी के शासन में महिलाओं के कपड़ों के मामले में ईरान काफी आजाद ख्याल था।
- 8 जनवरी 1936 को रजा शाह ने कश्फ-ए-हिजाब लागू किया। यानी अगर कोई महिला हिजाब पहनेगी तो पुलिस उसे उतार देगी।
- 1941 में शाह रजा के बेटे मोहम्मद रजा ने शासन संभाला और कश्फ-ए-हिजाब पर रोक लगा दी। उन्होंने महिलाओं को अपनी पसंद की ड्रेस पहनने की अनुमति दी।
- 1963 में मोहम्मद रजा शाह ने महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिया और संसद के लिए महिलाएं भी चुनी जानें लगीं।
- 1967 में ईरान के पर्सनल लॉ में भी सुधार किया गया जिसमें महिलाओं को बराबरी के हक मिले।
- लड़कियों की शादी की उम्र 13 से बढ़ाकर 18 साल कर दी गई। साथ ही अबॉर्शन को कानूनी अधिकार बनाया गया।
- पढ़ाई में लड़कियों की भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया गया। 1970 के दशक तक ईरान की यूनिवर्सिटी में लड़कियों की हिस्सेदारी 30% थी।
1979 में शाह रजा पहलवी को देश छोड़कर जाना पड़ा और ईरान इस्लामिक रिपब्लिक हो गया। शियाओं के धार्मिक नेता आयोतोल्लाह रुहोल्लाह खोमेनी को ईरान का सुप्रीम लीडर बना दिया गया। यहीं से ईरान दुनिया में शिया इस्लाम का गढ़ बन गया। खोमेनी ने महिलाओं के अधिकार काफी कम कर दिए।
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