मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी में 80 हजार हर महीना सैलरी अच्छी थी, मगर सुकून जीरो था। आराम की भी फुरसत नहीं थी। एक दिन इतनी झल्लाहट हुई कि नौकरी छोड़कर 18 साल बाद गांव उमरी लौट आया। गांव में आकर दोबारा से खेती का प्लान बनाया। वहीं गन्ने, गेंहू, बाजरा से शुरुआत कर दी। 2 साल पहले खेती में इनोवेशन का मन बनाया। एक छोटे टुकड़े में ड्रैगन फ्रूट उगाने शुरू किए। 2 साल में इतना मुनाफा है कि अब साल 2023 में 5 एकड़ जमीन सीधे ड्रैगन फ्रूट उगाने के लिए तैयार कर रहा हूं।
मेरठ किसान मेले में जैविक विधि से ड्रैगन फ्रूट उगाने वाले रितुराज ने स्टॉल लगाया। युवा किसान रितुराज के उगाए फलों की गुणवत्ता को हर किसी ने सराहा। योजना 10 एकड़ में केवल ड्रैगन फ्रूट उगाने की है।
रितुराज ने बताया, ‘मैंने एक एकड़ में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में ड्रैगन फ्रूट की आर्गेनिक खेती शुरू की। एक एकड़ में 450 पेड़ हैं। इसका एक पोल 5वें साल पर 25 किलो फल लगता है। एक पोल पर खेती की शुरूआती खर्च 2 हजार रुपया आता है। जो धीरे-धीरे घट जाती है। इस फल की मार्केट वेल्यू 200 रुपए प्रति किलो है। ये पहले साल ही फसल देना शुरू कर देता है।
हालांकि पहले साल के बजाय दूसरे साल से फसल लें तो ज्यादा बेहतर है। मेरे पास पहले साल डेढ़ क्विंटल फ्रूटिंग हुई। इसका 30हजार रुपया आय हुई। क्योंकि वो पहला साल था। लेकिन दूसरे साल से आय बढ़ती है। एक पेड़ से एक ही फल लिया था। इस बार 4 क्विंटल फ्रूटिंग हुई।’
गन्ना + ड्रैगन फ्रूट यानी बेहतर कमाई
इनोवेटिव खेती तरक्की का बढ़ा रास्ता
नागपुर से इंजीनियरिंग, महाराष्ट्र में नौकरी
उन्होंने बताया, ‘ मैंने नागपुर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करी। इंजीनियरिंग के बाद कैंपस सिलेक्शन से अच्छी नौकरी मिल गई। महाराष्ट्र, दक्षिण भारत में अलग-अलग कंपनी में 18 साल जॉब किया। 80 हजार हर महीने सैलरी मिलती थी। 9 लाख 60 हजार हर साल का पैकेज था। जब नौकरी से उफ्फ हो गई तब लगा घर लौट जाऊं। एक दिन थैला उठाया और गांव बिजनौर के उमरी में वापस आ गया। कुछ दिन इसी तरह गुजरे। फिर खेती में मन लगाया अच्छा लगा। हमारे यहां गन्ना, गेंहू और चावल की खेती होती है। उसे करते करते आज ड्रैगन फ्रूट उगा रहा हूं। 3 साल से खेती ही सब कुछ है।’
किसान कुछ नहीं ये धारणा बदलनी है
रितुराज बताते है कि जो लोग ये कहते हैं कि किसान कुछ नहीं वो गलत हैं। मैं इसे बदलना चाहता हूं। जॉब के वक्त अपनी कंपनी में अक्सर ये बातें सुनता था। मेरा तो बैकग्राउंड ही खेती है, कैसे बर्दाश्त कर लूं। लोग समझें तो किसान ही सब कुछ है। किसान एक बिजनेस के रूप में खेती को लेकर चलें तो वो सब कुछ कर सकता है।