झांसी के केंद्रीय आयुर्वेद अनुसंधान संस्थान में अब देसी दवाइयां भी बनाई जाएगी। संस्थान के फार्मेसी विभाग में चूर्ण, टैबलेट, तेल-घृत, भस्म समेत 169 प्रकार की दवाइयों का उत्पादन किया जाएगा। ये देसी दवाइयां देश के 27 आयुर्वेदिक अस्पतालों में सप्लाई की जाएंगी। इसके लिए उत्तर प्रदेश आयुष निदेशालय ने अनुसंधान संस्थान को जीएमपी लाइसेंस जारी कर दिया है। इसमें 166 शास्त्रीय आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन और 3 पेटेंट फार्मूलेशन तैयार करने की अनुमति शामिल है।
5 साल तक वैध होगा लाइसेंस
सीएआरआई के प्रभारी सहायक निदेशक डॉ. जी बाबू ने बताया कि जीएमपी लाइसेंस 5 साल तक के लिए वैध है। 55 तरह के चूर्ण, 18 तरह के क्वाथ चूर्ण, 11 तरह की वटी-गुटी टैबलेट, 13 तरह की गुग्गुलू, 10 तरह के कुपिपकव रसायन, 2 तरह के मंडुर, 10 तरह के तेल, 19 तरह का घी, 17 तरह की भस्म और 14 तरह का रस कल्प आयुर्वेदिक दवा का उत्पादन किया जाएगा। इसके लिए एक साल पहले ही मशीनरी सेटअप लगाया गया था।
माल की जांच के बाद ही दवाइयों का होगा उत्पादन
सीएआरआई के प्रभारी सहायक निदेशक डॉ. जी बाबू ने बताया कि संस्थान में बनने वाली 169 प्रकार की दवाइयों की गुणवत्ता का पूरा ख्याल रखा जाएगा। इसमें किसी तरह की कोताही नहीं बरती जाएगी। कंपनियों से कच्चा माल खरीदा जाएगा। माल की प्रयोगशाला में जांच होगी।
अगर कच्चा माल मानकों पर खरा होगा, तभी देसी दवा बनाने का प्रोसेस शुरू की जाएगा। माल की गुणवत्ता खराब होने पर माल को वापस किया जाएगा। देसी दवा बनकर तैयार होने के बाद भी प्रयोगशाला में जांच की जाएगी। इसके बाद ही दवा की सप्लाई की जाएगी।
प्रयोगशाला को एनएबीएल मान्यता मिली
संस्थान के डॉ. वैभव चरडे और डॉ. विजय कुमार ने बताया कि संस्थान की प्रयोगशालाओं को भारतीय गुणवत्ता परिषद (राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाला प्रत्यायन बोर्ड) द्वारा एनएबीएल मान्यता प्रदान की गई है। यह मान्यता दो साल तक वैध है।
अब यहां जैविक और रासानिक परीक्षण होंगे। गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशालाएं हर्बल दवाओं और उत्पादन की प्रामाणिकता, गुणवत्ता और प्रभावकारिता स्थापित करने के लिए विश्लेषणात्मक में सक्रिय रूप से शामिल हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र में आयुष मंत्रालय के तहत यह पहला संस्थान हो गया है, जिसे एनएबीएल और जीएमपी मान्यता प्राप्त है।