पाकिस्तान के 16वें आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा 6 साल बाद इस पोस्ट से रिटायर हो रहे हैं। रिटायरमेंट से 4 दिन पहले प्रमोशन और फोर स्टार रैंक पाने वाले आसिम मुनीर नए सेनाध्यक्ष होंगे। बाजवा फौज के हेडक्वॉर्टर GHQ रावलपिंडी में बैटन ऑफ कमांड या कमांड स्टिक मुनीर को सौंपेंगे। बैटन ऑफ कमांड लेने के बाद ही मुनीर फॉर्मली आर्मी चीफ कहलाएंगे।
रिटायरमेंट डेट से एक दिन पहले सोमवार को जनरल बाजवा ने राष्ट्रपति आरिफ अल्वी और प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ से मुलाकात की। शरीफ ने कहा- बाजवा साहब की वजह से ही हम FATF की ग्रे लिस्ट, कोरोना वायरस और बाढ़ जैसे मुश्किल हालात से निकल सके।
22 करोड़ लोगों की नजर
- पाकिस्तान की वेबसाइट ‘आज न्यूज’ की रिपोर्ट के मुताबिक- डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूशन्स की बजाए फौज ही 22 करोड़ अवाम वाले मुल्क की सबसे बड़ी ताकत है। 8 महीने इसी रस्साकशी में गुजर गए कि जनरल बाजवा को एक और एक्सटेंशन मिलेगा या फिर कोई नया आर्मी चीफ आएगा। बहरहाल, कयासों का दौर थमा और पिछले हफ्ते साफ हो गया कि आसिम मुनीर नए आर्मी चीफ होंगे। मंगलवार को रावलपिंडी के 6आर्मी हेडक्वॉर्टर में ‘चेंज ऑफ बैटन कमांड सेरेमनी’ होगी। आम जुबान में इसे ‘चेंज ऑफ स्टिक सेरेमनी’ भी कहा जाता है।
- आउटगोइंग आर्मी चीफ जनरल बाजवा अपने करीबी दोस्त और सहयोगी आसिम मुनीर को बैटन ऑफ कमांड सौंपेंगे। यह स्टिक एक खास तरह की लकड़ी से बनी होती है। इस लकड़ी को ‘मलाक्का केन’ कहा जाता है। आर्मी में इस स्टिक की बेहद अहमियत है।
- रिपोर्ट के मुताबिक- अगर पाकिस्तान की सियासत को छोड़ दिया जाए तो यहां हमेशा से फौज ही ताकतवर रही है। उसके रसूख और दबदबे के आगे सियासतदान छोटे पड़ते रहे हैं। यही वजह है कि 1947 में पाकिस्तान के जन्म के बाद करीब-करीब आधा वक्त यहां मिलिट्री रूल रहा।
कमांड स्टिक की अहमियत
- इतिहास में कई राजाओं के भी हाथ में खास तरह की स्टिक या ऐसी ही कोई चीज देखी जाती रही है। अंग्रेजी में इसे मेस (mace) भी कहा जाता है। उस दौर में यह एक तरह का हथियार होता था, जो दुश्मन की गर्दन एक ही झटके में उतार देता था। तब यह काफी वजनी होता था। तब राजा ही फौज का कमांडर इन चीफ होता था। लिहाजा इस तरह का हथियार उनके पास हमेशा मौजूद होता था।
- आज के दौर में, और खासतौर पर पाकिस्तान के बारे में बात करें तो यह स्टिक ऑफ कमांड बदलती गई। यूरोप में यह स्टिक ऑफ कमांड अलग तरह की होती थी। पाकिस्तान में कुछ लोग स्टिक ऑफ कमांड को गोर्ज (Gorz) भी कहते हैं। इसके एक सिरे पर स्टील से बना हत्था या मूठ होती है।
- वक्त के साथ स्टिक ऑफ कमांड में बदलाव होते चले गए। अब यूरोप और खासतौर से ब्रिटेन में भी पहले की तरह के बैटन ऑफ कमांड नहीं होते। इसका प्रतीकात्मक महत्व ही रह गया है। मशहूर जर्मन लेखक ईओए हेडेगार्ड ने 14वीं से 16वीं सदी के बैटन ऑफ कमांड पर विस्तार से जानकारी दी है।
- पाकिस्तान में जो बैटन ऑफ कमांड इस्तेमाल की जाती है, वो भी प्रतीकात्मक है। इसके एक सिरे पर चमकदार स्टील की मूठ और एक सिरे पर स्मूद ग्रिप हैंडल होता है। जनरल बाजवा यही कमांड स्टिक नए आर्मी चीफ मुनीर को सौंपेंगे।
सिर्फ ग्राउंड फोर्सेस के पास बैटन ऑफ कमांड
- पाकिस्तान में बैटन ऑफ कमांड सिर्फ थल सेना प्रमुख यानी ग्राउंड फोर्स चीफ (या आर्मी चीफ) के पास होती है। एयरफोर्स में अलग व्यवस्था है। यहां आउटगोइंस एयरफोर्स चीफ नए एयरफोर्स चीफ को तलवार सौंपता है। जब नेवी में कमांड चेंज होती है तो एक स्क्रॉल नए नेवी चीफ को सौंपा जाता है। यह सभी रस्में अलग-अलग फोर्सेस के हेडक्वॉर्टर में ही होती हैं।
- ‘आज न्यूज’ की रिपोर्ट के मुताबिक- 2008 में जब जनरल मुशर्रफ ने बैटन ऑफ कमांड जनरल अशफाक परवेज कयानी को सौंपी थी, तब लाखों लोगों ने इस सेरेमनी को टीवी पर देखा था। बाद में मुशर्रफ राष्ट्रपति बने और फिलहाल दुबई के आलीशान पेंटहाउस में रह रहे हैं।
- कयानी 6 साल तक आर्मी चीफ रहे। इसके बाद बैटन ऑफ कमांड जनरल राहिल शरीफ को मिली। वो 3 साल आर्मी चीफ रहे। राहिल के बाद जनरल कमर जावेद बाजवा पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष बने। इमरान खान ने 2019 में उन्हें 3 साल का एक्सटेंशन दिया था।
चलते-चलते एक रोचक बात जानिए
पाकिस्तानी फौज की परंपरा के मुताबिक- खास मौकों पर पाकिस्तान के आर्मी चीफ को बैटन ऑफ कमांड या कमांड स्टिक साथ रखने की जरूरत होती है। मसलन- जब वो नेशनल फ्लैग को सैल्यूट कर रहा हो, गार्ड ऑफ ऑनर रिसीव कर रहा हो या किसी परेड का इन्सपेक्शन कर रहा हो।
इस मामले में यह जान लेना भी जरूरी है कि कब इस स्टिक को आर्मी चीफ साथ नहीं रखता। चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ (COAS) जब प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति से मिलने जाता है तो यह स्टिक उनके साथ नहीं होती। 2013 में पाकिस्तान में यह सवाल उठा था कि अगर किसी वजह से यह स्टिक टूट जाए तो क्या होगा? तब इसका जवाब ये दिया गया था कि इसी तरह की दूसरी स्टिक बनवाई जाए।
फौज में फूट के संकेत
पाकिस्तान की फौज में फूट पड़ने के संकेत हैं। नए आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर के अपॉइंटमेंट से खफा दो सीनियर जनरल ने पद छोड़ने का फैसला किया है। खास बात ये है कि ये दोनों ही जनरल पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के करीबी हैं।
इनमें से एक लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद इमरान सरकार के दौर में ISI के चीफ थे। उन्हें आउटगोइंग आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने इस पोस्ट से हटा दिया था। दूसरे अफसर का नाम लेफ्टिनेंट जनरल अजहर अब्बास है। वो भी इमरान के चहेते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ और सीनियर अफसर भी जल्द ही पद छोड़ सकते हैं।
सियासत और अपॉइंटमेंट
- शाहबाज शरीफ सरकार ने पिछले हफ्ते 8 महीनों से जारी कयासों पर रोक लगाते हुए लेफ्टिनेंट जनरल आसिम मुनीर को आर्मी चीफ बनाने का फैसला किया। खास बात यह है कि मुनीर 27 नवंबर को रिटायर होने वाले थे। उन्हें लेफ्टिनेंट जनरल से फोर स्टार रैंक पर प्रमोट करते हुए जनरल बनाया गया। इसके बाद तीन साल का एक्सटेंशन देते हुए आर्मी चीफ बना दिया गया।
- यह पूरी तरह से सियासी पोस्टिंग है। इसकी वजह यह है कि आसिम मुनीर इमरान के सख्त विरोधी हैं। अगस्त 2018 में जब इमरान प्रधानमंत्री बने तो उस वक्त मुनीर ISI चीफ थे। उन्होंने कथित तौर पर इमरान को बताया था कि उनकी पत्नी बुशरा बीबी, उनके पहले पति और दोस्त फराह खान करप्शन कर करोड़ों रुपए कमा रहे हैं।
- इमरान ने बजाय इस पर लगाम कसने के, आसिम मुनीर को ही ISI चीफ पद से हटा दिया। इसके बाद से खान और मुनीर के रिश्ते तल्ख होते चले गए। शाहबाज शरीफ ने इसका सियासी फायदा उठाया और मुनीर को आर्मी चीफ बना दिया। अब इमरान दबाव में हैं और यही वजह है कि उन्होंने शनिवार को अपना लॉन्ग मार्च रद्द कर दिया था। वैसे भी यह फ्लॉप हो रहा था।