“जब दिल ही टूट गया, हम जी के क्या करेंगे…”
1946 में आई फिल्म शाहजहां का ये गाना आज भी लोगों की जुबां पर है। इसे गाया था के.एल. सहगल ने। पूरा नाम था कुंदनलाल सहगल। सहगल 1932 से 1946 के दौर में हिंदी सिनेमा के एक्टर और सिंगर थे। ये वो दिग्गज गायक थे जिन्हें मोहम्मद रफी, मुकेश और किशोर कुमार तीनों ही अपना गुरु मानते थे।
पहली प्लेबैक सिंगिग के.एल. सहगल से शुरू हुई। इनकी आवाज के लोग दीवाने थे। लता मंगेशकर बचपन से इनकी फैन रहीं, मगर सहगल 43 साल की कम उम्र में ही 18 जनवरी 1947 को दुनिया को अलविदा कह गए। वजह थी शराब। वे हैवी ड्रिंकर थे। सारे गाने शराब पीकर ही गाते थे। शराब की लत इस कदर थी कि स्टूडियो और प्रोडक्शन हाउस वाले उनकी तनख्वाह उन्हें ना देकर सीधे उनके घर भेजते थे।
अगर सैलरी सहगल के हाथ लग जाती थी तो कुछ शराब में उड़ जाती, कुछ गरीबों की मदद में। सहगल की जिंदगी में दो ही तरह के किस्से हैं। एक उनकी शराब की लत के और दूसरे उनकी दरियादिली के। सहगल इतने दिलदार थे कि भिखारियों को अपने पहने कपड़े तक उतार कर देते थे। एक विधवा महिला ने उनसे मदद मांगी तो उन्होंने अपनी हीरे की अंगूठी उतारकर दे दी।
सहगल अमरीश पुरी, मदन पुरी और चमन पुरी के चचेरे भाई थे। अपनी गायकी से हिंदी सिनेमा को एक नई धार देने वाले एक्टर-सिंगर सहगल की आज 76वीं पुण्यतिथि है। आज उनके कुछ किस्सों के जरिए पढ़िए एक टाइपराइटर सेल्समैन के फिल्मों में आने और सुपर सिंगर बनने की कहानी…
आवाज खोने का डर सताया तो महीनों किसी से बात नहीं की
सहगल ने 12 साल की उम्र में पहला गीत जम्मू और कश्मीर के राजा हरि सिंह के दरबार में गाया था। 13 साल की उम्र में उनकी आवाज में बदलाव आने लगे थे। जिस वजह से उन्हें ये डर सताने लगा था कि कहीं उनकी आवाज खराब ना हो जाए। इस डर की वजह से उन्होंने कई दिनों तक किसी से बात नहीं की थी।
सहगल की इस हरकत से घरवालों को उनकी चिंता सताने लगी थी। इसलिए घरवाले उन्हें एक संत के पास ले गए। संत ने सहगल को एक मंत्र का उच्चारण 2 साल तक लगातार करने की सलाह दी जिसके बाद उनकी आवाज ठीक हो गई थी।
पहली नौकरी रेलवे में की, गुजारे के लिए होटल में भी काम किया
जहां एक तरफ सहगल संगीत से जुड़ते चले गए, वहीं उन्होंने पढ़ाई से पूरी तरह से दूरी बना ली। पढ़ाई छोड़ने के बाद गुजारा करने के लिए उन्होंने रेलवे में टाइमकीपर की नौकरी की। कुछ समय तक यहां पर नौकरी करने के बाद उन्होंने शिमला में रेमिंगटन कंपनी में बतौर टाइपराइटर सेल्समैन काम किया।
कंपनी से जुड़े कामों की वजह से सहगल ने भारत के कई हिस्सों में दौरे किए। एक बार वो काम के सिलसिले में लाहौर गए थे जहां पर उनकी मेहरचंद जैन से दोस्ती हुई। मेहरचंद को भी संगीत का शौक था। दोनों साथ में कई बार कोलकाता गए और वहां की कई महफिलों में मुशायरा किया। सहगल ने अक्सर इस बात का जिक्र किया था कि वो जो कुछ भी हैं वो मेहरचंद के सपोर्ट की वजह से हैं।
जब सहगल रेमिंगटन कंपनी में काम कर रहे थे तभी वहां पर उनके सहकर्मी ने उन पर स्पेयर पार्ट्स की चोरी का इल्जाम लगाकर उन्हें फंसा दिया था। जिस वजह से उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद उन्होंने गुजारे के लिए होटल मैनेजर का भी काम किया। लंबे समय तक नौकरी करते हुए भी सहगल का संगीत का प्रेम कभी कम नहीं हुआ। जहां शुरुआती समय में वो सिर्फ शौक के लिए गाते थे, समय के साथ उनके जीवन में सिर्फ संगीत ही रह गया और बाकी सब पीछे छूट गया। लोगों को सहगल का संगीत पसंद आने लगा था।
200 रुपए थी पहली फीस
कोलकाता से उन्हें गानों के साथ एक्टिंग के भी ऑफर आने लगे थे। एक दिन हरिचंद बाली (सिंगर) की नजर सहगल पर पड़ी और सहगल की आवाज सुनते ही वो उनके मुरीद हो गए। इसके बाद उन्होंने बी.एन. सरकार ( प्रोड्यूसर) से सहगल की मुलाकात करवाई। बी.एन सरकार ने उनकी नौकरी कोलकाता में ही फिल्म स्टूडियो न्यू थिएटर में 200 रुपए के मासिक वेतन पर लगवा दी।
सहगल नाम, फिल्मों की सक्सेस और सुपरस्टार बनने का किस्सा
इसी बीच इंडियन ग्रामोफोन कंपनी ने सहगल के कुछ पंजाबी गानों को रिकॉर्ड किया, जिनका म्यूजिक हरिश्चंद्र बाली ने दिया था। इन गानों के बाद तो सहगल की पॉपुलैरिटी बढ़ गई।1932 में फिल्म मोहब्बत के आंसू रिलीज हुई थी जिससे उन्होंने एक्टिंग डेब्यू किया था। इसी साल रिलीज हुई फिल्म सुबह का सितारा और जिंदा लाश में भी सहगल ने बतौर एक्टर काम किया। हालांकि ये तीनों ही फिल्में फ्लॉप हो गईं। इन फिल्मों की खास बात ये भी है कि तीनों ही फिल्मों में उनका नाम सहगल कश्मीरी था।
एक साल बाद 1933 में फिल्म यहूदी की लड़की रिलीज हुई। इस फिल्म में उन्होंने अपना नाम कुंदन लाल सहगल (के एल सहगल) रखा। ये फिल्म उनके करियर की पहली हिट बनी। 1935 में सहगल की फिल्म देवदास आई। इस फिल्म में उनके गाए हुए दो गाने बालम आन बसो मोरे मन में और दुख के अब दिन बीतत नाही, बहुत फेमस हुए थे। देवदास की सक्सेस के बाद ही सहगल को पहले सुपरस्टार का खिताब मिल गया।
गानों की रॉयल्टी लेने वाले पहले सिंगर थे केएल सहगल
सहगल पहले ऐसे गायक थे जिन्होंने अपने गानों पर रॉयल्टी लेनी शुरू की। उन्होंने हिंदी, पंजाबी, उर्दू, बंगाली और पर्शियन भाषा में भी गीत गाए थे। 1932 से लेकर 1942 तक के युग को सहगल युग के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदी सिनेमा के पहले प्लेबैक सिंगर
एक दिन नितिन बोस पंकज मलिक से मिलने उनके घर पहुंचे, जहां वो नहाते हुए कोई गाना गा रहे थे। वही गाना रेडियो पर भी चल रहा था जिससे वो सुर मिलाकर गा रहे थे। यह देखने के बाद बोस ने पंकज मलिक को सुझाव दिया कि हमें फिल्मों में भी ये प्रयोग करना चाहिए। बोस के इस सुझाव पर प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत हुई और सहगल बने हिंदी सिनेमा के पहले प्लेबैक सिंगर। गाने के बोल थे अंधे की लाठी तू ही और जीवन के सुख। ये दोनों गाने 1936 में नितिन बोस के डायरेक्शन में बनी फिल्म धूप छांव के थे।
जब रेडियो पर रोज सुबह सहगल के गीत बजा करते थे
सहगल की पॉपुलैरिटी इस कदर थी कि कभी भारत के फेमस रेडियो सीलोन में कई साल तक हर सुबह सात बजकर 57 मिनट पर उनका गाना बजता था।
वादे को पूरा करने के लिए ध्यानचंद के लिए गाए थे 14 गाने और घड़ी भी भेंट की थी
सहगल और हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद से जुड़ा एक मजेदार किस्सा है। एक बार एक्टर पृथ्वीराज कपूर मुंबई में हो रहे एक हाॅकी मैच में सहगल को ले गए थे। इस मैच में हॉफ टाइम तक जब कोई गोल नहीं हुआ तो सहगल ने पृथ्वीराज से कहा कि उन्होंने ध्यानचंद और रूप सिंह का बहुत नाम सुना है, लेकिन वो हैरान थे कि हॉफ टाइम तक कोई एक गोल भी नहीं कर पाया।
सहगल की ये बात सुनने के बाद रूप सिंह ने पूछा कि क्या वे दोनों जितने गोल मारेंगे उतने गाने वे सुनाएंगे? सहगल ने उनकी इस शर्त पर हामी भर दी। सेकेंड हाफ में दोनों ने मिलकर 12 गोल कर दिए, लेकिन फाइनल व्हिसल बजने से पहले ही सहगल स्टेडियम छोड़कर जा चुके थे।
अपने वादे को पूरा करने के लिए स्टूडियो आने के लिए सहगल ने ध्यानचंद के घर अपनी कार भेजी, लेकिन वो नहीं आए। इसके बाद सहगल खुद अपनी कार से वहां पर पहुंच गए, जहां पर ध्यानचंद रुके थे। वहां पहुंचकर उन्होंने ध्यानचंद और उनकी टीम के लिए 14 गाने गाए, साथ ही वहां मौजूद हर खिलाड़ी को एक-एक घड़ी भी भेंट की।
बिना शराब पिए गाने की रिकॉर्डिंग नहीं करते थे
1941 में रंजीत मूवीटोन के साथ काम करने के लिए सहगल मुंबई आ गए थे। रंजीत मूवीटोन के साथ एक कॉन्ट्रैक्ट उन्होंने साइन किया था जिसके मुताबिक हर एक फिल्म का उन्हें एक लाख रुपए मिलना था। उस समय के हिसाब से ये एक बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। यहां पर उन्होंने कई हिट फिल्मों के गाने गाए, लेकिन शराबी बन गए। ऐसा कहा जाता था कि वो शराब के नशे में ही गाना रिकॉर्ड करते थे।
शाहजहां फिल्म के लिए नौशाद ने उनसे बिना शराब पिए गवाया और उसके बाद सहगल की जिद पर वही गाना शराब पिलाकर गवाया। बिना पिए सहगल ज्यादा अच्छा गा रहे थे। उन्होंने नौशाद से कहा, ‘आप मेरी जिंदगी में पहले क्यों नहीं आए? अब तो बहुत देर हो गई।’
रिहर्सल में पी गए थे आठ पैग
फिल्म शाहजहां की शूटिंग से जुड़ा एक और किस्सा है। नौशाद की जीवनी ‘जर्रा जो आफ़ताब बना’ में चौधरी जिया इमाम लिखते हैैं, ‘शाहजहां की शूटिंग शुरू हो चुकी थी। नौशाद साहब और मधोक साहब अपने कमरे में बैठे थे, तभी एक शख्स कमरे में दाखिल हुआ जो आंखों पर मोटा चश्मा लगाए था और उसके सिर के बाल गायब थे। मधोक साहब ने नौशाद साहब से उनका परिचय करवाते हुए कहा- ये केएल सहगल जी हैं।
नौशाद साहब उनको सामने देखकर हैरान रह गए थे क्योंकि उन्होंने उनको हमेशा लंबे-लंबे बालों में देखा था। उस वक्त नौशाद साहब को मालूम हुआ कि सहगल साहब शूटिंग के दौरान विग इस्तेमाल करते हैं। जब फिल्म के गीतों की रिकॉर्डिंग का समय आया तो शाम छह बजे रिकॉर्डिंग शुरू हुई। नौशाद ने कुर्सी मंगवाकर रखी तो सहगल साहब बोले, तख्त लाइए। मैं तख्त पर बैठकर गाता हूं। फिर तख्त लाया गया और रिकॉर्डिंग के दौरान सहगल आठ पैग पी गए।
नौशाद साहब, सहगल साहब के साथ पहली बार काम कर रहे थे। वो ये देखकर काफी हैरान थे। रात के दो-तीन बज गए। नौशाद ने सहगल से विनती की कि अब आप आराम कीजिए, रिकॉर्डिंग कल कर लेंगे। म्यूजिशियन थक गए हैं। उसके बाद रिकॉर्डिंग बंद करा दी गई।’
नशे में गरीबों को बांट देते थे कीमती तोहफे
अधिक नशा करने की वजह से न्यू थिएटर्स के ऑफिस से उनकी सैलरी सीधे उनके घर पहुंचाई जाती थी, क्योंकि अगर उनके पास पैसे होते थे तो वह आधा शराब में खर्च कर देते और बाकी जरूरतमंदों में बांट देते। एक बार उन्होंने पुणे में एक विधवा को हीरे की अंगूठी दे दी थी।
सर्दी में खुद के कपड़े निकाल कर भिखारी को दे दिए थे
केएल सहगल की दरियादिली का एक किस्सा और मशहूर है। दिसंबर का महीना था। मुंबई में भी उस वक्त काफी ठंड हुआ करती थी। एक दिन सहगल घर लौट रहे थे। कुछ काम की वजह से उन्होंने दादर के सर्कल पर गाड़ी रोक दी। तभी अचानक एक भिखारी दौड़कर आया और कार के शीशे के बाहर हाथ फैलाकर खड़ा हो गया। उस भिखारी ने एक फटी हुई पैंट और कमीज पहनी हुई थी। उसे देखकर सहगल ने उससे पूछा, क्या तुम्हें ठंड नहीं लग रही है।
सहगल की इस बात पर भिखारी ने कहा- साहब, बहुत ठंड लगती है, पर क्या करूं यही पहनना पड़ता है, क्योंकि सिर्फ यही कपड़े हैं मेरे पास। ठंड, बारिश या गर्मी, कोई भी मौसम हो यही कपड़े पहनता हूं क्योंकि मेरे पास तो सिर्फ यही एक कपड़ा है।
भिखारी की इस बात को सुनकर सहगल भावुक हो गए। उन्होंने गाड़ी से उतरकर ड्राइवर को घर भेजकर भिखारी के लिए कपड़े लाने को कहा। इधर सहगल ने खुद के कपड़े निकाल कर भिखारी को दे दिए और अंडरगार्मेंट्स में वहीं बैठकर अपने ड्राइवर के आने का इंतजार करते रहे। भिखारी ने कहा भी कि वो ऐसा ना करें, लेकिन उन्होंने उसकी एक ना सुनी।
खाने और सिगरेट के भी जबरदस्त शौकीन थे
सहगल को खाना बनाने का बहुत शौक था। मुगलई मीट डिश वह बहुत चाव से बनाते थे और स्टूडियो में ले जाकर साथियों को भी खिलाते थे। यही नहीं, आवाज की चिंता किए बगैर वह अचार, पकौड़े और तली हुई चीजें भी खाते थे। उन्हें सिगरेट की भी लत थी।
सहगल की बचपन से फैन थीं लता दीदी
लता मंगेशकर केएल सहगल से बहुत प्रभावित थीं। बचपन में वो अपने बाबा से कहती थीं कि बड़ी होकर वो केएल सहगल से शादी करेंगी। तब उनके बाबा कहते थे, जब तक तुम्हारी शादी की उम्र होगी, तब वो बहुत उम्रदराज हो जाएंगे।
लता मंगेशकर की चाहत थी कि वो सहगल से एक बार मिल पाएं, लेकिन ऐसा कभी हो नहीं सका। सहगल के निधन के बाद वो सहगल का स्केल चेंजर हारमोनियम अपने पास रखना चाहती थीं, पर सहगल की बेटी ने उसे अपने पास रखते हुए सहगल की रत्न जड़ी अंगूठी लता मंगेशकर को दे दी थी।
शराब की लत की वजह से 43 साल की उम्र में हुआ निधन
शराब की लत इस कदर बढ़ गई थी कि सहगल के काम और सेहत पर भी उसका असर पड़ने लगा था। इस वजह से धीरे-धीरे उनकी सेहत इतनी खराब हो गई कि फिर ठीक नहीं हो पाई। शराब की लत की वजह से 18 जनवरी 1947 को केवल 43 साल की उम्र में सहगल का निधन हो गया। निधन के बाद उनकी आखिरी फिल्म परवान रिलीज हुई थी।