जयपुर सीरियल ब्लास्ट के सभी आरोपी बरी:चारों आरोपी आजमगढ़ के रहने वाले थे, लोअर कोर्ट ने सुनाई थी फांसी; हाईकोर्ट ने पलटा फैसला

13 मई 2008 को जयपुर में हुए सीरियल ब्लास्ट के सभी आरोपियों को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। चारों आरोपियों को जिला कोर्ट ने 20 दिसंबर 2019 में हत्या, राष्ट्रद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत फांसी की सजा सुनाई थी। ये आरोपी यूपी के आजमगढ़ के रहने वाले थे। फांसी की सजा के बाद सभी आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की। सुनवाई करते हुए जस्टिस पंकज भंडारी और समीर जैन की बेंच ने बुधवार को लोअर कोर्ट का फैसला पलट दिया। कहा कि जांच अधिकारी को कानून की जानकारी ही नहीं है। ऐसे में सभी आरोपियों को बरी कर दिया। हालांकि राज्य सरकार इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में जुट गई है।

13 मई 2008 को जयपुर में सीरियल ब्लास्ट हुए थे। इसमें 71 लोगों की जान चली गई थी, जबकि 185 घायल हुए थे। कोर्ट ने केस की जांच में ढिलाई के लिए पूरी गलती एटीएस अफसरों की बताई है। इसके साथ ही डीजीपी को ऐसे अफसरों पर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि इस केस के ऊपर निगाह रखे। इससे पहले 18 फरवरी 2022 को अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट मामले में इन आरोपियों को कोर्ट ने फांसी की भी सजा सुनाई थी। आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिदीन (IM) और बैन किए गए स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) से जुड़े लोगों ने इन धमाकों को अंजाम दिया था।

पुलिस ने 13 लोगों को बनाया था आरोपी
इस मामले में कुल 13 लोगों को पुलिस ने आरोपी बनाया था। तीन आरोपी अब तक फरार है, जबकि तीन आरोपी हैदराबाद और दिल्ली की जेल में बंद है। बाकी बचे दो गुनहगार दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं। चार आरोपी जयपुर जेल में बंद थे, जिन्हें निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी। निचली अदालत में सजा सुनाते वक्त कोर्ट ने कहा था- विस्फोट के पीछे जेहादी मानसिकता थी। यह मानसिकता यहीं नहीं थमी। इसके बाद अहमदाबाद और दिल्ली में भी विस्फोट किए गए। कोर्ट ने मोहम्मद सैफ, सैफुर्रहमान, सरवर आजमी और मोहम्मद सलमान को हत्या, राजद्रोह और विस्फोटक अधिनियम के तहत दोषी पाया था। इन्हें फांसी की सजा सुनाई थी। ये चारों आरोपी यूपी के आजमगढ़ जिले के रहने वाले हैं।इस आधार पर बरी किए गए आरोपी
कोर्ट ने यह पाया कि आरोपियों पर जो चार्ज लगाए गए हैं, वे कहीं से भी प्रूफ नहीं होते हैं। एटीएस और सरकारी वकील एक भी चीज को साबित नहीं कर पाए हैं। एटीएस और सरकारी वकील न तो दिल्ली से जयपुर यात्रा को साबित कर सके हैं, न ही बम इम्प्लांट करने को साबित कर पाए हैं। कोर्ट ने केस की जांच में ढिलाई के लिए पूरी गलती एटीएस अफसरों की बताई है। एटीएस अधिकारियों ने डिस्क्लोजर स्टेटमेंट पर भरोसा किया, लेकिन उससे तीन महीने पहले ही साइकिल शॉप कीपर्स को बुलाकर इन्वेस्टिगेशन कर लेते हैं। उन्हें बम धमाके के चार महीने बाद पहली बार साइकिल खरीदने की इन्फॉर्मेशन मिली थी तो तीन दिन बाद उन्हें किसने बता दिया था कि किशनपोल बाजार से साइकिल खरीदी गई थी। एटीएस के चार अधिकारी इस मामले की जांच कर रहे थे।