सागर शर्मा…द कम्पलीट स्टोरी:अंगूठा चीरकर खून से भगत सिंह की तस्वीर का तिलक किया; ई-रिक्शा मालिक बोला-फर्जी लोन की बात झूठी

सागर शर्मा…वही जो 13 दिसंबर को संसद में कूद गया। कलर बम फोड़ा। तानाशाही के नारे लगाए। गिरफ्तारी हुई तो सरकार ने UAPA लगा दिया। अब यूपी और दिल्ली पुलिस के साथ देश की टॉप जांच एजेंसियां मामले की पड़ताल में लग गई हैं। वह यह पता लगाने की कोशिश में हैं कि सागर का कनेक्शन कहीं सागर के उस पार से तो नहीं! कहां से वो नेगेटिव पावर मिली जो उसे संसद में कूदने के लिए तैयार कर गई? कौन है जिसने उसे तैयार किया?

सागर की पूरी कुंडली खंगाली। उसकी पढ़ाई से लेकर पढ़ाई छोड़ने तक को समझा। भगत सिंह से उसके जुड़ाव को जाना। बैंक में ठगी के प्रयास की जांच की। सागर के उन 5 साथियों से उसके मुलाकात के बारे में जाना जो संसद में हंगामे के आरोपी हैं। मां के उस हठ को भी देखा जिसमें वह कहती हैं कि मुझे अपने बेटे के किए पर कोई पछतावा नहीं है।

दिल्ली में पैदा हुआ, लखनऊ में बगावती होने लगा

लखनऊ का रामनगर इलाका… यहां की सकरी गलियों से होते हुए करीब 500 मीटर आगे बढ़ेंगे तो सागर का एक कमरे का घर है। सागर अपने परिवार के साथ यहां किराए पर रहता है। कमरे में एक तरफ खाना बनता है दूसरी तरफ बाथरूम है। कमरे में ड्राइंग की किताबें रखी हैं जिसमें सागर ने अपने हाथों से खुद की तस्वीर बनाई है। घर में भगत सिंह से जुड़ी किताबें भी थीं जिन्हें इस वाकए के बाद पुलिस अपने साथ ले गई।

सागर के घरवाले बताते हैं कि 1996 में उसकी पैदाइश दिल्ली के बसंत बिहार में हुई। वो करीब 12 साल का था जब पूरा परिवार लखनऊ आ गया। शुरुआत से ही सागर की आदत थी कि अगर कोई उससे किसी काम के लिए चैलेंज कर दे तो वह वो काम करके दिखता था। सागर के पिता रोशन लाल पास के ही सिद्धि स्कूल का एक किस्सा बताते हुए कहते हैं कि जब वो नौवीं कक्षा में था तब स्कूल के टीचर ने उससे कह दिया कि वो कुछ भी कर ले लेकिन पास नहीं हो पाएगा।

इस बात के बाद सागर ने दोगुनी मेहनत से पढाई की और अच्छे नंबरों से पास हुआ। इसके बाद उसने लखनऊ के ही भूपति इंटरमीडिएट कॉलेज से प्राइवेट में इंटर के लिए फॉर्म भरा और 2015 में पढ़ाई पूरी की। सागर की मां रानी बताती हैं कि करीब 17-18 साल की उम्र तक वो एकदम ठीक था। सभी बच्चों की तरह पढ़ता लिखता, खेलता था। परिवार के सभी लोगों का भी ध्यान रखता था। लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे वो बदलने लगा। हमें पता ही नहीं चला कि कब उसने भगत सिंह की किताबें पढ़ना शुरू कर दिया और कब उसके अंदर बगावती तेवर पनपने लगे।

डायरी के हर पन्ने की शुरुआत ‘इंकलाब जिंदाबाद’ से करता

साल 2015 की बात है जब सागर ने भगत सिंह को फॉलो करना शुरू कर दिया था। इसी वक्त उसको डायरी लिखने का शौक चढ़ने लगा। डायरी के लगभग हर पन्ने के सबसे ऊपर इंकलाब जिंदाबाद लिखता। देश प्रेम से जुड़ी कई शायरियां और कविताएं लिखता। उसे जासूसी कहानियां पढ़ना भी बहुत पसंद था।

मां बताती हैं कि उस वक्त हमें अंदाजा नहीं था कि वो अपनी डायरी में क्या लिखता है? लेकिन, इस दौरान उसका स्वभाव बदलने लगा था। वो अजीब बातें करता। समाज में क्रांति लाने की बात करता। हमसे कहता कि अमीर वह नहीं जिसके पास पैसा है, अमीर वह है जिसके पास समाज के लिए कुछ करने की हिम्मत है। वह पूरे समाज का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहता था। हमने कई बार उसको समझाया कि इतनी छोटी उम्र में ऐसी बातें नहीं करना चाहिए। लेकिन जब भी हम उसको समझाते वो हमसे दूरी बनाने लगता।

मां बताती हैं कि वह इकलौता है इसलिए हमें डर था कि अगर सागर से ज्यादा कुछ कहा तो वो खुद को नुकसान ना पहुंचा ले। वो धीरे-धीरे परिवार से दूर होने लगा। घर में जब भी होता तो किसी से बात नहीं करता। उसको किसी चीज का शौक नहीं था लेकिन कोई उसे गरीब कहे तो वो चिढ जाता था।

चुपचाप रहता लेकिन भगत सिंह का अपमान करने पर परिवार से लड़ जाता

सागर की मां रानी बताती हैं कि आज से करीब 5 साल पहले उसने अपने हाथ से भगत सिंह का स्केच बनाया था। उस स्केच को उसके अलमारी के ऊपर चिपका दिया। कुछ देर बाद देखा कि उसने अचानक ब्लेड उठाया और अपना अंगूठा काट लिया। फिर बहते खून से पहले भगत सिंह के स्केच पर तिलक किया उसके बाद खुद टीका लगाया।

रानी कहती हैं कि यह देखकर मैं हैरान रह गई। मैंने चिल्लाया और तस्वीर फाड़कर जमीन पर फेंक दी। इसके बाद सागर गुस्से से भर गया। मुझे घूरकर देखने लगा। इतना गुस्से में मैंने उसे कभी नहीं देखा था। रानी कहती हैं कि वह अक्सर भगत सिंह की तस्वीर बनाता रहता था। एकबार तो उनके जन्मस्थल तक जा चुका था। भगत सिंह के जुड़ाव से उसका स्वभाव भी बदल रहा था।

लखनऊ के फीनिक्स मॉल के बाहर टैटू बनाने का काम करता था सागर
सागर के इस बदलते व्यवहार से पूरे परिवार को फिक्र होने लगी। घरवालों को लगा कि उसे किसी काम में लगा देंगे तो शायद उसकी सोच बदल जाए। इसलिए उसके पिता ने पहले उसे अपने साथ कारपेंटरी के काम पर लगा दिया।

लेकिन उस काम में उसका बिल्कुल मन नहीं लगता था। फिर पिता ने 2017 में जैसे-तैसे पैसे इकट्ठे करके एक ई-रिक्शा खरीदा और उसको चलाने के लिए दे दिया। करीब 1 साल तक ई-रिक्शा चलाने के बाद उसको वो काम भी पसंद नहीं आया। उसको ड्राइंग का शौक था इसलिए वो लखनऊ के फीनिक्स मॉल के बाहर टैटू बनाने का काम करने लगा।