हल्द्वानी हिंसा…थाने से रिवॉल्वर-कारतूस भी लूट ले गए उपद्रवी:सर्च ऑपरेशन के बीच 300 से ज्यादा घरों में ताले; .हिंसाग्रस्त बनभूलपुरा में 5वें दिन भी कर्फ्यू

हल्द्वानी में हुई हिंसा में उपद्रवी थाने से कारतूस भी लूट ले गए थे। पुलिसकर्मी से रिवाल्वर भी छीन ले गए थे। पुलिस अब रिवॉल्वर और कारतूस को रिकवर करने की कोशिश कर रही है। इधर, 5वें दिन हल्द्वानी में हिंसाग्रस्त इलाके को छोड़कर बाकी जगह जिंदगी पटरी पर लौटने लगी है।

हिंसा प्रभावित बनभूलपुरा को छोड़ बाकी शहर में आज से स्कूल खुल रहे हैं। इंटरनेट सेवाएं बहाल की जा चुकी है। लेकिन बनभूलपुरा अभी भी सील है। और यहां कर्फ्यू जारी है। 2 पूर्व पार्षदों और सपा नेताओं समेत हिंसा में अभी तक 30 लोगों को पुलिस अरेस्ट कर चुकी है। हिंसा का मास्टरमाइंड अब्दुल मलिक भी पुलिस हिरासत में है।

हिंसा ग्रस्त इलाके से रिश्तेदारों के यहां भागे लोग
इस बीच, पुलिस ने अर्द्धसैनिक बलों के साथ मिलकर पूरे इलाके में सर्च ऑपरेशन शुरू किया है। इसके बाद से मुस्लिम बाहुल्य इलाके में लोगों ने घर छोड़ दिया है। करीब 300 घरों पर ताले हैं। इन स्थितियों का जायजा लेने जब हम बनभूलपुरा के मलिक का बगीचा इलाके में पहुंचे। तब यहां की गलियों में सन्नाटा पसरा दिखा। ज्यादातर लोग घरों पर ताला लगाकर दूसरी जगहों पर जा चुके हैं।

स्थानीय लोगों ने बताया कि यूपी के शहर और गांवों में चले गए हैं। इलाका सील होने के बावजूद लोग गलियों से बचते-बचाते परिवार समेत यहां से निकल रहे हैं। मुस्लिम कम्युनिटी के घरों पर ताले के सवाल पर नैनीताल के SSP प्रहलाद सिंह मीणा ने दैनिक भास्कर से कहा,”ये पलायन जैसी चीज नहीं है।

उन्होंने आगे कहा कि उपद्रव के दौरान और कर्फ्यू लागू होने के पहले कुछ लोग वहां से चले गए थे। उन्हीं घरों पर ताले लगे हैं। पुलिस मजिस्ट्रेट के आदेश पर घर-घर सर्च ऑपरेशन चला रही है। उपद्रव में शामिल लोग पकड़े जाने के डर से भी इधर-उधर भाग गए होंगे। कर्फ्यू लागू होने के बाद से जो जहां था, वहीं है।

पहले मौत देखी अब बच्चे खाने को तरसे
बनभूलपुरा इलाके में रहने वाले निहाल कहते हैं कि उस दिन हमने अपनी आंखों के सामने मौत देखी थी। लगा नहीं था कि जिंदा बच पाएंगे। तब जैसे तैसे जान बची। अब बच्चे रोटी के निवाले को तरस गए हैं। हम खौफ के साए में सांस ले रहे हैं। ऊपर से घर में खाने पीने को भी कुछ नहीं बचा है। यह हाल सिर्फ निहाल का नहीं है। बल्कि हिंसाग्रस्त इलाकों में जो लोग रह गए हैं। उनको भी खाने पीने की दिक्कत हो रही है।