Vikas Dubey Encounter Case: कानपुर में विकास दुबे एनकाउंटर में पुलिस को क्लीन चिट, जांच कमेटी को कुछ फर्जी नहीं मिला

कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव को बेहद चर्चा में लाने वाले दुर्दांत विकास दुबे और उसके गैंग के साथियों के एनकाउंटर में जांच कमेटी ने उत्तर प्रदेश पुलिस की टीम को क्लीन चिट दी है। न्यायिक जांच में इस मुठभेड़ को भी सही माना गया है।

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश बीएस चौहान और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश शशिकांत अग्रवाल और पूर्व पुलिस महानिदेशक केएल गुप्ता ने करीब आठ महीने की पड़ताल के बाद सोमवार को उत्तर प्रदेश सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। अब इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट में इस एनकाउंटर को लेकर छह जनहित याचिकाएं दायर की गईं। जिनको बाद में एक ही साथ सुना गया और सुप्रीम कोर्ट ने जांच आयोग का गठन किया। न्यायमूॢत चौहान आयोग ने अपनी 130-पृष्ठों की जांच रिपोर्ट में यह दावा किया है कि जांच के दौरान दल ने मुठभेड़ स्थल का निरीक्षण करने के साथ ही बिकरू गांव का भी दौरा दिया। मुठभेड़ करने वाली पुलिस टीम के सदस्यों के बयान लेने का प्रयास करने के साथ मौके पर मौजूद लोगों तथ मीडिया से भी बात की। जांच कमेटी ने विकास दुबे की पत्नी, रिश्तेदारों और गांव के लोगों को भी बयान के लिए बुलाया, लेकिन कोई भी आगे नहीं आया। न्यायमूॢत चौहान ने कथित तौर पर घटनाओं के सबूत या आपूॢत फुटेज देने के लिए आगे नहीं आने के लिए मीडिया के व्यवहार को भी काफी निराशाजनक बताया है।

विकास दुबे ने दो जुलाई 2020 की रात को बिकरू में पुलिस टीम पर हमला बोलकर सीओ सहित आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर की दी थी। इसके बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ कार्रवाई की और भगोड़े विकास दुबे को दस जुलाई को कानपुर में एक एनकाउंटर में ढेर कर दिया। इससे पहले भी उसके गैंग के कई सदस्यों को पुलिस ने मुठभेड़ में ढेर किया। इसके बाद एनकाउंटर के तरीके पर काफी शोर होने लगा। इस प्रकरण की जांच सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस बीएस चौहान की कमेटी को दी। जस्टिस बीएस चौहान कमीशन ने पाया कि विकास दुबे और उसके साथियों के एनकाउंटर में उतर प्रदेश पुलिस ने कुछ भी गलत नहीं किया। विकास दुबे एनकाउंटर की जांच करने वाले कमीशन ने उत्तर प्रदेश पुलिस टीम को क्लीन चिट दे दी है। जस्टिस बीएस चौहान कमीशन ने पाया कि विकास दुबे और उसके साथियों के फर्जी एनकाउंटर पर उतर प्रदेश पुलिस के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है। करीब आठ महीने की जांच के बाद कमेटी को कोई गवाह नहीं मिला, जिससे यह साबित हो सके कि एनकाउंटर फर्जी था।

ïकानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में दो जुलाई 2020 की देर रात दबिश देने गई पुलिस टीम पर हमला बोल गैंगस्टर विकास दुबे ने सीओ सहित आठ पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट की जांच टीम जस्टिस बीएस चौहान कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यूपी पुलिस को क्लीन चिट दी है। जांच के बाद इस कमेटी को कोई गवाह नहीं मिला, जिससे यह साबित हो सके कि एनकाउंटर पुलिस की मंशा के अनुरूप और फर्जी था। जांच के दौरान जस्टिस बीएस चौहान ने कई पुलिसकॢमयों से पूछताछ की, लेकिन कमेटी को एक भी पुख्ता सबूत नहीं मिले जिससे यह साबित हो सके कि एनकाउंटर फर्जी था। इसके बाद साक्ष्यों के आभाव में विकास दुबे एनकाउंटर मामले में पुलिस को क्लीन चिट दे दी गई है।

चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में पुलिस टीम पर विकास दुबे और उसके गुर्गों ने अंधाधुंध फायरिंग की थी। इसमें आठ पुलिसकर्मी बलिदानी हो गए थे। इसके बाद एक्शन में आई पुलिस ने उसके चार गुर्गों को पुलिस मुठभेड़ में मार गिराया था। फरार चल रहे मुख्य आरोपी विकास दुबे ने नौ जुलाई को नाटकीय ढंग से उज्जैन के महाकाल मंदिर में सरेंडर कर दिया। इसके बाद उज्जैन से वापस लाते समय दस जुलाई को कानपुर में बरसात में पुलिस की गाड़ी पलटने के बाद विकास दुबे पुलिस की पिस्टल लेकर भागा था, जिसके बाद पुलिस टीम ने उसका पीछा किया। उसने पुलिस टीम पर फायरिंग की। पुलिस की जवाबी फायरिंग में विकास दुबे ढेर हो गया। इसके बाद पुलिस टीम के एनकाउंटर के तरीके पर काफी शोर मचा। इसके बाद एसआइटी सहित कई जांच कमेटी ने विकास दुबे और उसके गैंग को दोषी माना।

एसआइटी की रिपोर्ट पर एक्शन: इससे पहले सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी इस केस की जांच के लिए एसआइटी का गठन किया था। जिसने अपनी रिपोर्ट में 50 से अधिक पुलिसकर्मियों को विकास दुबे गैंग के साथ लगातार सम्पर्क में रहने का दोषी माना था। अपर मुख्य सचिव संजय भूसरेड्डी की अध्यक्षता वाली एसआईटी और इसमें अतिरिक्त डीजी हरि राम शर्मा और डीआईजी रविंदर गौड़ शामिल थे। इस एसआइटी ने विकास दुबे के साथ सम्पर्क में लगातार रहने वाले पुलिस तथा तहसील कर्मियों के खिलाफ जांच की सिफारिश की है। एसआईटी ने बीते नवंबर में दी गई 3,500 पेज की अपनी रिपोर्ट में तत्कालीन डीआईजी कानपुर अनंत देव तिवारी को इस गिरोह के साथ सांठगांठ के लिए दोषी ठहराया था, जिसके बाद तिवारी को निलंबित कर दिया गया था। कानपुर के इस प्रकरण में कुछ अधिकारियों और पुलिसकर्मियों की कथित भूमिका का विवरण देते हुए 36 सिफारिशें कीं थीं।