World elders day 2021: उम्र तो बस एक आंकड़ा है, बुढ़ापे का संबंध ऐज से कम, हौसलापरस्ती से अधिक

World elders day 2021 पृथ्वी पर वनस्पतियों सहित सभी प्राणियों का जीवनकाल नियत है। स्थूल तौर पर जन्म, वृद्धि, परिपक्वता, क्षरण यानी क्रमगत गिरावट की अवस्थाओं से गुजरते हुए एक दिन उसका अंत हो जाता है। तथापि मनुष्य में निहित अथाह सामथ्र्यशील सूक्ष्मतत्व के कारण उसकी नियति अन्य सभी जीवों से भिन्न है। यह सूक्ष्मतत्व इतना सशक्त, अद्भुत और अबूझ है कि इसे ‘दिव्य’ मानना अनुचित न होगा। प्रचंड क्षमतायुक्त एक स्वतंत्र मस्तिष्क, विचार, संवेदनाएं और भावनाएं इसी सूक्ष्मतत्व के रूप हैं। जिस सीमा तक मनुष्य इन दिव्य क्षमताओं से तादात्म्य बनाए रखता है, उसी सीमा तक वह अपने भौतिक अस्तित्व को जीवंत रखने या बूढ़ा न होने में समर्थ होगा।

उम्र तो सरकती रहेगी, हां बुढ़ापे पर नकेल कसी जा सकती है। बुढ़ापे का संबंध उम्र से कम, हौसलापरस्ती और जीवंतता से अधिक है। बेशक वरिष्ठजन और वृद्ध समानार्थी हैं, किंतु दोनों पर्याय नहीं हैं। एक व्यक्ति आश्वस्त रहता है कि वह अमुक कार्य कर ही नहीं सकता, दूसरा आश्वस्त होता है कि वह फलां कार्य अवश्य कर लेगा। दोनों सही सोचते हैं और अपनी सोच के अनुरूप फल पाते हैं। साठ वर्ष का बूढ़ा और साठ वर्ष का युवा वाली उक्ति आपने सुनी होगी। पहला सेवानिवृत्ति के बाद परिजनों, मित्रों से मेलजोल कम करने लगा। उसे कभी बाएं हाथ में तकलीफ हो जाती तो कभी दाएं पांव में। अधिसंख्य उम्रदारों की भांति अपनी संतानों के सरोकारों तक उसकी दास्तान सीमित रहती है। सुनने वाला न मिले तो कालोनी के चौकीदार को रोक कर, बल्कि उससे बतियाने से ज्यादा स्वयं को समझाने की नाहक चेष्टा की जाती है कि बेटा लायक है, परदेश में है, खुश है, तरक्की की राह पर है। ऐसे उम्रदारों की जिंदगी का मुख्य एजेंडा बिजली, पानी, टेलीफोन के बिल यथासमय चुकाने, डाक्टरी जांचों और इलाज के लिए अस्पताल जाने-लौटने तक सिमट जाता है। संवाद के नाम पर दो-चार शब्दों का आदान प्रदान, बस। ऐसी दशा उम्रदारों को एकाकीपन और डिप्रेशन की ओर ठेलती है। देश के 60 वर्ष से ऊपर के 14 करोड़ व्यक्ति कमोबेश इसी दुर्गत में हैं।

इसके उलट साठ वर्ष के युवा के लिए उम्रदारी का अर्थ यह नहीं कि घर-परिवार, समाज से दरकिनार हो कर गुमसुम और मायूस रहा जाए। उसे ज्ञान होता है कि इस आयु में संतान से लिपटे-चिपटे रहना दोनों पक्षों में से किसी के हित में नहीं है, चूंकि युवा पीढ़ी की अपनी प्राथमिकताएं हैं। समय की बदलती नब्ज को भांपते हुए वह नित नए घटनाक्रम और अभिनव वस्तुओं, तकनीक, घटनाओं से बेरुख नहीं होगा, उनमें रुचि लेगा। पारिवारिक मामलों में वह अन्य सदस्यों के कार्य में हस्तक्षेप तो दूर, बिन मांगी सलाह भी नहीं देगा। वह जानता है इससे संबंधों में कटुता आ सकती है। जिजीविषा से अभिप्रेरित उम्रदराज को संशय नहीं रहता कि पेड़ तले छोटे पौधे ठीक से नहीं पनपते।

वैचारिक विपन्नता से उत्पन्न बेचारगी से वे उम्रदार प्राय: जूझते हैं जिन्होंने अपनी औसत बुद्धि संतान को उचित संस्कार नहीं दिए, बल्कि किसी भी जोड़तोड़ से पद, प्रतिष्ठा, पैसा जुटाना सिखाया। फिर उनसे वे उम्मीदें बांधी जिन्हें पूरा होना ही न था। जीवन के शेष दिन सुख-चैन से गुजारने के लिए संतान पर इतराने की अपेक्षा उन्हीं गतिविधियों में संलग्न रहा जाए जो आपके मन, चित्त और शरीर के लिए हितकर हों।

वास्तविक परिस्थिति से बढ़ कर वह सोच है, जो व्यक्ति को खुश या दुखी रखता है। अर्थात खेल नजरिये का है। मनुष्य का जन्म, उसके विचार, उसका चिंतन और उसकी विवेकशीलता इहलोक की अस्मिताएं नहीं हैं। अत: इन तीनों के स्वरूप, उद्भव और कार्यप्रणाली के अनेक आयामों को भलीभांति समझने में विज्ञान गच्चा खाते रहे हैं। जब खलील जिब्रान ने कहा, विचार अंतरिक्ष का पक्षी है, पिंजड़े में वह फड़फड़ा भर सकता है, पंख नहीं खोल सकता। उनका आशय उस परम शक्ति को जानने-समझने से था जिसके हम अभिन्न अंग हैं तथा मायावी अस्मिताओं के बदले उसी में चित्त लगाएंगे तो उम्रदारी बोझ नहीं बनेगी।

सृष्टि का विधान है, आपकी भूमिका तभी तक रहेगी जब तक आप दूसरों के लिए उपयोगी रहेंगे। परिवारजनों, परिजनों के लिए कुछ करने की मन में रहेगी तो दूसरों को आपसे मिलते लाभ से अधिक अहम आपका संतुष्टिभाव है, जो आपको रचनात्मक मुद्रा में रखेगा। जिस मशीन से काम लेना बंद कर देते हैं वह कालांतर में कबाड़ में तब्दील हो जाती है। कर्मरत रहेंगे तो आपके शारीरिक अंग-प्रत्यंग तथा मस्तिष्क की कोशिकाएं सुन्न नहीं पड़ेंगी और दुरुस्त रहने के लिए आपके पास एजेंडा होगा। उत्साह चरम हो तो शरीर के अंग-प्रत्यंग साथ देते हैं। वही उम्रदार तन-मन से शेष दिन संतुष्टि से बिताते हैं, जो सर्वप्रथम अपने बूते दैनंदिन कार्य संतोषजनक रूप से निपटाने में सक्षम हों। यहां अभिप्राय घरेलू कार्य के लिए परनिर्भरता घटाने से है। किसी बड़े मिशन से न जुड़े हों या कोई शौक न हो तो सत्संग, इच्छा के अनुकूल साहित्य का अनुशीलन, किचन-गार्डन, पक्षी पालन जैसी गतिविधि में मनोयोग से जुड़ जाएं।