राजू श्रीवास्तव के निधन से पूरी इंडस्ट्री में शोक की लहर है। राजू का जाना इंडस्ट्री के लिए किसी बड़े नुकसान से कम नहीं है। राजू की मौत से उनके दोस्त और परिवार समेत हर कोई गहरे सदमे में है। दैनिक भास्कर ने राजू के करीबी दोस्त और कॉमेडियन सुनील पॉल से उनके बारे में खास बातचीत की। आइए जानते हैं उनकी बातचीत के प्रमुख अंश-
राजू श्रीवास्तव रियल लाइफ में भी किंग थे
राजू श्रीवास्तव का चले जाना बेहद दुख की बात है। वे कॉमेडी में ही नहीं, बल्कि रियल लाइफ में भी किंग थे। राजू भाई दिल से लोगों की मदद की है और पता भी नहीं लगने देते थे। अपने जूनियर से बहुत लगाव रखते थे और सीनियर की बड़ी इज्जत भी करते थे। मुझे तो शुरू से उनका सान्निध्य प्राप्त रहा। खाना, गाना और हंसाना, उनके ये तीन शौक मुझे हमेशा प्रेरित करते रहेंगे। यह हर किसी को अपनाना चाहिए। वे रोड पर भी मिल जाते थे, तब वहां से बड़ा-पाव खरीदकर खाते, गाना सुनते-सुनाते और हंसाते थे। उनका जाना हम कॉमेडियन पर कुदरत का बहुत बड़ा अन्याय है। पूरी इंडस्ट्री पर ताला लग गया है। भगवान उनकी आत्मा को शांति दे
शुरुआती दिनों से राजू भाई का साथ रहा
राजू श्रीवास्तव जी को अपने शुरुआती दिनों से जानता हूं, जब मैं 1995 में नागपुर से मुंबई आया था, तब से उनके परिवार का हिस्सा हूं। हमारा पारिवारिक संबंध रहा है। जब मैं आया था, तब वे बहुत बड़े स्टार थे। उस समय कोई अगर स्टेज का किंग था, तो वे राजू भाई थे। मैं राजू भाई की कैसेट बहुत सुनता था, क्योंकि यह कैसेट किंग थे, इसलिए नागपुर से सपना लेकर आया था कि उनसे मेरी मुलाकात हो जाए। मुझे लगा था कि जॉनी भाई फिल्मों में काम करते हैं, फिल्मों में काम करना बहुत मुश्किल और बहुत बड़ा काम है, लेकिन कैसेट के लिए स्ट्रगल कर सकते हैं, इसलिए राजू भाई से मिला तो उनका सान्निध्य प्राप्त हुआ। मैं मुंबई में नया-नया आया था, इसलिए खर्चा-पानी देते थे। परिचय हुआ, तब अपने घर ले जाते थे। रिकॉर्डिंग में ले जाते थे। उनका वीडियो शूट हुआ, तब उसमें भी मुझे रखे थे। उन्होंने एक शार्गिद की तरह, एक छोटे भाई की तरह हमेशा उन्होंने मुझे संभाला। लाफ्टर से पहले उनके साथ वीडियो वगैरह भी किया।
नए कलाकारों की मदद करते थे
कोई भी नया कलाकार उनके पास चला जाए, तब उसकी बहुत मदद करते थे। अगर उसे कंवेंस वगैरह के लिए 100-200 की जरूरत है, तब दो-तीन हजार रुपए उसकी जेब में डाल देते थे। मेरी जब पहली मुलाकात हुई, तब उन्होंने मुझे बीआर डबिंग थिएटर में बुलाया था। उनके भाई दीपू श्रीवास्तव ने मेरी बात करवाई थी। पहली मुलाकात में ही उन्होंने अपना बना लिया। उस समय उनके पास मारुति कार थी। स्टूडियो से निकलने के बाद बोले कि तुझे कहीं छोड़ दूं क्या? मैंने कहा कि नहीं, यहीं बगल में रहता हूं। आपको अपोजिट साइड जाना है, खामखा उधर क्यों जाएंगे। इतना सुनने के बाद चुपचाप मुझे एक किनारे लेकर गए और मेरी जेब 600-700 रुपए डाल दिए। यह 1995-96 की बात है। वे अपने जूनियर को बहुत प्यार करते थे और सीनियर की बहुत इज्जत करते थे। उन्होंने अपने जूनियर ही क्या, मैंने देखा है कि जरूरतमंद सीनियर की भी बड़ी मदद की है। हमेशा उनका हेल्पफुल नेचर रहा है।
कभी फ्री में काम कर जाते थे, तब कभी चुपके से हॉल का किराया चुकता कर देते थे
मैं कभी फिल्म में उन्हें काम करने के लिए रिक्वेस्ट करता था, तब आ जाते थे और पूरा दिन काम करके चले जाते थे। उन्होंने ‘मनी बैंक गारंटी’,’भावनाओं को समझो’ आदि फिल्मों में काम किया। एक फंक्शन एक सीनियर कलाकार के जाने के दुख में किया था, तब राजू भाई ने पूछा कि यह तू कर रहा है। मैंने कहा कि हां, मैं कर रहा हूं। तब बोले- मैं सभी दोस्तों को लेकर आता हूं। कौन-से हॉल में कर रहे हो? मैंने बताया कि अंधेरी लोखंडवाला स्थित व्यंजन हॉल में रखा है। तब चुपके से अपने बंदों को भेजकर उस हॉल का पूरा किराया चुकता करवा दिया। यह दो साल पहले की बात है। वे हमेशा कहते थे कि सुनील! अपने दोस्तों में कोई पार्टी-फंक्शन-शादी वगैरह कर रहा होगा, तब मुझे बता देना। उसका आधा हिस्सा अपनी तरफ कर लेंगे। उनका जैसा राजू नाम था, वैसे ही दिल से राजा थे। जैसे कॉमेडी किंग कहा जाता है, वे वाकई में किंग थे।
वे जहां जाते थे, वहां का माहौल बन जाता था
निजी जीवन में भी बड़े हंसमुख स्वभाव के थे। हमेशा हंसते और सबको हंसाते थे। हंसने-हंसाने का वे कोई मौका नहीं छोड़ते थे। उन्हें हमेशा दोस्तों के बीच रहना अच्छा लगता था। मैं कभी फोन करके हालचाल पूछता था, तब बोलते थे कि आ जा, आ जा यार ऑफिस में बैठते हैं। गप्पे लड़ाते थे और बताते थे कि मैंने यह नया आइटम बनाया है। खाने-पीने के शौकीन थे। उनके ऑफिस पहुंचने की देर होती थी, कभी समोसा तो कभी ढोकला मंगवा लेते थे। उन्हें नॉनवेज भी खाने का शौक था। हम जब-जब साथ में शोज करते थे, तब नॉनवेज भी खाते थे। वे जहां जाते थे, वहां का माहौल बन जाता था, ऐसा उनका एक ऑरा था। वे हमेशा यह मानते थे कि कॉमेडी गांव से, रास्ते से, रोड से, बस से शुरू होती है। शायद यही वजह रही होगी कि बिल्डिंग के वॉचमैन से घंटों-घंटों बात करते थे। कहीं ऑटो में जाते थे, तब उससे बातें करते थे।