गहलोत-पायलट गुट में सुलह कराने में जुटी कांग्रेस:राजस्थान में गुटबाजी सुलझाने के साथ 2023 में सरकार रिपीट करने पर फोकस

सियासी संकट से जूझ रही कांग्रेस इन दिनों राजस्थान को लेकर सहमति बनाने में लगी है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट के बीच विवाद सुलझा नहीं है। कांग्रेस के नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बुधवार को पदभार ग्रहण कर रहे हैं। माना जा रहा है कि इसके बाद कांग्रेस राजस्थान के मसले को सुलझाने में लगेगी। ऐसे में राजनीतिक जानकारों और कांग्रेस के सूत्रों का मानना है कि कांग्रेस इसे लेकर सहमति बनाने में जुट गई है।

गहलोत और पायलट खेमे के बीच विवाद किस स्तर पर है, यह पिछले दिनों सामने आ चुका है। 25 सितंबर को जिस तरह विधायकों ने इस्तीफे दिए और उसके बाद मंत्रियों-विधायकों की ओर से लगातार बयानबाजी। इससे कांग्रेस की राजस्थान सरकार संकट गहराता नजर आया। ऐसे में सरकार को बचाए रखने और गुटबाजी से निपटने के लिए अब कांग्रेस आपस में सहमति बनाने में जुट गई है।

इस मसले का हल निकालने समय कांग्रेस के सामने यह संकट भी है कि 2023 के विधानसभा चुनाव को भी ध्यान रखना है। पिछले साल पंजाब में चुनाव से ऐन पहले चरणजीत चन्नी को सीएम बनाए जाने के बाद कांग्रेस बुरी तरह से हार गई थी। फिर कांग्रेस के उस निर्णय पर कई सवाल उठे। ऐसे में कांग्रेस राजस्थान में उन हालातों से बचने के लिए नए समीकरण बनाने में लगी है।

3 तरीके से दोनों खेमों में सहमति बनाने के प्रयास

अशोक गहलोत के नाम पर

हाईकमान अशोक गहलोत के नाम पर सहमति बनाने का प्रयास कर रहा है। प्रेशर पॉलिटिक्स और पिछले कुछ समय में जो कुछ भी हुआ उसे देखते हुए हाईकमान की नाराजगी जरूर है। मगर राजस्थान में गहलोत की लोकप्रियता और खासतौर से वर्तमान सरकार को सुरक्षित ढंग से चलाने को लेकर हाईकमान गहलोत के नाम पर सहमति बनाने की कोशिश में है। हालांकि पायलट गुट इसके लिए राजी नहीं है।

सचिन पायलट के नाम पर

इस्तीफा पॉलिटिक्स के बावजूद हाईकमान कोशिश कर रहा है कि सचिन पायलट के नाम पर सहमति बन जाए। मगर यह काफी मुश्किल लगता है। जिस तरह से विधायकों ने इस्तीफे दिए उसके बाद हाईकमान अगर अपनी ओर से एक लाइन का मैसेज देता भी है तो सरकार गिरने का खतरा है। हाईकमान इसकी कोशिश कर रहा है। मगर गहलोत गुट इसके लिए तैयार नहीं है।

किसी तीसरे नाम पर सहमति बनाने की कोशिश

हाईकमान यह भी देख रहा कि गहलोत-पायलट की लड़ाई में किसी ऐसे व्यक्ति को राजस्थान की कमान दे दी जाए, जिससे सभी सहमत हों। मगर इसमें संकट यह है कि ऐसे ही किसी तीसरे व्यक्ति को कमान देने से उसका असर 2023 विधानसभा चुनाव पर पड़ने की संभावना है। 2023 में कांग्रेस को वोट दिलाने वाले चेहरों में फिलहाल गहलोत और पायलट ही हैं। ऐसे में सहमति बनाने के प्रयास में अगर किसी ऐसे चेहरे को सीएम बना दिया जाए, जिसकी स्वीकार्यता न हो तो इसका बुरा असर 2023 चुनाव पर पड़ सकता है।

संगठन हुआ न्यूट्रल, बयानबाजी भी थमी

पिछले कुछ समय से इस पूरे घटनाक्रम को लेकर राजस्थान का कांग्रेस संगठन न्यूट्रल हो गया है। वहीं, नेताओं की ओर से बयानबाजी रुक चुकी है। कुछ एक नेताओं को छोड़ ज्यादातर नेताओं ने चुप्पी साध ली है। इस बीच गोविंद सिंह डोटासरा पीसीसी चीफ होने के नाते पिछले कुछ समय से बिल्कुल न्यूट्रल नजर आ रहे हैं। पिछले दिनों प्रताप सिंह खाचरियावास की सचिन पायलट से मुलाकात और अशोक चांदना के जन्मदिन पर पायलट के उन्हें बधाई देने से विधायकों के बीच स्थितियां बेहतर होती दिखाई पड़ रही हैं।

इसी दौरान कांग्रेस ने अपने स्तर पर भी विधायकों से सर्वे करवाया है, जिसमें ज्यादातर विधायक हाईकमान के फैसले को सहमति देते नजर आ रहे हैं। वहीं कुछ विधायक गहलोत तो कुछ पायलट खेमे के साथ अपनी वफादारी बताते नजर आए हैं। ऐसे में कांग्रेस का फोकस इस पर है कि किस तरह ऐसा निर्णय किया जाए जिससे वर्तमान सरकार पर भी संकट न आए और 2023 के लिहाज से भी निर्णय बेहतर साबित हो।

पंजाब में कुछ ऐसा ही हुआ था विवाद

सालभर पहले हाईकमान ने पंजाब में अमरिंदर सिंह को पंजाब सीएम के पद से इस्तीफा देने को कह दिया था। उस दौरान पंजाब में अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच तनातनी थी। इसके बाद सिद्धू को सीएम नहीं बनाकर चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया गया। सिद्धू को प्रदेश की कमान सौंपी गई। इन प्रयोगों का असर यह हुआ कि सत्ता में काबिज कांग्रेस पंजाब के 2022 के चुनाव में महज 18 सीटों पर आ गई। पंजाब की जनता तय ही नहीं कर पाई कि वह किस चेहरे के लिए वोट कर रही है।

राजस्थान में 6 नए जिले बना सकती है सरकार:24 जिलों से 60 क्षेत्र दावेदार; रामलुभाया कमेटी की रिपोर्ट पर होगा फैसला

चुनावी साल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राजस्थान में पांच से छह नए जिले बनाने की घोषणा कर सकते हैं। नए जिलों के गठन पर सिफारिश के लिए रिटायर्ड आईएएस रामलुभाया की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी की रिपोर्ट आने में दो महीने की देरी के आसार हैं। दिसंबर तक कमेटी अपनी रिपोर्ट सरकार को दे सकती है, जिसमें प्रदेश के 60 अलग-अलग जगहों को जिला बनाने की मांग पर कमेटी अपना मत देगी।