हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर से सरकार बदलने की परंपरा जारी रही। राज्य की 68 सीटों में से कांग्रेस ने 40 सीटें जीतकर बहुमत, यानी 35 का आंकड़ा पार कर लिया। वहीं रिवाज बदलने का नारा देने वाली भाजपा 44 से 25 सीटों पर सिमट गई। उसे 19 सीटों का नुकसान हुआ। 3 सीटों पर निर्दलियों ने जीत दर्ज की। एंटी इन्कम्बेंसी, परफॉर्मेंस, टिकट बंटवारा या फिर अपनों की बगावत।
आइए 10 पॉइंट में जानते हैं कि आखिर किन वजहों से भाजपा सत्ता नहीं बचा सकी…
1. लोगों की नाराजगी और रिकॉर्ड वोटिंग
2022 के चुनाव में हिमाचल में रिकॉर्ड 76% वोटिंग हुई। यह अब तक का रिकॉर्ड रहा। हालांकि, पिछले 37 साल में हिमाचल में वोट प्रतिशत बढ़े या घटे सत्ताधारी दल को सरकार गंवानी पड़ी है। इस बार सरकारी कर्मचारी और सेब किसान सरकार से नाराज थे। नतीजा, भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले इस बार 6% कम वोट मिले।
इसमें से 2% वोट कांग्रेस के खाते में शिफ्ट हुए, जबकि बाकी के 4% निर्दलीय और आम आदमी पार्टी के खाते में गए। कांग्रेस को इससे 19 सीटों का फायदा हुआ। पिछली बार की तरह इस बार भी निर्दलीय 3 सीट जीतने में कामयाब हुए। वहीं पहली बार मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी भी 1.1% वोट लेने में कामयाब रही।
2. प्रेम कुमार धूमल की अनदेखी महंगी पड़ी
केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर एवं पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के गृह जिले हमीरपुर में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। यहां की 5 में से 4 सीटें कांग्रेस और 1 निर्दलीय ने जीती। इस बार धूमल ने खुद चुनाव नहीं लड़ा। पूरे चुनाव में धूमल कैंप शांत रहा, क्योंकि पिछले 5 साल के दौरान नड्डा और CM जयराम ठाकुर ने धूमल कैंप के लोगों को साइडलाइन कर रखा।
हालांकि, अनुराग ठाकुर ने हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में सभाएं कीं, लेकिन खुद धूमल खास एक्टिव नहीं रहे। ऐसी चर्चाएं रहीं कि अंदरखाते धूमल कैंप भी नहीं चाहता था कि इस बार पार्टी चुनाव जीते।
3. BJP को उलटा पड़ा टिकट काटने का दांव
भाजपा ने चुनाव से पहले अपने सिटिंग विधायकों के प्रति लोगों की नाराजगी को पहले ही भांप लिया था, लेकिन वह इससे निपटने की रणनीति में फेल हो गई। जिन 10 सिटिंग MLA के टिकट काटे, उन्होंने अंदरखाते बगावत कर दी। कई ऐसे MLA को टिकट दे दी गईं जिनका विरोध हुआ। यह लोग भी जीत नहीं सके। धर्मपुर सीट से लगातार 7 चुनाव जीतने का रिकॉर्ड बना चुके मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर की जगह उनके बेटे रजत ठाकुर को टिकट दिया, लेकिन वह भी हार गए।
4. भाजपा के 21 बागी भारी पड़े
टिकट वितरण के बाद राज्य की 68 में से 21 सीटों पर भाजपा में बगावत हो गई। किन्नौर में पूर्व MLA तेजवंत नेगी ने टिकट न मिलने पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और वहां भाजपा हार गई। देहरा सीट पर भी निर्दलीय चुनाव लड़े होशियार सिंह ने लगातार दूसरी बार जीत दर्ज की। चुनाव से पहले भाजपा ने होशियार सिंह को पार्टी में शामिल तो किया, लेकिन टिकट नहीं दिया।
इसके बाद उन्होंने भाजपा छोड़कर चुनाव लड़ा। फतेहपुर सीट पर पार्टी उपाध्यक्ष कृपाल परमार की बगावत से मंत्री राकेश पठानिया हार गए। कुल्लू और मनाली सीट पर भी भाजपा के बागियों ने पार्टी उम्मीदवारों की हार में अहम भूमिका निभाई। नालागढ़ सीट पर BJP के बागी केएल ठाकुर निर्दलीय जीत गए। चंबा सदर सीट पर पहले टिकट देने और फिर वापस ले लेने की वजह से बागी हुई इंदिरा कपूर के कारण भाजपा को कांग्रेस के हाथों हार मिली।
5. मंत्रियों को दोबारा टिकट देना महंगा पड़ा
इस बार भाजपा सरकार के 10 में से 8 मंत्री चुनाव हार गए। चुनाव हारने वाले मंत्रियों में सुरेश भारद्वाज, रामलाल मारकंडा, वीरेंद्र कंवर, गोविंद सिंह ठाकुर, राकेश पठानिया, डॉ. राजीव सैजल, सरवीण चौधरी, राजेंद्र गर्ग शामिल रहे। CM जयराम ठाकुर के अलावा बिक्रम ठाकुर और सुखराम चौधरी ही चुनाव जीत पाए।
दरअसल जयराम के मंत्रियों को लेकर लोगों में जबर्दस्ती नाराजगी थी। लोगों को ये शिकायत रही कि इन मंत्रियों तक पहुंचना बेहद मुश्किल रहा। उनके जरूरी काम भी ये मंत्री नहीं करवाते थे। वर्क फ्रंट पर भी इन मंत्रियों की परफार्मेंस बेहद खराब रही। चुनाव से पहले कराए गए सर्वे के बाद भी कई मंत्रियों को मैदान में उतारना गलत फैसला रहा।
6. ओल्ड पेंशन स्कीम पर भाजपा की चुप्पी हिमाचल में कुल ढाई लाख कर्मचारी हैं, यानी हर दूसरे घर से कम से कम एक शख्स सरकारी नौकरी में है। कर्मचारी डॉमिनेंट स्टेट होने की वजह से कहा भी जाता है कि यहां कर्मचारी जिस पार्टी के खिलाफ होते हैं, वह सरकार से बाहर हो जाती है। हिमाचल के तमाम कर्मचारी पिछले दो-तीन साल से ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) के लिए आंदोलन कर रहे थे, लेकिन सत्तारूढ़ BJP इस मुद्दे पर कभी खुलकर नहीं बोली। दूसरी ओर कांग्रेस ने सत्ता में आने पर पहली ही कैबिनेट में OPS लागू करने की गारंटी दे दी। इसका फायदा उसे मिला।
7. सेब बागवानों की भाजपा से नाराजगी
जयराम ठाकुर सरकार के कार्यकाल में सेब पैकिंग से जुड़े सामान पर GST लगने से सेब बागवान भाजपा से नाराज थे। हिमाचल के 24 विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं, जहां अधिकतर परिवारों की रोजी-रोटी सेब की खेती पर निर्भर रहती है। इनमें 14 विधानसभा क्षेत्रों में तो 80 फीसदी परिवार पूरी तरह सेब पर निर्भर हैं। उन्होंने इसके लिए लंबा आंदोलन भी किया, लेकिन सरकार ने सुनवाई नहीं की।
अपर हिमाचल और सेब बेल्ट में भाजपा की करारी हार हुई। शिमला, कुल्लू, लाहुल-स्पीति और किन्नौर में उसकी बुरी हालत रही। कबायली जिलों किन्नौर और लाहौल स्पीति में कांग्रेस जीती। सोलन में भाजपा का सूपड़ा साफ हो गया। शिमला जिले की भी 8 में से 5 सीटें कांग्रेस को मिलीं।
8. कांग्रेस का वादा- हर महिला को 1500 रुपए
कांग्रेस ने राज्य में 18 साल से बड़ी उम्र की हर महिला को 1500 रुपए प्रतिमाह देने की गारंटी दी। वैसे यह वादा आम आदमी पार्टी ने भी किया था, लेकिन वह चुनाव से पहले ही मैदान छोड़ गई। इसकी वजह से महिलाओं ने कांग्रेस के हक में वोटिंग की। हिमाचल में इस बार महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले 6 फीसदी अधिक रहा था।
9. पांच लाख नौकरियों का वादा
हिमाचल को कर्मचारियों का स्टेट कहा जाता है, जबकि जयराम की अगुआई वाली भाजपा सरकार पिछले 5 साल में नौकरियां देने में नाकाम रही। जयराम ठाकुर अपने कार्यकाल में हुई नियुक्तियों को लेकर लगातार कटघरे में रहे। कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे को समय से पहले भांप लिया। प्रियंका गांधी ने अपनी हर सभा और रैली में वादा किया कि कांग्रेस पार्टी की सरकार बनने पर पहली ही कैबिनेट में 1 लाख नौकरियां देने का फैसला लिया जाएगा। यानी कांग्रेस ने 5 साल में 5 लाख नौकरियां देने का वादा किया।
हिमाचल से बड़ी संख्या में युवा सेना में जाते हैं। केंद्र सरकार ने आर्मी भर्ती के लिए अग्निवीर स्कीम लागू की जिसकी वजह से हिमाचल में बहुत अधिक नाराजगी थी। कांग्रेस की ओर से प्रचार की कमान संभालने वाली प्रियंका गांधी ने अपनी हर रैली में खुलकर इसका विरोध किया और यहां तक कहा कि केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनने पर इस स्कीम को ही बंद कर दिया जाएगा। हालांकि, कांग्रेस को इसका सीधा फायदा इसलिए हुआ क्योंकि लोग भाजपा से नाराज थे।
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