दुनिया के सबसे शरीफ खलनायक नांबियार:वो विलेन जिसके पैर रजनीकांत भी छूते थे, इनके कहने पर अमिताभ भी 7 किलोमीटर नंगे पांव चले

18 नवंबर 2008 की बात है…

एम.एन. नांबियार ने पत्नी रुक्मिणी को अपने पास बुलाकर बैठाया। उन्होंने पत्नी से बातों ही बातों में कहा, ‘तुमने जिंदगी भर मेरा खूब ख्याल रखा, इसके लिए तुम्हारा शुक्रिया। अब मेरी वजह से तुम्हें और परेशान नहीं होना पड़ेगा।’ पत्नी उनकी कही बात नजरअंदाज कर अपने कामों में लग गईं।

अगला दिन 19 नवंबर 2008…

दोपहर के 1 बजे थे। नांबियार की पत्नी चाय लेकर आईं और उनके पैरों के नजदीक बैठ गईं। चाय खत्म करते ही एम.एन.नांबियार अपनी पत्नी को एकटक देखने लगे। देखते हुए कुछ समय के बाद आंखें बंद कीं और फिर कभी नहीं खोलीं। उनका निधन हो गया था।

इन दो दिनों के घटनाक्रम से समझा जा सकता है कि एम.एन. नांबियार को अपनी मौत का एहसास पहले ही हो चुका था।

अक्सर हम अपनी अनसुनी दास्तानें किसी स्टार के जन्म से शुरू करते हैं, लेकिन आज हम कहानी को उल्टा करके सुना रहे हैं। कारण भी है। कहानी ऐसे इंसान की है, जिसने साउथ की 1000 फिल्मों में बतौर खलनायक काम किया। और ऐसा काम किया कि लोग सच में कई बार इन्हें मारने पहुंच गए, क्योंकि ये उनके पसंदीदा स्टार्स को पर्दे पर मारते थे।

लेकिन एम.एन. नांबियार वो एक्टर थे, जिन्हें दुनिया का सबसे शरीफ खलनायक माना जाता है। खलनायक और शरीफ, हुई ना उल्टी बात। नांबियार की शराफत ऐसी थी कि रजनीकांत भी उनके पैर छूते थे। केरल के सबरीमाला मंदिर के बारे में तो आपने सुना ही होगा। इस मंदिर को फेमस बनाने का श्रेय भी नांबियार को ही जाता है। जब सबरीमाला मंदिर तक जाने का कोई रास्ता नहीं था, ये पहाड़ पर ट्रैकिंग करके वहां जाते, 41 दिन के व्रत का पालन करके दर्शन करते थे।

नांबियार ने ऐसा एक नहीं, 65 बार किया। मतलब अपनी जिंदगी के 7 साल से ज्यादा का समय इन्होंने सबरीमाला मंदिर को दिया। इनकी भक्ति देखकर लोगों ने इन्हें सबरीमाला मंदिर के महागुरुस्वामी की उपाधि दी। हजारों लोगों ने इनसे दीक्षा ली, गुरु बनाया। नांबियार के कहने पर अमिताभ बच्चन भी 7 किमी के रास्ते पर नंगे पैर चले। फिल्मी पर्दे के इस खूंखार खलनायक की शराफत और धार्मिक स्वभाव के किस्से सिर्फ इतने ही नहीं हैं।

पूरी कहानी काफी दिलचस्प है। आज की अनसुनी दास्तानें में इन्हीं एम.एन. नांबियार की जिंदगी को पढ़िए।

खलनायक ऐसे कि पर्दे पर देखते ही पड़ने लगती थीं गालियां

एम.एन. नांबियार ने 1935 में तमिल फिल्मों में डेब्यू किया। तब ये 16 साल के थे। ये तमिल सिनेमा के इतने खतरनाक विलेन समझे जाते थे कि रजनीकांत जैसे सुपरस्टार भी अपनी फिल्म कबाली में इनकी मिमिक्री करते दिखे। 8 दशक के फिल्मी सफर में 1000 से ज्यादा फिल्में करने वाले नांबियार का अभिनय इतना दमदार था कि लोग इन्हें मारने पहुंच जाया करते थे।

एक बार तो यूं भी हुआ कि भगवान की तरह पूजे जाने वाले MGR के फैंस इन्हें देखते ही मारने पहुंच गए, क्योंकि ये फिल्मों में उनकी पिटाई किया करते थे। अपने विलेन के किरदार से इन्होंने लोगों के दिलों में ऐसी नफरत पैदा कि थी लोग इन्हें बड़े पर्दे पर देखते ही गालियां देने लगते थे। एम.एन. नांबियार ने खुद एक इंटरव्यू में कहा था कि अगर हर बार मुझे गाली पड़ने पर एक रुपया भी मिलता तो मैं तमिल सिनेमा का पहला करोड़पति शख्स बन जाता।

विलेन बनकर मिली पॉपुलैरिटी

एम.एन नांबियार ने भले ही करियर की शुरुआत हीरो बनकर की, लेकिन उन्हें असल पहचान विलेन के रोल से मिली। चाहे सुपरस्टार MGR हों या शिवाजी गणेशन, नांबियार हर हीरो के अपोजिट विलेन बनते थे। MGR के साथ की गईं एंगा वीट्टू पिल्लई, आयीराथिल ओरुवन, नाबोबी मन्नन, नलाई नमाधे, पदगोट्टी, थिरुधाते, एन एन्नान, कावलकार और रुदियीरुंधा कोयिल इनकी सबसे बेहतरीन फिल्में रहीं। इन्हें तमिल फिल्मों के सबसे बड़े विलेन का दर्जा हासिल है।

असली विलेन समझकर पीटने आए थे लोग

एक बार की बात है जब कुछ लोगों ने इन्हें असल में खलनायक समझ लिया। जब शूटिंग से घर लौटते हुए एम.एन.नांबियार एक फाटक पर रुके तो 5 लोग उनकी गाड़ी के पास आ गए और उन्हें गाड़ी से बाहर निकलने को कहा। वो लोग लगातार कह रहे थे कि तुम्हारी हमारे अन्ना (MGR) को पीटने की हिम्मत कैसे हुई।

जाहिर है कि नांबियार ने MGR को असल में नहीं बल्कि सिर्फ फिल्मों में पीटा था, लेकिन उनकी फिल्मों का लोगों पर इतना गहरा असर होता था कि लोग उसे ही सच मान बैठते थे। नांबियार जानते थे कि अगर वो कार से उतरे तो वो लोग उन्हें पीटेंगे। नांबियार ने उन्हें समझाया तो वो शांति से बैठकर पूछने लगे कि क्या नांबियार ने MGR को पीटने के लिए पैसे लिए हैं।

नांबियार ने उनसे वादा किया कि अब मैं उनके बड़े भाई MGR पर कभी हाथ नहीं उठाऊंगा। साथ ही उन्होंने पूछा कि जब तुम्हारे अन्ना MGR मुझे मारते हैं तो तुम्हें उससे आपत्ति क्यों नहीं है, तो जवाब मिला कि MGR गुणी आदमी हैं वो मारें तो चलता है, लेकिन आप एक विलेन हैं तो मार खा सकते हैं।

फैंस को देखकर विलेन वाला चेहरा बना लेते थे नांबियार

नांबियार के छोटे बेटे मोहन ने सालों पहले दिए एक इंटरव्यू के दौरान पिता से जुड़ा एक किस्सा शेयर किया। उन्होंने बताया कि एक दिन वो पिता के साथ शूटिंग पर गए थे। ताश खेलते हुए जब उन्होंने देखा कि कुछ फैंस उनके पास आ रहे हैं तो उन्होंने अचानक अपने चेहरे के हाव-भाव बदल लिए और विलेन की तरह एक्सप्रेशन देने लगे।

जब मोहन ने उनसे पूछा कि आपने ऐसा क्यों किया तो जवाब मिला, ये लोग मुझे ढूंढते हुए आ रहे हैं, मुझे विलेन की तरह ही दिखना पड़ेगा, जिसे वो जानते हैं।

असल में दोस्त थे नांबियार और MGR

फिल्मों में MGR और शिवाजी गणेशन की जिंदगी मुश्किल बनाने वाले नांबियार असल में उनके गहरे दोस्त थे। नांबियार की शादी से पहले MGR उनके साथ लड़की देखने गए थे और शादी में भी वो पूरे समय मौजूद थे।

जब नांबियार को पहला बेटा हुआ तो सबसे पहले MGR ने ही उसे गोद में लिया था। फिल्मों में नांबियार, MGR से लड़ते थे, तो जब भी वो घर आते थे तो नांबियार के बच्चे उन्हें बुरे अंकल कहते थे। नांबियार के घर का माहौल इतना अच्छा हुआ करता था कि फिल्मी दुनिया के कई लोग अक्सर उनके घर आया करते थे।

एक फिल्म में 11 भूमिकाएं निभाने का रिकॉर्ड

फिल्म दिगंबरा समियार में इन्होंने 11 रोल निभाए, जिससे उन्हें खूब पॉपुलैरिटी मिली। तमिल फिल्मों में सबसे ज्यादा रोल निभाने का इनका रिकॉर्ड आज भी कायम है। लगातार हिट देकर ये 50 के दशक में बड़े हीरो के बीच स्टार कहे जाने लगे। कामयाबी मिलने के बाद इन्होंने अपनी नाटक मंडली नांबियार नाटक मंद्रम बनाई।

ऑन कैमरा सबसे खतरनाक विलेन, ऑफ कैमरा हीरो

एम.एन. नांबियार तमिल सिनेमा के सबसे शरीफ व्यक्ति समझे जाते थे। लोग कहते थे कि कैमरा रोल होते ही इतने खतरनाक विलेन बनते थे कि लोग इन्हें देखकर नफरत करने लगते थे, लेकिन कैमरा बंद होते ही जो असल किरदार सामने आता था वो एकदम सज्जन था। नर्म स्वभाव के एम.एन. नांबियार हमेशा धीमी आवाज में बात करते थे, हर तबके के इंसान से अच्छे से पेश आते थे।

शाकाहारी खाना, सादा जीवन

एम.एन. नांबियार एक सात्विक जीवन जीते थे। शुद्ध शाकाहारी, जिन्होंने कभी सिगरेट, शराब पीना तो दूर ऐसी चीजों को हाथ तक नहीं लगाया। इनके घर के किचन में कभी नॉनवेज नहीं बना।

छोटे बेटे को ऑमलेट खाने का शौक था तो एम.एन. नांबियार ने उसके लिए घर में दूसरी किचन बना दी थी। दूसरे घर वाले अगर बाहर से मांसाहारी खाना लाते थे तो उन्हें एक टेबल में साथ बैठकर खाने की भी इजाजत नहीं होती थी।

एक बुरी आदत वो भी छोड़ दी

एम.एन. नांबियार को फिल्मों का बड़ा शौक था। वो ज्यादातर अपने दोस्त शिवाजी गणेशन के साथ लेट नाइट शो देखने जाया करते थे, लेकिन इससे जब उनका स्लीपिंग शेड्यूल बिगड़ने लगा तो उन्होंने देर रात फिल्में देखना छोड़ दिया। नांबियार रात 11 बजे से पहले सो जाया करते थे।

कभी इनके खिलाफ नहीं छपी कोई गॉसिप

जहां फिल्मी दुनिया से जुड़े लोगों की निजी जिंदगी गॉसिप कॉलम का हिस्सा बना करती थी, उस दौर में भी एम.एन.नांबियार ऐसे चर्चित एक्टर थे, जिनसे जुड़ी कोई नेगेटिव खबर कभी छपी ही नहीं। 1000 से ज्यादा फिल्में करने के बावजूद इनका नाम कभी किसी को-स्टार या महिला से नहीं जुड़ा। नांबियार इतने शालीन थे कि जब उन्हें किरदार के लिए घंटों तक मेकअप करवाने बैठे रहना पड़ता था तो वो बिना नखरे या गुस्सा किए बैठे रहते थे।

महागुरु स्वामी कहे जाते थे एम.एन.नांबियार

फिल्मों में विलेन बनकर नजर आने वाले एम.एन. नांबियार सबरीमाला श्री अयप्पन स्वामी के बड़े भक्त थे। इनकी जिंदगी के आखिरी 60 सालों में ऐसा कोई भी साल नहीं रहा, जब ये सबरीमाला मंदिर के दर्शन को न गए हों। इनके नाम 65 बार सबरीमाला मंदिर जाने का रिकॉर्ड है। श्रद्धा के चलते इन्हें महागुरु स्वामी कहा जाता था।

ये उस दौर की बात थी जब सबरीमाला में जाने वालों की भीड़ नहीं होती थी। ये पहाड़ों में ट्रैकिंग करते हुए अपनी श्रद्धा का परिचय दिया करते थे। इनका नाम उन लोगों में शुमार है जिन्हें सबरीमाला मंदिर की तीर्थ यात्रा शुरू करने का क्रेडिट दिया जाता है। इन्होंने ही कई लोगों के साथ मिलकर सबरीमाला तक तीर्थ यात्रा करने के मूवमेंट का नेतृत्व किया था।

मौत के मुंह से निकले अमिताभ तो इनके कहने पर पहुंचे सबरीमाला मंदिर

जब 1982 में कुली फिल्म के सेट पर हुई दुर्घटना के बाद अमिताभ जिंदगी और मौत के बीच थे तब उनकी फिल्म बॉम्बे टु गोवा के डायरेक्टर एस. रामनाथन ने मन्नत मांगी थी कि अगर अमिताभ ठीक हुए तो वो उन्हें सबरीमाला मंदिर लेकर जाएंगे। अमिताभ की रिकवरी के बाद एस. रामनाथन, एम.एन. नांबियार के निर्देश पर उन्हें सबरीमाला मंदिर ले गए। मंदिर जाने के लिए अमिताभ ने 7 किलोमीटर की नंगे पांव ट्रैकिंग की थी।

एम.एन.नांबियार के थे हजारों शिष्य

जहां एक तरफ एम.एन. नांबियार के अभिनय के लाखों चाहने वाले थे वहीं हजारों ऐसे भी लोग थे जो इनकी भक्ति देखकर इनके शिष्य बने थे। नांबियार अपने साथ लोगों से सबरीमाला मंदिर आने का अनुरोध किया करते थे और लोग इनसे जुड़ते भी थे। सबरीमाला जाते हुए 41 दिनों तक तप करने की परंपरा भी नांबियार ने ही शुरू की थी। आज सबरीमाला मंदिर इतना पवित्र स्थान माना जाता है कि यहां करोड़ों भक्त पहुंचते हैं।

15 साल की उम्र में पहली बार सबरीमाला मंदिर गए थे नांबियार

एम.एन. नांबियार को एक प्ले के सिलसिले में पहली बार सबरीमाला मंदिर जाने का मौका मिला। जब नांबियार एक समय में नाटक मंडली नवाब राजामानिक्कम पिल्लई का हिस्सा थे। इस समय उन्हें स्वामी अयप्पा प्ले में काम करने का मौका मिला, जिसके लिए वो मंडली के मालिक राजामनिक्कम पिल्लई के साथ सबरीमाला मंदिर गए थे।

50 के दशक में घर में बनाया था जिम

एम.एन. नांबियार अपनी सेहत का खास ख्याल रखते थे। चेन्नई में रहते हुए रोजाना सुबह 4ः30 बजे उठकर ये गांधी स्टैच्यू से मरीना बीच तक वॉक पर जाया करते थे। इन्होंने घर में ही एक जिम और बैडमिंटन कोर्ट बनवाया था। इनके दोस्त जेमिनी गणेशन और शिवाजी गणेशन और उनके भाई शानमुगम भी आए दिन इनके घर जिम इस्तेमाल करने और बैडमिंटन खेलने आया करते थे।

इन्हें बैडमिंटन का शौक ऐसा था कि जब तक मैच खत्म ना हो जाए, तब तक पीछे नहीं हटते थे। एक दिन साउथ के नामी डायरेक्टर फिल्म थूरल की स्क्रिप्ट लेकर इनके घर पहुंचे। नौकर खबर लेकर इनके पास पहुंचा तो इन्होंने जवाब में कहा, उनसे कहो इंतजार करें। जब तक मैच चलता रहा, तब तक डायरेक्टर को उनका इंतजार करना पड़ा था।

कम उम्र में उठ गया था पिता का साया

एम.एन. नांबियार उर्फ मंजेरी नारायण का जन्म 7 मार्च 1919 को कन्नूर, केरल के पास बसे गांव कंडक्कई में हुआ था। कम उम्र में ही इनके पिता केलू नांबियार का निधन हो गया था। बड़ी बहन की शादी हुई तो एम. एन. नांबियार भी उसके साथ रहने ऊटी पहुंच गए। वहीं उन्होंने पढ़ाई पूरी की। 13 साल की उम्र से ही इन्हें एक्टिंग में दिलचस्पी थी, ऐसे में इन्होंने नवाब राजामणिक्कम नाटक मंडली जॉइन कर ली। असल में उनकी भाषा मलयाली थी, लेकिन वो तमिल सीखकर तमिल भाषा के नाटक किया करते थे। नाटकों में ये पुरुषों के अलावा पूरी अदा के साथ महिलाओं की भी भूमिका निभाते थे।

3 रुपए मिलते थे तो 2 रुपए मां को भेजते थे

बॉयज कंपनी का नाटक करने पर उन्हें पहली तनख्वाह 3 रुपए मिली। इसमें से उन्होंने 1 रुपया खुद रखा और बचे हुए 2 रुपए मां को भेज दिए। एम.एन. नांबियार की जरूरतें न के बराबर थीं। रहने और खाने की जिम्मेदारी भी ड्रामा कंपनी ही उठाती थी, ऐसे में वो अपने रुपए भी बचा लिया करते थे। उन्हें कभी पैसों की जरूरत नहीं पड़ती थी, ऐसे में अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा घरवालों के लिए भेजा करते थे।

16 साल की उम्र में रखा तमिल सिनेमा में कदम

एक्टिंग में माहिर थे तो 1935 में महज 16 साल की उम्र में इन्हें पहली फिल्म भक्ता रामादास मिली। इस फिल्म को हिंदी और तमिल में बनाया गया था, जिसमें नांबियार टी.के. समपांगी के साथ कॉमेडियन बने थे। इस फिल्म में उन्होंने 2-3 किरदार निभाए थे, जिसके लिए उन्हें 75 रुपए मिले थे।

पूरे फैमिली मैन थे एम.एन. नांबियार

पत्नी रुक्मिणी एम.एन. नांबियार से 11 साल छोटी थी। परिवार से इन्हें ऐसी मोहब्बत थी कि इन्होंने कभी घर से बाहर खाना तक नहीं खाया। घर में खाते थे वो भी सिर्फ पत्नी के हाथों का बना हुआ। 1946 में हुई शादी के बाद इनकी जिंदगी का कोई ऐसा दिन नहीं था, जब इन्होंने पत्नी के बिना खाना खाया हो। 3 बच्चे भी थे। बेटे सुकुमार, मोहन और बेटी स्नेहा।

दरअसल 89 की उम्र आते-आते नांबियार बीमार रहने लगे थे। यूरीन इन्फेक्शन होने के बाद जब इलाज के लिए 2 महीने तक अस्पताल में रहे तो दोबारा पहले जैसे तंदुरुस्त नहीं हो सके। हमेशा अपनी सेहत का ख्याल रखने वाले नांबियार ने खाना-पीना लगभग बंद कर दिया था। एक दिन बेटे ने नाराजगी जाहिर की। कहा- जब हम छोटे थे तो आप हम पर अच्छे से खाने का दबाव बनाते थे। इस पर नांबियार ने हंसते हुए बेटे को देखा और जवाब दिया, मैं 90 का हो रहा हूं और ये काफी है। ये उनकी मौत से ठीक दो दिन पहले की बात थी।

जब भी एम.एन. नांबियार शूटिंग करने जाया करते थे तो शूटिंग पूरी होते ही सीधे अपने घर लौट आया करते थे। दूसरे स्टार्स एक-दूसरे से मिलते थे या सेट पर ही समय बिताते थे, लेकिन नांबियार को परिवार के साथ समय बिताना पसंद था। हर साल नांबियार मई महीने में कभी शूटिंग नहीं करते थे, चाहे कितना बड़ा ऑफर या हो कितना बिजी शेड्यूल हो। ये महीना वो अपने परिवार को देते थे और इनका पूरा परिवार ऊटी में छुट्टियां मनाता था।

मौत के बाद बिखर गया परिवार

एम. एन. नांबियार अपने पीछे पत्नी और तीन बच्चों को छोड़ गए। इनका बड़ा बेटा सुकुमार BJP का नामी नेता था और छोटा बेटा कोएंबटूर का बड़ा बिजनेसमैन है। इनकी एक बेटी भी है, जिसका नाम स्नेहा है।

एम.एन. नांबियार की मौत के 4 साल बाद 8 जनवरी 2012 को उनके बड़े बेटे का निधन हो गया। इसी साल 11 अप्रैल 2012 को पत्नी ने भी दम तोड़ दिया।

भगवा कपड़ों में हुई अंतिम विदाई

मौत के बाद एम.एन. नांबियार को भगवा रंग के कपड़ों में लपेटा गया था। इनके अंतिम संस्कार के समय हजारों की तादाद में इनके चाहने वाले और शिष्य जमा हुए जो लगातार स्वामीये शरणम अयप्पा मंत्र का जाप कर रहे थे।