लोग बोले-बोरियां बेचने वाला क्या एक्टर बनेगा:मेरी फिल्म देख देव आनंद ने कहा था-तुम्हारे पास मुझसे ज्यादा फिल्में हैं, अब मैं तुम्हें कॉपी करूंगा

सदाबहार हीरो देव आनंद के एक हमशक्ल को आपने भी कई फिल्मों में देखा होगा। आमिर खान की दिल से लेकर टीवी सीरियल भाबीजी घर पे हैं तक, देव साहब जैसी शक्ल और अदाओं वाले इस कलाकार का नाम है किशोर भानुशाली। किशोर मुंबई के ही हैं। जब कोई 10 साल की उम्र थी तब एक दोस्त ने इन्हें बताया कि इनकी शक्ल देव आनंद से मिलती-जुलती है।

तब तक इन्होंने देव आनंद की फिल्में नहीं देखी थी। पहली बार अपनी सूरत उनकी शक्ल से मिलाने के लिए फिल्म देखने गए। तब समझ आया कि सुपर सितारे से उनका चेहरा कितना मिलता है। लिहाजा उम्र के साथ देव आनंद की अदाएं और अंदाज भी अपना लिया। करीब 200 फिल्मों में नजर आ चुके किशोर का यहां तक का सफर खासा मुश्किल रहा।

पिता का टाट की बोरियां बेचने का बिजनेस था। किशोर ने 12-13 की उम्र से ही ये काम सीखना शुरू कर दिया, लेकिन मन एक्टिंग में था। पढ़ाई के साथ-साथ चोरी-छिपे देव आनंद के गानों पर शो करते। लोग देव आनंद की नकल उतारने पर मजे तो खूब लूटते थे, लेकिन कोई काम नहीं देता। पिता के बोरियों वाले बिजनेस में उनकी मदद करते तो लोग ताना मारते थे कि बोरियां बेचने वाला क्या खाक एक्टर बनेगा।

लेकिन, किस्मत बॉलीवुड तक ले ही आई। एक दिन अचानक आमिर खान की फिल्म दिल में इन्हें रोल मिल गया। इसमें जब देव आनंद ने किशोर का काम देखा तो उन्हें अपने ऑफिस बुला लिया। पूछा- कितनी फिल्मों में काम कर रहे हो। किशोर ने जवाब दिया- 10-12 फिल्में। देव आनंद ने कहा- तेरे पास तो मुझसे ज्यादा फिल्में हैं। अब तो मुझे तेरी कॉपी करनी पड़ेगी।

ये बात मजाक की थी, लेकिन खुद देव आनंद ने इन्हें साथ काम करने का वादा किया था। हालांकि, ऐसा कभी हो नहीं पाया कि दोनों एक साथ पर्दे पर दिख पाएं। किशोर ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कई स्टूडियोज के चक्कर लगाए। प्रोड्यूसर्स से मिले। शोज किए। आज देव आनंद के डुप्लीकेट के रूप में स्थापित हैं।

बचपन में पढ़ाई के साथ बोरी बेचने का काम किया
देश के बंटवारे के बाद मेरा परिवार पाकिस्तान से कच्छ (गुजरात) आया और वहां से फिर मुंबई आ गया। मेरा जन्म 13 मार्च 1962 को मुंबई में हुआ था। हम लोग मुंबई स्थित जोगेश्वरी (पूर्व) में एक चॉल के छोटे-से रूम में रहते थे। पास में ही बाल मंदिर, स्कूल से मेरी स्कूलिंग हुई। मेरे पिताजी का बारदान (चावल भरने वाली बोरी) का बिजनेस था। मैं भी पिताजी के काम में हाथ बंटाता था। जब मैं तकरीबन 10 साल का हुआ, तब पिताजी ने पहला रूम बेचकर वहीं पर दूसरा रूम ले लिया, जो बड़ा था। यह रूम 7000 रुपए में मिला था, जो किश्तों में चुकाए थे।

फिल्म टिकट के पैसे के लिए न्यूज पेपर बेचे
बचपन से फिल्मों का शौक था। स्कूल जाने के लिए 4 आने मिलते थे, वो भी खर्च हो जाते थे। इसी वजह से फिल्म देखने के लिए न्यूज पेपर बेच कर पैसा जमा करता था। जब 2 रुपए 20 पैसे इकट्‌ठा हो जाते, तब फिल्म देखने जाता था। जब कभी पैसा नहीं होता था, तब पोस्टर देखकर ही दिल बहला लेते थे। उस समय पिक्चर देखना बहुत बड़ी बात होती थी। पिक्चर देखने वालों से कहानी सुनता था।

देव आनंद को देखने का प्लान बनाया तो भाई ने फटकार लगाई
मैं चौथी में पढ़ता था। एक दिन मेरे सहपाठी परेश ने मुझसे बोला कि तुम्हारी शक्ल देव आनंद से मिलती है। मैंने पूछा- क्या बोला? उसने दोहराया- देव आनंद। मैंने पूछा कि यह देव आनंद कौन हैं? उसने बताया कि एक फिल्म आई है- ‘जॉनी मेरा नाम’, उसके हीरो हैं। मेरा दोस्त भी फिल्मों का बड़ा शौकीन था। उसकी ये बात मेरे दिमाग में घर कर गई।

उन दिनों देव आनंद की फिल्म ‘ये गुलिस्तां हमारा’ रिलीज हुई थी। शनिवार था और हम चार-पांच दोस्तों ने फिल्म देखने का प्लान बनाया। यह बात मेरे बड़े भाई को कहीं से पता चल गई, तब वे मुझे डांटने-फटकारने लगे। मेरे सारे दोस्त पिक्चर देखने गए, पर मैं नहीं जा पाया। मुझे देखना था कि देव आनंद कौन हैं।

जब देव आनंद को फिल्मी पर्दे पर पहली बार देखा
छुट्टियों में मैं मामा के घर पालघर गया, वहां मामा के लड़के रंजीत ने मुझे बताया कि प्रकाश टॉकीज में ‘ये गुलिस्तां हमारा’ लगी है। मैंने कहा कि यही तो मुझे देखनी है। इस तरह से मैंने देव आनंद की पहली फिल्म देखी। वहीं से मेरे दिमाग में बस गया कि मैं तो बिल्कुल देव आनंद जैसा दिखता हूं।

देव आनंद के गाने पर परफॉर्म करने पर 4-5 रुपए मिल जाते थे
कुछ समय बाद मैंने रिकॉर्ड डांस पार्टी जॉइन कर ली, जिसमें देव आनंद के गाने पर परफॉर्म करता था। गाने का छोटा रिकॉर्ड 12 रुपए का और बड़ा रिकॉर्ड 22 या 25 रुपए में मिलता था, लेकिन सवाल 12 रुपए लाएं कहां से?

पता चला कि ग्रांट रोड में चोर बाजार है। वहां पर यही रिकॉर्ड डेढ़-दो रुपए में मिल जाता है। वहां से एक-दो रिकॉर्ड खरीदकर लाता था और पूरी रात शो करता था, जिसके लिए कोई पैसा नहीं मिलता था। किसी ने चिल्लर फेंक दी, तब अलग बात थी। हां, कभी-कभी यह चिल्लर चार-पांच रुपए हो जाते थे। मुझे चिल्लर की नहीं, एक्टिंग की भूख थी। इस वक्त मेरी उम्र 15-16 साल थी।

सिर्फ 2 साल कॉलेज गए, फिर बोरी बेचने का काम करने लगे
पूरी रात शो करता था। सुबह की पहली लोकल ट्रेन पकड़कर पिछले दरवाजे से घर आता था, ताकि पिताजी को पता न चले कि शो करने गया था। इस तरह पढ़ाई और शो, दोनों करने लगा। दो साल कॉलेज गया, उसके बाद पढ़ाई छूट गई। फिर तो पिताजी ने मुझे बारदान के धंधे पर बैठा दिया। बैलगाड़ी लेकर तबेले में जाना और बारदान गिनकर बैलगाड़ी पर लादकर लाना बहुत मेहनत का काम था। शाम तक धूल-मिट्‌टी से लद जाता था। तब तक मैंने 450 रुपए की साइकिल ले ली थी।

कई लोगों ने काम देने की उम्मीद दी, लेकिन काम दिया नहीं
एक बार मैं फिल्मालय स्टूडियो चला गया। मुझे पता चला कि हेमा मालिनी की फिल्म ‘आसपास’ की शूटिंग चल रही है। अंदर जाकर शूटिंग देखने के लिए मैंने सिक्योरिटी गार्ड से बहुत मिन्नतें कीं। पहले तो उसने मना कर दिया। फिर कहा- सिर्फ पांच मिनट के लिए अंदर जाना, उसके बाद तुरंत वापस आ जाना।

मैं अंदर गया। कुछ समय बाद हेमा जी आईं। मैंने बोला- हेमा जी नमस्ते! हेमा जी पीछे मुड़ीं और बोलीं- नमस्ते। वे नमस्ते बोलकर आगे जाने लगीं, तब मैं भी उनके पीछे-पीछे चलने लगा। गाने का सेट लगा था। गाना था- ‘हमको भी गम ने मारा, तुमको भी गम ने मारा…’। फिल्म के डायरेक्टर जे. ओम प्रकाश थे। सुरेश भट्ट डांस मास्टर थे।

हेमा जी डांस करते-करते घूमीं, तब मैंने देव आनंद की स्टाइल में सिर हिला दिया। हेमा जी हंस पड़ीं। सुरेश भट्‌ट ने पूछा- क्या हुआ। ऐसा तीन बार हुआ। सुरेश और जे. ओमप्रकाश ने पूछा- तुम्हें क्या हो रहा है हेमा।

हेमा जी ने कहा- वो लड़का देखो, सेम देव आनंद दिखता है। उन्होंने कहा- ऐ बच्चे इधर आ। तुम बिल्कुल देव आनंद लगते हो, कुछ डायलॉग सुनाओ। मैंने उन्हें ‘अमीर गरीब’, ‘जानी मेरा नाम’ का डायलॉग सुनाया। जे. ओमप्रकाश बोले- मेरी एक पिक्चर ‘अर्पण’ बन रही है। उसमें जीतेंद्र और रीना रॉय हैं। उसमें ऐसा ही कैरेक्टर चाहिए, जो नौकर है, लेकिन उस पर फिल्मी भूत सवार है। बोले- मेरे ऑफिस आ जाना। मेरा ऑफिस सांताक्रूज स्टेशन के बगल में ही है। फिर तो मेरा वहां पर चक्कर लगना शुरू हो गया।

वे लोग मुझ से रोज डायलॉग बुलवाते थे, लेकिन जे. ओमप्रकाश जी नहीं मिलते थे। कई दिनों बाद एक बार वे सीढ़ियों पर मिल गए। मैंने कहा- ओम जी! मैं किशोर। पूछे कौन किशोर? मैंने याद दिलाया- देव आनंद। आपने बोला था कि ‘अर्पण’ में नौकर का एक रोल है। उन्होंने कहा- अरे! हां-हां। ‘अर्पण’ की शूटिंग शुरू हो गई है, लेकिन मैंने वो रोल ही काट दिया। अब वह रोल नहीं है। हालांकि, इस तरह के किस्से बहुत हैं। मैं काफी चक्कर काटता रहा, पर मुझे किसी ने काम नहीं दिया।

देव आनंद की एक्टिंग करने की वजह से फ्री में फिल्म देखने का मौका मिलने लगा
एक बार मैं फिल्म बनारसी बाबू देखने बहार टाकीज गया था। वहां पर मेरी मुलाकात टिकट काउंटर के मालिक कुलकर्णी से हुई। इससे पहले भी मेरी एक बार उनसे मुलाकात टॉकीज में हुई थी। उन्हें मैंने फिल्म जॉनी मेरा नाम का डायलॉग सुनाया। इस पर उन्होंने बोला- फिल्म देखने के बाद मेरे पास आना। पिक्चर खत्म होने के बाद मैं उनके पास गया और वो मुझे सीधे टॉकीज के मालिक मनोज देसाई के पास ले गए।

उन्होंने मनोज देसाई से कहा- सर! इसको देखिए। यह देव आनंद की एक्टिंग करता है। मनोज देसाई भी देखकर दंग रह गए। उन्होंने डायरेक्ट देव आनंद को फोन लगाया। बोले- ‘देव साहब! एक लड़का आया है, जो सेम आपकी एक्टिंग करता है।’

मनोज देसाई मुझसे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने थिएटर में पिक्चर देखने की न सिर्फ छूट दी, बल्कि नाश्ता भी फ्री देने का ऐलान किया। यहां से टॉकीज में सब लोग मुझे पहचान गए। इसके साथ उन्होंने एक शर्त भी रखी कि जब तू पिक्चर देखने आए, तब इधर ऑफिस में आना और देव आनंद की एक्टिंग करके दिखाना। फिर बहार टॉकीज में पिक्चर देखने का सिलसिला शुरू हो गया।

जब देव आनंद से मिलते-मिलते रह गए…
एक दिन मनोज देसाई ने कहा कि तुम देव आनंद साहब से मिल लो। उन्होंने देव साहब के सेक्रेटरी समीर को बुलवाया। इसके बाद मैं सेक्रेटरी समीर से मिला। वे मुझे देव साहब से मिलवाने लेकर गए। मैं शाम से लेकर देर रात तक बैठा रहा, पर देव साहब कहीं बिजी हो गए, इसलिए आए नहीं। मैं बस पकड़कर घर वापस आ गया। इसके बाद तो जब भी मुझे मौका मिलता था, तब साइकिल से देव साहब के बंगले पर जाता था।

किस्सा देव आनंद से मिलने का
देव साहब का घर चंदन टॉकीज के पीछे था। एक दिन मैं पांच-छह बजे सुबह उनके घर ही पहुंच गया। वॉचमैन बोला- अभी साहब निकलने वाले हैं। देव आनंद जैसे निकले मैंने चिल्ला कर बोला- सर! मुझे मनोज देसाई ने भेजा है। इतना सुनकर वो बोले- ‘मनोज मेरा दोस्त है। हां, कहो।’

मैंने कहा कि फिल्मों में आपके बचपन का रोल करना चाहता हूं। देव साहब ने गाड़ी का थोड़ा-सा कांच खोलकर कहा- ‘देखो, ऐसे रास्ते पर खड़े होकर बात नहीं होती है। तुम एक काम करो। मेरा ऑफिस खीरा नगर में है। वहां आओ, इत्मिनान से बात करेंगे, और मनोज भाई को मेरा नमस्ते बोलना।’ इतना कहकर वो चले गए।

मुझे मालूम पड़ा कि सन एंड सन होटल में देव आनंद के नाम पर 202 रूम नंबर बुक रहता है, वहां पर वो आते रहते हैं। मैं वहां पर रोज शाम जाने लगा, सारे वॉचमैन मुझे पहचानने लगे थे। एक दिन वहां देव आनंद से मुलाकात हुई। मैंने उन्हें याद दिलाया, तब पूछने लगे कि क्या करते हो। मैंने कहा स्कूल जाता हूं। देव साहब कहने लगे- ‘देखो, इस वक्त तुम न तो बड़े हो और न ही बच्चे हो। तुम्हारे लिए अभी क्या कैरेक्टर सोचूं। तुम पढ़ाई करके बड़े हो जाओ। फिर लगेगा कि तुम्हारे लिए कुछ बन सकता है, तब मैं जरूर तुम्हें काम दूंगा, लेकिन इस वक्त पढ़ाई पर ध्यान दो।’ उनकी इतनी बात सुनकर मैं वापस चला आया।

कई साल तक कोई काम नहीं मिला, शादी भी हो गई
उसके बाद फिर कभी देव आनंद से मुलाकात नहीं हुई। मेरी शादी हो गई। बच्चा हो गया। पिताजी बोले- तुम्हारा उछल-कूद बहुत हो गया। अब प्रोग्राम वगैरह बंद और दुकान पर बैठो।

किस्सा पहली वीडियो फिल्म और पहली बड़ी कमाई का
मैं हताश निराश होकर शो वगैरह छोड़कर एक बार फिर उसी बारदान के काम पर लग गया। एक दिन मशहूर कॉमेडियन मोहन चोटी के यहां से मुझसे मिलने एक आदमी आया। मैंने ये कहते हुए उन्हें मना कर दिया- अभी सब कुछ भूल गया। एक-दो साल हो गए। अब मैं धंधे पर ध्यान दे रहा हूं। मेरी शादी हो गई, एक बच्चा भी हो गया।

इसके बाद भी वो मुझे मनाते रहे। फिर हां-ना, हां-ना करते हुए मैंने उनका एक शो कर दिया। उनका शो किया, तब उन्होंने वीडियो फिल्म ‘पागल खाना’ में काम करने के लिए ऑफर दिया। मैंने सोचा कि चलो 2 साल बाद कोई बुला रहा है, तब कर लेता हूं। फिल्मिस्तान में उसकी शूटिंग थी। इसमें टीकू तलसानिया भी थे। वहां मेरी मुलाकात रजा मुराद से हो गई, वो वहां पर कोई फिल्म कर रहे थे।

रजा मुराद साहब बोले- ऐसा लग रहा है कि देव आनंद मेरे सामने खड़े हैं। किस की फिल्म कर रहे हो। मैंने बोला- मोहन चोटी साहब की। इतना सुनने के बाद वो मोहन चोटी से पूछने लगे कि इसका कितना रोल है। मोहन ने बताया कि कुछ दो डायलॉग हैं। उन्होंने कहा कि इसका रोल बढ़ाओ, क्योंकि इसकी वजह से तुम्हारी वीडियो फिल्म चल पड़ेगी। मैं पिताजी को बिना बताए, दो दिन शूट करके आ गया। मुझे रकम तो याद नहीं, पर यह मेरी पहली बड़ी इनकम थी।

एक दिन रजा मुराद साहब को फोन किया, तब उन्होंने सबसे पहले मुझे गाली दी- ‘अबे तू कहां है, साले। मैं तुझे ढूंढ रहा हूं। तू कहां है? कल तू सीधे जुहू मिलने आ जा। मैं तुझे बी. सुभाष से मिलवाता हूं। ऐसे तू गायब मत हुआ कर। मैं तेरे लिए काम देख रहा हूं।’

इसके बाद रजा साहब ने मुझे बी. सुभाष, महेश भट्ट आदि से मिलवाया। ऐसा करते-करते फिल्मिस्तान में सुमित सहगल से मुलाकात हो गई। वो इतना प्रभावित हुए कि सीधे डायरेक्टर- प्रोड्यूसर गौतम भाटिया से मिलवाने ले गए। इसके बाद मैंने जूनियर महमूद के साथ फिल्म “कसम धंधे की” में काम किया।

उन दिनों डायरेक्टर इनायत शेख की एक फिल्म बन रही थी- ‘जलवे फिल्मी मियां बीवी के’। इसमें मुश्ताक मर्चेंट ने मुझे एक दिन का काम दिलवाया। इसके बाद मैंने फिल्म गैंग में जैकी श्रॉफ के साथ काम किया।

मुश्ताक, मजहर खान की फिल्म ‘गैंग’ लिख रहे थे, जिसमें जैकी श्रॉफ, जूही चावला, नाना पाटेकर आदि स्टार थे। मुश्ताक मर्चेंट मुझे लेकर मजहर खान के पास गए। मुश्ताक ने मेरे लिए सिफारिश की, तब उन्होंने अगले दिन जैकी श्रॉफ के साथ शूट करने के लिए बैंड स्टैंड पर बुला लिया, लेकिन उसके लिए पैसे वगैरह कुछ मिला नहीं। मुझे पैसे की नहीं, काम की पड़ी थी।

आमिर खान की फिल्म दिल में काम करने का मौका मिला
कुछ दिनों बाद मैं पिताजी के साथ बोरीवली गया। वहां पर बारदान का पूरा माल ट्रक में भरने के बाद ऊपरी मंजिल पर गया तो देखा कि टेलीफोन रखा हुआ है। मैंने अपने जानने वाले दिलीप भाई को फोन मिलाया और उन्हें अपनी आपबीती सुनाई, काम भी मांगा। तब उन्होंने बताया- फिल्म ‘दिल’ की शूटिंग पारसी बंगले, बैंड स्टैंड पर चल रही है। कल वहां पर पहुंच जाओ।’ मैं जैसे-तैसे बारदान का काम निपटाकर अगले दिन सेट पर पहुंच गया। कैमरामैन बाबा आजमी (शबाना आजमी के भाई) थे।

मुझे बुलाकर पूछने लगे कि किसने तुझे बुलाया। मैंने बताया कि काम के लिए आया हूं। उन्होंने बताया कि बहुत अच्छा किया तुमने। कल 9 बजे आओगे? मैं दूसरे दिन सेट पर पहुंचा, तब मुझे अंदर बुलाया गया। तब डायरेक्टर इंद्र कुमार बोले- मैं इन्हें नहीं समझा पाऊंगा, क्योंकि मुझे लगेगा कि मेरे सामने देव साहब खड़े हैं। बाबा आजमी को बोले कि आप ही समझाओ। बाबा ने भी बोला कि मुझे भी लगेगा कि देव साहब हैं।

वहां पर असिस्टेंट डायरेक्टर बसंत भाई थे। उन्होंने मुझे गुजराती में सीन समझाया और वो शूट किया। जब सीन कट हुआ तो बड़ी शाबाशी मिली। फिर आमिर खान आए, उन्होंने अनुपम खेर को बुलाकर वापस म्यूजिक के साथ वही सीन करवाया। मैंने वापस वही सीन किया। आमिर बोले- यह सीन फिल्म में होगा तो मजा आ जाएगा। इस तरह बाद में मैं फिल्म ‘दिल’ पिक्चर में ऐड हुआ। ‘दिल’ गोल्डन जुबली हुई।

देव आनंद के जैसे दिखने पर लोगों ने मजाक बनाया
एक बार एक जगह बारदान लेने गया था। वहां पर सेठ मुझे बाहर रोक कर कहने लगे- ‘दिल’ पिक्चर देखी है क्या, पिक्चर देख ले। उसमें देव आनंद है। मैंने कहा कि सेठ, वह मैं ही हूं। उन्होंने कहा- चल जा, बारदान गिन। संडे को गुजराती पेपर में मेरे नाम के साथ फोटो छपी। उसने पेपर फोटो देखा, तब अगले दिन कहा कि तेरा नाम क्या है। मैंने बताया- किशोर भानुशाली। उन्होंने कहा कि वो भी किशोर भानुशाली है। अब यह मत कहना है कि यह मैं ही हूं।

वह आज दुनिया में नहीं हैं, पर आखिर तक उन्होंने विश्वास नहीं किया है कि वह किशोर भानुशाली मैं ही हूं, जिसने फिल्म ‘दिल’ में काम किया था। उनको लगता था कि मेरे भैंस के तबेले में बारदान गिनने वाला आदमी कैसे पिक्चर में हो सकता है। मेरे पिताजी को मुझ पर गर्व था। वे जहां जाते, वहां बताते थे कि यह मेरा बेटा है, पर विश्वास कोई नहीं करता था।

अफसोस कि कभी देव आनंद के साथ फिल्में नहीं कीं
‘दिल’ देखने के बाद देव आनंद साहब ने मुझे बुलाया था। मैं खीरा नगर स्थित उनके ऑफिस मिलने गया, तब कहने लगे- किशोर, यही नाम है। मैंने कहा- जी हां। वे कहने लगे- मैंने ‘दिल’ देखी। ऐसा लगता है कि आज के बाद मुझे आपकी कॉपी करनी पड़ेगी। मुझसे ज्यादा तो आप देव आनंद लग रहे हो। कितनी फिल्में कर रहे हो। मैंने कहा कि 10-12 फिल्में कर रहा हूं। उन्होंने कहा- वेरी गुड। मेरे पास तो दो फिल्में हैं। मैंने कहा कि सर! आपके साथ काम करना चाहता हूं।

उन्होंने कहा- बिल्कुल करेंगे, पर शर्त है कि इतने झटके नहीं दोगे। ‘दिल’ में काफी झटके दिए हैं। हम साथ में बिल्कुल काम करेंगे, आपको बुलाएंगे, ओके, थैंक्यू, बाय-बाय। वे इतना सब कहते चले गए और मैं कुछ बोल ही नहीं पाया। ऐसा लगा कि मेरा भगवान मेरे सामने खड़ा है। उनका नाम लेकर आज यहां तक पहुंचा हूं, पर अफसोस कि उनके साथ कभी काम नहीं कर पाया।

‘दिल’ हिट होने के बाद भी मुझे कोई पिक्चर नहीं मिली। फिर मैंने रजा मुराद को फोन किया। उन्होंने फिर मुझे गालियां देते हुए पूछा कि तू किधर है। मैंने बताया कि बाप के बिजनेस में लगा हूं। उन्होंने कहा- बिजनेस छोड़, तू नटराज में अभी का अभी आ। उन्होंने कहा कि तुझे लोग पागलों की तरह ढूंढ रहे हैं कि यह देव आनंद है कौन? तेरा फोन नंबर किसी के पास नहीं है और तू गायब है।

रजा मुराद ने मुझे कई PRO और फोटोग्राफर से मिलवाया और उनसे रिक्वेस्ट किया कि किसी मैगजीन में इनका फोन नंबर छाप दो ताकि इसका भला हो जाए। उन्होंने छोटे से कॉलम में मेरा फोन नंबर छाप दिया। उस दिन से काम के लिए जो घंटी बजी, वह आज तक बज रही है। फिर तो मुझे फिल्मों के ऑफर जो आनी शुरू हुई तो भोजपुरी, राजस्थानी, गुजराती आदि फिल्में करता चला गया।

35 साल के करियर में लगभग 200 फिल्मों में काम किया
अब ज्यादातर लोग मुझे सिर्फ सिंगिंग के लिए बुलाते हैं। मैं ट्रैक पर गाता हूं। बैंड पर भी गाता हूं, पर ट्रैक पर गाने में मजा आता है। मेरे 35 साल के करियर में गुजराती, हिंदी, भोजपुरी, राजस्थानी फिल्मों को मिलाकर 150 से 200 फिल्में हो गई होंगी। फिल्मों के लिए उन दिनों ढाई हजार से तीन हजार पर-डे मिल जाता था। आज 60 साल की उम्र में मेरे पास मुंबई में दो फ्लैट, गाड़ी सहित दो बेटे-बहू से भरा-पूरा परिवार है। बेटे भी मनोरंजन जगत में सक्रिय हैं।