समान नागरिक संहिता पर बहस की पहल को कांग्रेस ने दिखाई लाल झंडी, कहा – UCC की अभी जरूरत नहीं

कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने 22वें विधि आयोग के 14 जून को जारी नोट का हवाला देते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए अपने बयान में कहा कि यूसीसी पर फिर से विचार-विमर्श करने का कोई औचित्य नहीं है।

समान नागरिक संहिता (यूसीसी) को लेकर शुरू हुई हलचल के साथ ही राजनीतिक वाद-विवाद का पिटारा भी खुलता नजर आ रहा है। कांग्रेस ने इस क्रम में विधि आयोग की समान नागरिक संहिता पर विचार-विमर्श की प्रक्रिया शुरू करने पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इसकी अभी कोई जरूरत नहीं है।

पार्टी ने लगाया आरोप

विधि आयोग की पहल का विरोध करते हुए पार्टी ने आरोप लगाया है कि भाजपा के ध्रुवीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए बिना किसी ठोस वजह के समान नागरिक संहिता की फिर से बहस छेड़ी जा रही है ताकि जनता का ध्यान असल मुद्दों से भटकाया जा सके।

क्या कहा कांग्रेस के संचार महासचिव ने ?

कांग्रेस के संचार महासचिव जयराम रमेश ने 22वें विधि आयोग के 14 जून को जारी नोट का हवाला देते हुए मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए अपने बयान में कहा कि यूसीसी पर फिर से विचार-विमर्श करने का कोई औचित्य नहीं है। कानून व न्याय मंत्रालय ने भी माना है कि पहले भी ऐसी पहल हुई थी और 21वें विधि आयोग ने अगस्त 2018 में इस विषय पर एक परामर्श पत्र जारी किया था।

ऐसे में नए विधि आयोग का समान नागरिक संहिता पर फिर से विचार-विमर्श करने का फैसला आश्चर्यजनक है। ”विषय की प्रासंगिकता एवं महत्व और विभिन्न अदालती आदेशों” जैसे अस्पष्ट संदर्भ या तर्क के अलावा विधि आयोग ने कोई भी ठोस कारण नहीं बताया है।

विफलताओं से ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी दे रही है हवा

कांग्रेस नेता ने कहा कि इसका वास्तविक कारण यह है कि 21वें विधि आयोग ने विषय की विस्तृत और व्यापक समीक्षा के बाद पाया कि समान नागरिक संहिता की ”न तो इस स्टेज पर आवश्यकता है और न ही यह वांछित है।” इसके बावजूद अभी इसको हवा देने का प्रयास मोदी सरकार के ध्रुवीकरण के एजेंडे को आगे बढ़ाने का स्पष्ट प्रयास है और सरकार अपनी विफलताओं से ध्यान भटकाने के लिए इसे हवा दे रही है।

यूसीसी की पहल को बताया गैरजरूरी

यूसीसी की पहल को गैरजरूरी बताते हुए जयराम ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा गठित 21वें विधि आयोग ने 31 अगस्त 2018 को परिवार कानून सुधार पर जारी परामर्श पत्र में साफ कहा था ”जब भारतीय संस्कृति की विविधता का जश्न मनाया जा सकता है और मनाया जाना चाहिए, तब इस प्रक्रिया में विशेष समूहों या समाज के कमजोर वर्गों को वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा आगे कहा, ”इस पर विवाद के समाधान का संकल्प सभी भिन्नताओं को खत्म करना नहीं है। इसलिए समान नागरिक संहिता न तो इस स्टेज पर जरुरी है और न ही वांछित। अधिकांश देश अब विभिन्नताओं को मान्यता देने की ओर बढ़ रहे हैं और इसका अस्तित्व भेदभाव नहीं है, बल्कि यह एक मजबूत लोकतंत्र का संकेत है।”

जयराम ने विधि आयोग को दी नसीहत

कांग्रेस महासचिव ने विधि आयोग को नसीहत देते हुए कहा कि वह दशकों से राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर महत्वपूर्ण काम करता आ रहा है। इसलिए उसे अपनी इस विरासत के प्रति सचेत रहते हुए याद रखना चाहिए कि राष्ट्र के हित भाजपा की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से अलग हैं।

कांग्रेस का रूख राजनीतिक रूप से क्यों है अहम?

यूसीसी बहस की पहल का विरोध करने का कांग्रेस का रूख राजनीतिक रूप से इसलिए अहम है कि विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर धर्मनिरपेक्ष धारा की सियासत करने वाली पार्टियों को साधे रखने के लिए इस पर स्पष्ट वैचारिक दृष्टिकोण उसके लिए जरूरी है।

उत्तराखंड समेत कई भाजपा शासित राज्यों ने पिछले कुछ समय से समान नागरिक संहिता की बहस को अलग-अलग तरीके से हवा दी है, लेकिन कांग्रेस ने इसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी। पर अब विधि आयोग की पहल के बाद कांग्रेस को चुप्पी तोड़ने पर बाध्य होना पड़ा है और पार्टी ने इसका विरोध करने के इरादे साफ कर दिए हैं।