अमेरिका ने भारत को ‘नाटो प्लस’ में शामिल करने की कवायद रोक दी है। ऐसा भारत के अपने रुख पर अडिग रहने के बाद हुआ है। भारत को हथियार और टेक्नोलॉजी ट्रासंफर करने में तेजी को उद्देश्य बताकर ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने की कवायद शुरू की गई थी। अमेरिकी संसद की सिलेक्ट कमेटी ने हाल ही में भारत को ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने की सिफारिश की थी।
लेकिन भारत ने स्पष्ट संकेत दिया कि वह ‘नाटो प्लस’ में शामिल नहीं होना चाहता है। इसके बाद सोमवार को अमेरिकी निचले सदन प्रतिनिधि सभा में संशोधित प्रस्ताव रखा गया, इसमें भारत को ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने का कोई उल्लेख नहीं किया गया। पिछले हफ्ते पेश पूरक प्रस्ताव में भी ‘नाटो प्लस’ शब्द हटाया गया था।
क्यों हटाना पड़ा ‘नाटो प्लस’ का उल्लेख
- विदेश मंत्री ने साफ किया: विदेश मंत्री जयशंकर ने हाल ही में साफ किया था कि ‘नाटो प्लस’ के दर्जे के प्रति भारत ज्यादा उत्सुक नहीं है।
- भारत की सैन्य मजबूती: भारत किसी भी सैन्य चुनौती से निपटने में सक्षम है। ‘नाटो प्लस’ दर्जे से खास फायदा नहीं।
- तटस्थ रहना चाहता है:
- अमेरिकी खेमे का ठप्पा लग सकता है। भारत कूटनीति में तटस्थ छवि रखना चाहता है।
- सैन्य उपकरण मिल रहे: ‘नाटो प्लस’ में शािमल हुए बिना भी भारत को अमेरिका से सैन्य उपकरण मिल रहे हैं।
अब आगे क्या
यह प्रस्ताव राष्ट्रपति जो बाइडेन के पास मंजूरी के लिए जाएगा। दूसरा विकल्प इसे डिफेंस एक्ट में शामिल करना हो सकता है। दोनों ही स्थितियां भारत के पक्ष में हैं।
एक महीने पहले हुई थी सिफारिश
ताइवान में चीन की दबंगई पर लगाम कसने और उसकी घेराबंदी के लिए अमेरिकी कांग्रेस की सेलेक्ट कमेटी ने भारत को ‘नाटो प्लस’ का दर्जा देने की सिफारिश की थी। कमेटी का मानना था कि चीन ताइवान पर हमला करता है तो सामरिक तौर पर कड़ा जवाब देने के साथ-साथ क्वॉड को भी अपनी भूमिका बढ़ानी होगी।
क्या है ‘नाटो प्लस’
मूल नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) में 31 सदस्य देश हैं। अमेरिका ने ‘नाटो प्लस’ संगठन बनाया हुआ है। इसमें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, इजरायल, जापान और दक्षिण कोरिया हैं। इन देशों के साथ अमेरिका के सामरिक संबंध हैं।