सफलता पाने के लिए जारी रखें सीखने का सफर

वर्षों का अनुभव होने के बाद भी यह जरूरी नहीं कि हम सब कुछ जानते ही हों। किसी भी काम को पूर्णता से करने के लिए अपनी गलतियों को स्वीकार कर उन्हें दूर करने और किसी से भी सीखने का सफर लगातार जारी रहने से कामयाबी की नित नयी सीढ़ियां चढ़ना आसान हो जाता है। आखिर क्यों जरूरी है ऐसा करना, बता रहे हैं अरुण श्रीवास्तव…

सोमेश एक प्रख्यात संस्थान में एक क्षेत्र विशेष के प्रमुख हैं। संस्थान द्वारा दी गई जिम्मेदारियों के निर्वहन के अलावा वह अपनी उत्साहपूर्ण पहल से हमेशा कुछ न कुछ नया करते रहते हैं। इसका फायदा संस्थान को तो मिलता ही है, इससे उन्हें भी अलग पहचान मिलती है। दरअसल, सोमेश की एक अलग पहचान है, उनके हमेशा ऊर्जावान बने रहने और दिखने से। इससे उनसे मिलने-जुलने वाले लोग भी प्रेरित होते हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि विपरीत परिस्थितियों में वह कभी हिम्मत नहीं हारते या उनसे कभी गलती नहीं होती। लेकिन जब कभी ऐसा होता है, वह खुद को शांत रखने की कोशिश करते हैं। जाने-अनजाने कोई गलती हो जाने पर वह उसके लिए किसी और को दोष देने के बजाय खुद उसकी पूरी जिम्मेदारी भी लेते हैं। इतना ही नहीं, वह अपनी गलतियों को स्वीकार करते हुए उसे दूर करने के लिए भी हमेशा तत्पर रहते हैं। इस बारे में एक वाकया हाल में देखने को मिला। सोमेश द्वारा लिखे एक मेल की तारीफ करने के साथ-साथ उनके वरिष्ठ अधिकारी ने जब एक खामी की ओर भी उनका ध्यान इंगित कराया, तो उन्होंने बिना देर किए अपनी गलती स्वीकार की और इसके लिए क्षमा भी मांगी। हां, ध्यान देने वाली बात यह भी है कि इसके साथ उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उस गलती को अब तक वह सही मानकर उसका इस्तेमाल करते आ रहे थे, लेकिन अब जबकि उन्हें पता चल गया है कि वह सही नहीं था, तो उन्होंने बेहिचक इसे स्वीकार करते हुए अपने लिए इसे नयी सीख बताया।

न बनें लकीर के फकीर : सोमेश के विपरीत आज की कामकाजी दुनिया में ऐसे तमाम लोग मिल जाएंगे, जो न तो अपने द्वारा की जाने वाली गलतियों पर ध्यान देते हैं और न ही उन गलतियों से सीखने पर। भले ही इसके लिए उन्हें हर दिन शर्मिंदा ही क्यों न होना पड़े। दरअसल, इसके लिए उनकी अगंभीर और चलताऊ सोच ही जिम्मेदार होती है, जिसकी वजह से वे आज की प्रोफेशनल दुनिया में भी गैर-जिम्मेदाराना कार्यशैली के साथ काम कर रहे होते हैं। इस तरह की गलतियों की सीमा पार हो जाने और बर्दाश्त से बाहर हो जाने पर जब कभी उन्हें दंडित किया जाता है, तब जाकर उन्हें पश्चाताप होता है या फिर वे अपनी गलती को स्वीकार करने के बजाय दूसरों में ही मीन-मेख निकालने लगते हैं। जाहिर है ऐसे लोगों को इसका नुकसान भी उठाना पड़ता है।

समय पर हो जाएं सजग: अगर आप वरिष्ठों और प्रबंधन की नजर में अपनी छवि बेहतर बनाना चाहते हैं, तो रोजमर्रा के कामकाज में हुई गलतियों से सीखने और भविष्य में उन्हें न दोहराने के प्रति संकल्पित होना चाहिए। यदि आप ऐसा नहीं करते और बार-बार एक जैसी गलती या गलती की अनदेखी करते चले जाते हैं, तो आपकी छवि एक गैर-जिम्मेदार और लापरवाह कर्मचारी की बनेगी, जिसका खामियाजा आपको पदोन्नति और इंक्रीमेंट में भी भुगतना पड़ सकता है। इसके विपरीत अगर आप गलतियों को लगातार सुधारते हुए नयी चीजों को सीखने और उत्साह के साथ आगे बढ़कर जिम्मेदारियां उठाने के लिए तत्पर रहते हैं, तो वरिष्ठों और प्रबंधन की नजर में आपकी बेहतर छवि बनेगी। इसका फायदा आगे चलकर बड़े उत्तरदायित्व के रूप में भी मिल सकता है।
बंद न रखें खिड़कियां-दरवाजे : सीखना किसी से भी हो सकता है, बशर्ते कि आप इसके लिए अपने दिलो-दिमाग के खिड़कियां और दरवाजे बंद न रखें। विद्वानों-वरिष्ठों और दूसरों के अनुभवों से तो हम हमेशा सीखते ही हैं और नित सीखना भी चाहिए, इसके अलावा हम अपने सहर्किमयों और कनिष्ठों से भी सीख सकते हैं। हालांकि इसके लिए सीखने को अपनी रोजमर्रा की आदत में शामिल करना होगा। इस क्रम में सबसे पहले खुद को इस भ्रम से मुक्त करना होगा कि आप सब कुछ जानते हैं, पूर्णतया परिपक्व हैं, आप कभी कोई गलती करते ही नहीं आदि-आदि। यदि आपने अपने आपको लेकर इस तरह का भ्रम दिमाग में बैठा लिया, तो आपमें कभी सीखने की ललक नहीं होगी। इसके विपरीत आशंका यह भी है कि इससे अभिमान रूपी दुर्गुण भी आपमें घर कर जाएगा, जो किसी और का नहीं, बल्कि आपका ही नुकसान करता रहेगा। ऐसी स्थिति में लोग आपसे कन्नी काटने लगेंगे। ऐसी नौबत न आए, इसके लिए जरूरी है कि आप खुद को विनम्र रखते हुए हर किसी से सीखने के लिए उत्सुक रहें। अपने दिलो-दिमाग की खिड़कियां हमेशा खोलकर रखें। आप खुद देखेंगे कि इसका कितना फायदा आपको अपने जीवन और करियर में मिलता है।
न बनें हठवादी: कभी-कभी किसी बात को लेकर लगता है कि हम पूरी तरह सही हैं, जबकि दूसरे उसे गलत बताते हैं तब भी। ऐसा किसी गलतफ हमी की वजह से भी हो सकता है। हो सकता है कि हमने किसी और संदर्भ में कोई चीज पढ़ी हो और उसे कहीं और लागू कर रहे हों, जहां वह दूसरों को तो अनुचित लग रहा हो, पर हमें नहीं। ऐसी स्थिति में अक्सर हठवादी हो जाने की आशंका होती है। ऐसी स्थिति हमारे लिए ही नुकसानदायक हो सकती है। जब कभी ऐसी स्थिति आये, अपनी हठवादिता छोड़कर वर्तमान संदर्भ में अपनी बात पर पुर्निवचार कर लेना उचित होता है।
अनुभवी अनपढ़ और बच्चा भी सिखा सकता है: जरूरी नहीं कि सिर्फ शास्त्रों या बड़ी-बड़ी किताबों से ही हमें ज्ञान और समझदारी की बातों का पता चले। कभी-कभी कोई अनपढ़ भी अपने अनुभव से समझदारी की बड़ी और गूढ़ बातें सिखा-बता देता है। इसमें हैरानी वाली कोई बात इसलिए नहीं होती कि बेशक वह व्यक्ति पढ़ा-लिखा नहीं होता, लेकिन वह अनुभव की भट्ठी में तपा और गुना होता है। इसीलिए उसकी बातें सौ टका खरी होती हैं। इसी तरह कई बार मासूम बच्चे भी सीख दे देते हैं, जिनमें कोई छल-कपट या ईष्र्या-द्वेष नहीं होता। जरूरी यह है कि हम सीखने के लिए कितने तत्पर हैं। अगर हमारे भीतर जानने-सीखने की जिज्ञासा ही नहीं होगी, तो हम जमाने के साथ कैसे चलेंगे। इस पर सोचिएगा जरूर।

ध्यान रखने वाली बातें

अपनी गलतियों को स्वीकार करने, उसे सुधारने और नया सीखने के लिए तत्पर रहने से आप कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने की ओर आसानी से अग्रसर हो सकते हैं।

यदि आप गलतियों से सीखते नहीं तो इससे वरिष्ठों और प्रबंधन में आपकी नकारात्मक छवि बन सकती है।

अगर आप विनम्र, उत्साही और हमेशा सीखते रहने के प्रति उत्सुक रहेंगे, तो आपके लिए तरक्की के रास्ते हमेशा खुले रहेंगे।

सीखना एक आजीवन चलती रहने वाली प्रक्रिया है। जिस दिन आपने खुद को परिपूर्ण मानते हुए सीखना बंद कर दिया, उसी दिन से आपका विकास भी

रुक जाएगा।