सबसे महंगी राजस्थानी फिल्म बनाकर दिवालिया हुए थे सागर:जिस टॉकीज के बाहर सालों तक चाय बेची, उसी के पर्दे पर हीरो बनकर आए

इंसान सोच ले तो क्या नहीं कर सकता। ये बात कहने में आसान लगती है, करने में मुश्किल। हालांकि, कुछ लोग होते हैं जो इसे कर दिखाते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं श्रवण सागर चौधरी। ये राजस्थानी फिल्मों के जाने-माने एक्टर-डायरेक्टर हैं।

अपने शुरुआती दिनों में ये जयपुर के लक्ष्मी मंदिर टॉकीज के बाहर चाय बेचते थे। छह साल तक ये सिलसिला चला। फिर वक्त ने करवट ली और एक दिन वो आया कि इसी लक्ष्मी मंदिर टॉकीज में वो फिल्म लगी, जिसमें ये हीरो थे। एक चाय वाले से एक्टर-डायरेक्टर बनने की सागर की कहानी काफी दिलचस्प है। हीरो बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए इन्हें सालों तक स्ट्रगल करना पड़ा। पहले दूध बेचते थे, फिर टॉकीज के बाहर चाय, फिर फिल्मों के सेट पर स्पॉट बॉय बने, ऑफिस बॉय बने, ड्राइवर भी रहे, फिर असिस्टेंट डायरेक्टर और एक दिन फिल्म के हीरो बन गए।

इंसान सोच ले तो क्या नहीं कर सकता। ये बात कहने में आसान लगती है, करने में मुश्किल। हालांकि, कुछ लोग होते हैं जो इसे कर दिखाते हैं। ऐसे ही एक शख्स हैं श्रवण सागर चौधरी। ये राजस्थानी फिल्मों के जाने-माने एक्टर-डायरेक्टर हैं।

अपने शुरुआती दिनों में ये जयपुर के लक्ष्मी मंदिर टॉकीज के बाहर चाय बेचते थे। छह साल तक ये सिलसिला चला। फिर वक्त ने करवट ली और एक दिन वो आया कि इसी लक्ष्मी मंदिर टॉकीज में वो फिल्म लगी, जिसमें ये हीरो थे। एक चाय वाले से एक्टर-डायरेक्टर बनने की सागर की कहानी काफी दिलचस्प है। हीरो बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए इन्हें सालों तक स्ट्रगल करना पड़ा। पहले दूध बेचते थे, फिर टॉकीज के बाहर चाय, फिर फिल्मों के सेट पर स्पॉट बॉय बने, ऑफिस बॉय बने, ड्राइवर भी रहे, फिर असिस्टेंट डायरेक्टर और एक दिन फिल्म के हीरो बन गए।

राजस्थानी फिल्म इंडस्ट्री को पटरी पर लाने का श्रेय भी सागर को ही दिया जाता है। आज इन्हीं सागर से सुनें उनकी जिंदगी की रोलरकोस्टर राइड वाली कहानी..

पूरा नाम श्रवण सागर चौधरी है, पर लोग पुकारते ‘सागर’ हैं। दरअसल, मुंबई आने के बाद मेरा नाम सागर पड़ा। धीरे-धीरे फिल्म लाइन में आगे बढ़ता गया तो सागर नाम हाइलाइट में आ गया। 2004 में मुंबई से जयपुर वापस गया, तब अपने डाक्यूमेंट में नाम बदलवा लिया।

मैंने बहन की दर्दनाक मौत देखी है-

मैं लोअर मिडिल क्लास एक किसान परिवार का बेटा हूं। पिता अब इस दुनिया में नहीं हैं। तीन भाई और एक बहन के बीच मैं तीसरे नंबर पर हूं। सबसे बड़ी एक बहन थी। हम बच्चे खेती में माता-पिता का हाथ बटाने खेत में जाते थे, तब देर रात घर लौटते थे। एक दिन आगजनी में 13 साल की उम्र में बहन की दर्दनाक मौत हो गई, तब मां टूट गईं। बड़े भाई ने छठी क्लास की पढ़ाई छोड़ दी। मैं तब सात साल का था, लेकिन आंखों देखी आगजनी की घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया। मम्मी-पापा खेत पर जाते थे, तब पीछे से मैं किचन से लेकर गाय-भैंस को खिलाने-पिलाने और गोबर उठाने का काम करता था।

मैं रोज 42 किमी दूर दूध बेचने जाता था-

16 साल की उम्र में मैं अपने गांव बड़ा पदमपुरा से 42 किलोमीटर दूर जयपुर शहर दूध बेचने जाने लग गया, क्योंकि उस समय मेरे गांव से एक ही बस आती थी और वही शाम को वापस जाती थी। दिन भर बैठा रहता था। साल-डेढ़ साल बाद समझ में आया कि दिन भर शहर में बैठे-बैठे आखिर क्या करूं। फिर तो जिस चाय की दुकान में दूध बेचता था, उसी से सीखकर मैंने चाय की दुकान खोल ली।

चाय बेचते हुए कई बार फ्री में देखीं फिल्में

उस समय जयपुर में राज मंदिर और लक्ष्मी मंदिर, दो सिनेमा हॉल काफी फेमस थे। मैंने लक्ष्मी मंदिर के पास चाय की दुकान खोली। पास के लक्ष्मी सिनेमा में दो कैदी, सलाखें, खलनायक, घायल, क्षत्रिय आदि फिल्में फ्री में देखी थी, क्योंकि सिनेमा हॉल के कर्मचारी हमसे फ्री में चाय मंगवाकर पीते थे। धीरे-धीरे सिनेमा हॉल के ओनर जागीरामजी से भी पहचान हो गई। उस समय तो वे सिनेमा चलाते थे, पर आज बहुत बड़ी शख्सियत हैं।

6 सालों तक सिनेमाघर के बाहर बेची चाय

मैंने 1991- 1997 तक चाय की दुकान चलाई। एक बार नारायण राम नाम के व्यक्ति घायल फिल्म देखना चाहते थे, पर टिकट नहीं मिल रहा था। उन्होंने मुझसे राजस्थानी भाषा में बातें करते हुए कहा कि भाई जी, जोधपुर का हूं और घायल फिल्म देखना चाहता हूं। मैंने उनकी थोड़ी हेल्प की, जिसका फल मुझे के.सी. बोकाड़िया साहब की फिल्म लाल बादशाह में मिला। वे के.सी. बोकाड़िया के प्रोडक्शन डिजाइनर थे। उन्होंने मुझे फिल्म में चाय बनाने वाले के तौर पर हायर किया। वहां सिनेमा के भगवान अमिताभ बच्चन को देखा। मनीषा कोइराला, मुकेश ऋषि, जया प्रदा आदि को देखा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि इतने बड़े लोगों के बीच से आ रहा हूं, जा रहा हूं, घूम रहा हूं।

मैं रोज 42 किमी दूर दूध बेचने जाता था-

16 साल की उम्र में मैं अपने गांव बड़ा पदमपुरा से 42 किलोमीटर दूर जयपुर शहर दूध बेचने जाने लग गया, क्योंकि उस समय मेरे गांव से एक ही बस आती थी और वही शाम को वापस जाती थी। दिन भर बैठा रहता था। साल-डेढ़ साल बाद समझ में आया कि दिन भर शहर में बैठे-बैठे आखिर क्या करूं। फिर तो जिस चाय की दुकान में दूध बेचता था, उसी से सीखकर मैंने चाय की दुकान खोल ली।

चाय बेचते हुए कई बार फ्री में देखीं फिल्में

उस समय जयपुर में राज मंदिर और लक्ष्मी मंदिर, दो सिनेमा हॉल काफी फेमस थे। मैंने लक्ष्मी मंदिर के पास चाय की दुकान खोली। पास के लक्ष्मी सिनेमा में दो कैदी, सलाखें, खलनायक, घायल, क्षत्रिय आदि फिल्में फ्री में देखी थी, क्योंकि सिनेमा हॉल के कर्मचारी हमसे फ्री में चाय मंगवाकर पीते थे। धीरे-धीरे सिनेमा हॉल के ओनर जागीरामजी से भी पहचान हो गई। उस समय तो वे सिनेमा चलाते थे, पर आज बहुत बड़ी शख्सियत हैं।

6 सालों तक सिनेमाघर के बाहर बेची चाय

मैंने 1991- 1997 तक चाय की दुकान चलाई। एक बार नारायण राम नाम के व्यक्ति घायल फिल्म देखना चाहते थे, पर टिकट नहीं मिल रहा था। उन्होंने मुझसे राजस्थानी भाषा में बातें करते हुए कहा कि भाई जी, जोधपुर का हूं और घायल फिल्म देखना चाहता हूं। मैंने उनकी थोड़ी हेल्प की, जिसका फल मुझे के.सी. बोकाड़िया साहब की फिल्म लाल बादशाह में मिला। वे के.सी. बोकाड़िया के प्रोडक्शन डिजाइनर थे। उन्होंने मुझे फिल्म में चाय बनाने वाले के तौर पर हायर किया। वहां सिनेमा के भगवान अमिताभ बच्चन को देखा। मनीषा कोइराला, मुकेश ऋषि, जया प्रदा आदि को देखा। मैं समझ नहीं पा रहा था कि इतने बड़े लोगों के बीच से आ रहा हूं, जा रहा हूं, घूम रहा हूं।

गांव के लोग मुझे हीरो बोलने लगे थे

फिल्म की शूटिंग करके मैं अपने गांव लौट आया। गांव में लोग मुझे हीरो बुलाने लग गए। उस समय मुझे नहीं लगा कि यह बातें मुझे सिनेमा की तरफ ले जाएंगी। कभी अहसास नहीं हुआ। उस समय मेरे दिमाग में आया कि हीरो बन सकता हूं क्या, मुंबई चलकर देखता हूं।

लाल बादशाह देखकर ट्रेन पकड़कर सीधे मुंबई पहुंच गया

1999 में मैंने लाल बादशाह पिक्चर देखी और उसी दिन ट्रेन में बैठा और मुंबई आ पहुंचा। यहां आकर फिल्म के एसोसिएट डायरेक्टर रमेश मोदी को फोन लगाया, क्योंकि मोदी जी से लाल बादशाह के समय अच्छी जान-पहचान हो गई थी।

खैर, मुंबई पहुंचकर मोदी जी को फोन किया, तब उन्होंने तीन-चार दिन बाद मुझे मुंबई स्थित अंधेरी में अपना बाजार के पास मुझे बुलाया। वे मुझे अपने साथ घर ले गए। वो एक दिन मुझे बोकाड़िया साहब के ऑफिस ले गए। उन्होंने बोकाड़िया साहब से बात करके मुझे काम पर लगवा दिया। बोकाड़िया साहब ने मेरे सिर पर हाथ रखा और कहा कि बेटा तू यहां आराम से रह। कोई आए तो उसकी सेवा किया करना, जो सीखना है, वह सब सीख जाएगा, सिर्फ सेवा कर।

बोकाड़िया के ड्राइवर से बन गए असिस्टेंट डायरेक्टर

सागर ने केसी बोकाड़िया के साथ दो फिल्में एक हसीना एक दीवाना और डोंट चैलेंज में बतौर ऑफिस बॉय काम किया। कभी ड्राइवर बन जाते तो कभी सेट पर छोटे-मोटे काम करते। सागर का काम ऐसा जमा कि बोकाड़िया ने उन्हें फिल्म तेरी मेहरबानियां (बंगाली) और बोल्ड (हिंदी) में असिस्टेंट डायरेक्टर बना लिया।

भाई के इलाज में पैसे लगाकर कर्ज में डूब गए सागर

सागर ने फिल्मों में काम करते हुए काफी पैसे कमाए, लेकिन 2004 में भाई के एक्सीडेंट से वो कर्ज में डूब गए। इलाज में 13 लाख रुपए लगे और सब कुछ बेचने के बावजूद सागर 3 लाख के कर्जे में थे। मजबूरी में उन्हें मुंबई से राजस्थान जाना पड़ा।

राजस्थानी सिनेमा को दी नई पहचान

वापस आकर सागर ने राजस्थानी सिनेमा में काम करना शुरू किया। उन्होंने वीणा कैसेट, टी-सीरीज, मधुरा म्यूजिक कंपनियों के लिए एलबम डायरेक्ट कर खूब नाम कमाया। मैं हूं देसी जाट गाने में सागर खुद एक्टर बने जिससे उन्हें खूब पॉपुलैरिटी मिली। कई नए कलाकारों को सागर ने मौका दिया और राजस्थानी सिनेमा को दोबारा पटरी पर लेकर आए। सागर ने राजस्थान फिल्म अवॉर्ड शुरू किया, जहां राजस्थान के आर्टिस्ट को प्रोत्साहित किया जाता है और उनकी मदद की जाती है। पहले राजस्थान में चंद फिल्में ही बनती थीं, लेकिन 2022 में अब सालाना 15 से 20 फिल्में बनती हैं।

आमिर ने मेरी फिल्म का टाइटल लेकर फिल्म बनाई

सागर बताते हैं- मेरी फिल्म पटेलण थी, जिसे पहली बार राजस्थान सरकार ने पांच लाख रुपए प्रोत्साहन राशि देने की शुरुआत की। मेरी फिल्म दंगल का टाइटल आमिर खान ने लेकर उस पर फिल्म बनाई। इसके लिए हमने कुछ नहीं लिया, क्योंकि हमारे लिए यही बहुत बड़ी बात थी कि यहां खबर छपी कि राजस्थानी टाइटल दंगल से बॉलीवुड में फिल्म बन रही है।

दो बार फाइनेंशियल क्राइसिस का सामना करना पड़ा

अभिमन्यु द हीरो फिल्म में हीरो होने के साथ सागर को-प्रोड्यूसर भी रहे। फिल्म में ऋषिता भट्ट, शक्ति कपूर जैसे एक्टर्स थे। डेढ़ करोड़ में बनी इस फिल्म से सागर को 60 लाख का नुकसान हुआ, जिसकी रिकवरी में 2-3 साल लगे। साल 2016 में नोटबंदी के समय रिलीज हुई पगड़ी से भी सागर को 40 लाख का नुकसान हुआ।

खुद को अपर मिडिल क्लास में लाने की कवायद पूरी हुई- सागर

आज पूरे राजस्थान में सागर एक नामी चेहरा हैं। वह कहते हैं- मेरी जो लोअर मिडिल क्लास फैमिली थी, उसे आज अपर मिडिल क्लास में लाने की कवायद पूरी हुई है। राजस्थान में आज जितने एक्टर-एक्ट्रेस हैं, वे मेरी फिल्मों के आसपास से निकले हैं। मुझे एक अलग महत्व दिया जा रहा है। मेरे लिए यह फाइनेंशियली प्रोग्रेस से ज्यादा बड़ी खुशी है।

इसी तरह पर्दे के पीछे काम करने वाली हस्तियों की कहानी जानने के लिए नीचे दी गई खबर पढ़ें-

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