1962 The War In The Hills Review: सरहद पर जंग के बीच जवानों की निजी भावनात्मक लड़ाइयों का चित्रण, पढ़ें पूरा रिव्यू

 जंग सरहद पर लड़ी जाती है, मगर इसके धमाके उस गांव, गली और आंगन तक को दहला जाते हैं, जिसका बेटा, भाई या पति जान हथेली पर लिये दुश्मनों के दांत खट्टे कर रहा होता है। देशभक्ति के जुनून में चूर ये मतवाले देश के सम्मान के लिए अपनी बड़ी से बड़ी व्यक्तिगत दुश्वारियों को भुलाकर कुर्बानी की सर्वोच्च दास्तां लिख जाते हैं।

ब्रिटिश हुकूमत से आज़ादी मिलने के महज़ 15 साल बाद भारत को एक ऐसे युद्ध का सामना करना पड़ा था, जिसके लिए वो बिल्कुल तैयार नहीं था। नेफा और लद्दाख के दुर्गम इलाक़ों में सैनिकों को ठंड से बचाने के इंतज़ाम करने में भी देश सक्षम नहीं था। ऐसी बहुत सी मुश्किलें थीं, मगर जवानों के चट्टानी इरादों के यह बौनी साबित हुईं। चीन, भारत की कमज़ोरी को अच्छी तरह जानता था, इसलिए उसने अपनी प्रसार नीति को अमली जामा पहनाने के लिए भारत पर स्ट्रेटजिक हमले शुरू कर दिये थे। सियासतदां मजबूर थे, मगर सेना नहीं।

महेश मांजरेकर निर्देशित वेब सीरीज़ 1962- द वॉर इन द हिल्स, भारत और चीन के बीच 1962 में हुई जंग से प्रेरित ऐसी ही एक कहानी है, जिसमें जवानों की जांबाज़ी के साथ-साथ उनकी निजी ज़िंदगी में चल रही भावनात्मक लड़ाइयों को रेखांकित किया गया है, जो सीरीज़ के 10 एपिसोड्स में फैली हुई हैं।

पहले एपिसोड की शुरुआत मेजर सूरज सिंह (अभय देओल) से होती है, जिनका हाल ही में राजस्थान से कश्मीर के बारामूला  ट्रांसफर हुआ है। मेजर के साथ उनकी पत्नी शगुन (माही गिल) और बेटी भी हैं। मेजर अपनी बटालियन सी-कम्पनी को परिवार की तरह मानते हैं। चीन से युद्ध की भूमिका बनने लगी है, क्योंकि लदाख में कई पोस्टों पर चीनियों ने क़ब्ज़ा कर लिया है। मेजर सूरज सिंह अपनी बटालियन सी-कंपनी के साथ इन पोस्टों को छुड़ाने के मिशन पर हैं। डिफेंस मंत्री और वरिष्ठ सैन्य अधिकारी प्रधानमंत्री को चीन के बढ़ते क़दमों को रोकने के लिए ख़िलाफ़ फॉरवर्ड पॉलिसी अपनाने की सलाह देते हैं। एक पोस्ट पर भीषण लड़ाई के बाद हालात ऐसे बनते हैं कि मेजर सूरज सिंह को सरेंडर करना पड़ता है। इस लड़ाई में वो ज़ख़्मी भी हो जाते हैं और पोस्ट चीनी फौज के क़ब्ज़े में चली जाती है। इस हार का मेजर पर गहरा असर होता है। अब उन्हें इस दाग़ को धोने के लिए मौक़े का इंतज़ार है।

इस वॉर सीरीज़ के केंद्र में नार्थ-ईस्ट और लद्दाख के अलावा हरियाणा का रेवाड़ी गांव है, जहां के अधिकतर परिवारों के सदस्य फौज में हैं। इनमें जमादार राम कुमार (सुमीत व्यास), सिपाही किशन (आकाश थोसर), सिपाही करण (रोहन गंडोत्रा) और उसका बड़ा भाई और हरदम (विनीत शर्मा), मेजर सूरज सिंह की बटालियन सी-कम्पनी के जवान हैं। इन सभी किरदारों की अपनी-अपनी कहानी है। किशन, करण और राधा (हेमल इंगले) का लव ट्रायंगल है। आकाश और उसके परिवार की ग़रीबी है। रोहन का एकतरफ़ा प्यार है।

राधा के लिए किशन और करण की दोस्ती में दरार है। राम कुमार के रूप में ज़िंदगी के अकेलेपन को बेटे राजू (प्रेम धर्माधिकारी) की परवरिश से दूर करता एक किरदार है। अपने सौतेले भाई गोपाल (सत्या मांजरेकर) की परवरिश करने के लिए शादी ना करने वाला हरदम है। गोपाल की नई-नई शादी है और दुल्हन पद्मा (पूजा सावंत) के अधूरे अरमान हैं। गांव में एक पोस्ट ऑफ़िस है, जहां पोस्ट मास्टर डाक चाचा का इकलौता बेटा अहमद (सिद्धांत मुले) फौज में है। और इन सभी किरदारों का एक-दूसरे से लगाव और जुड़ाव है।

चारूदत्त आचार्य का स्क्रीनप्ले मुख्य रूप से भारत-चीन के बीच झड़पों, राजनीतिक मजबूरियों और जवानों की निजी ज़िंदगी में बंटा हुआ है। घटनाक्रमों को जोड़ने के लिए मेजर सूरज सिंह की पत्नी शगुन सिंह (माही गिल) के नैरेशन का इस्तेमाल किया गया है, जो अपने मिलेनियल नाती और नातिन को जंग की कहानी और सी-कम्पनी के जवानों की निजी ज़िंदगी में चल रही उथल-पुथल के बारे में बता रही है। हालांकि, बुजुर्ग शगुन का किरदार दूसरी कलाकार ने निभाया है। नैरेशन में माही की सिर्फ़ आवाज़ का इस्तेमाल किया गया है।

साठ के दशक को चित्रित करने के लिए डिज़ाइनिंग विभाग ने अच्छा काम किया है। उस दौर की आर्मी यूनिफॉर्म्स, वाहनों और 50 के दशक के हिंदी फ़िल्मी गानों के ज़रिए कालखंड को स्थापित किया गया है। चीनियों से लड़ाई के माहौल में मेजर सूरज सिंह के घर पर ग्रामोफोन पर बजता 1958 की फ़िल्म हावड़ा ब्रिज का हेलन पर फ़िल्माया गया कल्ट सॉन्ग ‘चिन चिन चू…’ बेहतरीन प्रयोग है। हालांकि, युद्ध के दृश्यों में घटिया वीएफएक्स ने सीरीज़ को हल्का कर दिया है। निर्देशक महेश मांजरेकर ने युद्ध के दृश्यों और निजी ज़िंदगी में चल रहे घटनाक्रमों को दिखाने के लिए अलग-अलग कलर टोन का इस्तेमाल किया है, जो थोड़ा अखरता है।

सीरीज़ के शुरुआती एपिसोड की धार और रफ़्तार धीमी है, मगर आख़िरी के चार एपिसोड लय पकड़ लेते हैं और सीरीज़ इंगेजिंग होने लगती है। इस सीरीज़ को कम एपिसोड में बनाया जाता तो परिणाम अधिक प्रभावशाली होता, क्योंकि जवानों की पर्सनल लाइफ़ के घटनाक्रम बेहद फ़िल्मी और घिसे-पिटे ढर्रे पर चलते हैं। ये सीरीज़ की गति सुस्त कर देते हैं।

अभय देओल ने मेजर सूरज सिंह के किरदार के भावनात्मक पक्ष को कामयाबी के साथ पेश किया है। उनके किरदार को बहुत लाउड नहीं रखा गया है। सूरज सिंह की पत्नी के किरदार में माही गिल देव.डी के बाद अभय के साथ रीयूनाइट हुई हैं। कैंसर से पीड़ित होने के बावजूद पति का सम्बल बनी पत्नी के किरदार में माही ने ठीक काम किया है।

बाक़ी कलाकारों में किशन की प्रेमिका राधा के किरदार में हेमल इंगले अपनी परफॉर्मेंस से प्रभावित करती हैं। सीरीज़ की एक कमज़ोरी इसके किरदारों का लहज़ा भी है। जवानों की पृष्ठभूमि हरियाणा के रेवाड़ी गांव में स्थापित की गयी है, मगर ज़्यादातर कलाकारों के लहज़े से हरियाणवी टच मिसिंग है। चीनी सैनिकों के किरदार निभाने वाले कलाकार भी धारा-प्रवाह हिंदी में बात कर रहे हैं, मगर यह स्वीकार्य हो सकता है, क्योंकि मेकर्स ने भी सीरीज़ की शुरुआत में डिस्क्लेमर देकर साफ़ कर दिया था कि ऐसा इसलिए किया गया है, ताकि दर्शक को समझने में दिक्कत ना हो।

1962 द वॉर इन द हिल्स वेब सीरीज़ इस जंग के राजनीतिक या ऐतिहासिक पहलू पर टिप्पणी से अधिक एक काल्पनिक कहानी है, जो एक सच्ची घटना से प्रेरित है और उसे उसी नज़र से देखा भी जाना चाहिए। इसीलिए,  तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर आधारित किरदार तो है, मगर पूरी सीरीज़ में उसे कोई नाम नहीं दिया गया है। इस किरदार को आरिफ़ ज़कारिया ने निभाया है। वहीं, इंदिरा गांधी पर आधारित किरदार भी है, जिसे प्रिया नाम दिया है। इस किरदार को गीतिका विद्या ओहल्यान ने निभाया है। वैसे, महेश मांजरेकर ने 1962 की जंग के साथ जवानों की निजी ज़िंदगी पर जो कहानी दिखायी है, वो किसी भी जंग की कहानी में फिट हो सकती है। अब 1962 की लड़ाई ही क्यों ली, यह वही बेहतर जानते होंगे।

कलाकार- अभय देओल, माही गिल, अनूप सोनी, आकाश थोसर, रोहन गंडोत्रा, सुमीत व्यास, मेयांग चैंग, हेमल इंगले आदि।

निर्देशक- महेश मांजरेकर

निर्माता- Arre स्टूडियो

प्लेटफॉर्म- डिज़्नी प्लस हॉटस्टार वीआईपी

स्टार- **1/2 (ढाई स्टार)