अगस्त के रिटेल महंगाई के आंकड़े आज शाम 05.30 बजे जारी किए जाएंगे। इस बार रिटेल महंगाई चार महीनों में पहली बार बढ़कर 6.9% हो सकती है। कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) आधारित रिटेल महंगाई दर जुलाई में घटकर 6.7% हो गई थी।
खाने पीने का सामान खास तौर पर खाने का तेल और सब्जियों की कीमतों के घटने की वजह से महंगाई कम हुई थी। जुलाई में फूड इन्फ्लेशन 6.75% हो गई थी जो जून में 7.75% रही थी। मई महीने में यह 7.97% और अप्रैल में 8.38% थी।
हालांकि रिटेल महंगाई दर लगातार 7 महीनों से RBI की 6% की ऊपरी लिमिट के पार बनी हुई है। जनवरी 2022 में रिटेल महंगाई दर 6.01%, फरवरी में 6.07%, मार्च में 6.95%, अप्रैल में 7.79%, मई में 7.04% और जून में 7.01% दर्ज की गई थी।
अनाज-दालों की कीमतों में इजाफा
इकोनॉमिस्टों के अनुसार अगस्त में महंगाई बढ़ने की संभावना है क्योंकि अनाज और दालों की कीमतें बढ़ने लगी हैं। डिपार्टमेंट ऑफ कंज्यूमर अफेयर्स के डेटा के अनुसार अगस्त में चावल की रिटेल कीमतों में महीने-दर-महीने 2.3% का इजाफा हुआ है। आटे की कीमतें भी 3.5% बढ़ी है।
महंगाई कैसे प्रभावित करती है?
महंगाई का सीधा संबंध पर्चेजिंग पावर से है। उदाहरण के लिए, यदि महंगाई दर 7% है, तो अर्जित किए गए 100 रुपए का मूल्य सिर्फ 93 रुपए होगा। इसलिए, महंगाई को देखते हुए ही निवेश करना चाहिए। नहीं तो आपके पैसे की वैल्यू कम हो जाएगी।
महंगाई कैसे बढ़ती-घटती है?
महंगाई का बढ़ना और घटना प्रोडक्ट की डिमांड और सप्लाई पर निर्भर करता है। अगर लोगों के पास पैसे ज्यादा होंगे तो वह ज्यादा चीजें खरीदेंगे। ज्यादा चीजें खरीदने से चीजों की डिमांड बढ़ेगी और डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं होने पर इन चीजों की कीमत बढ़ेगी।
इस तरह बाजार महंगाई की चपेट में आ जाता है। सीधे शब्दों में कहे तो बाजार में पैसों का अत्यधिक बहाव या चीजों की शॉर्टेज महंगाई का कारण बनता है। वहीं अगर डिमांड कम होगी और सप्लाई ज्यादा तो महंगाई कम होगी।
RBI कैसे कंट्रोल करती है महंगाई?
महंगाई कम करने के लिए बाजार में पैसों के अत्यधिक बहाव (लिक्विडिटी) को कम किया जाता है। इसके लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI), रेपो रेट बढ़ाता है। बढ़ती महंगाई से चिंतित RBI ने हाल ही में रेपो रेट में 0.50% इजाफा किया है। इससे रेपो रेट 4.90% से बढ़कर 5.40% हो गया है।
CPI क्या होता है?
दुनियाभर की कई इकोनॉमी महंगाई को मापने के लिए WPI (Wholesale Price Index) को अपना आधार मानती हैं। भारत में ऐसा नहीं होता। हमारे देश में WPI के साथ ही CPI को भी महंगाई चेक करने का स्केल माना जाता है।
भारतीय रिजर्व बैंक मौद्रिक और क्रेडिट से जुड़ी नीतियां तय करने के लिए थोक मूल्यों को नहीं, बल्कि खुदरा महंगाई दर को मुख्य मानक (मेन स्टैंडर्ड) मानता है। अर्थव्यवस्था के स्वभाव में WPI और CPI एक-दूसरे पर असर डालते हैं। इस तरह WPI बढ़ेगा, तो CPI भी बढ़ेगा।
रिटेल महंगाई की दर कैसे तय होती है?
कच्चे तेल, कमोडिटी की कीमतों, मैन्युफैक्चर्ड कॉस्ट के अलावा कई अन्य चीजें भी होती हैं, जिनकी रिटेल महंगाई दर तय करने में अहम भूमिका होती है। करीब 299 सामान ऐसे हैं, जिनकी कीमतों के आधार पर रिटेल महंगाई का रेट तय होता है।
IIP ग्रोथ
स्टैटिक्स मिनिस्ट्री जुलाई का इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन डेटा भी शाम 5.30 बजे जारी करेगा। इंडेक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन (IIP) जुलाई में 4.1% तक गिर सकती है, जो जून में 12.3% थी।