आंखों से बहते आंसू और कंधे पर पिता की अर्थी थी। मायूस चेहरे पर खामोशी के ऐसे भाव थे मानो कलेजा फट जाएगा। जिस पिता के कंधों पर बैठकर बेटी ने दुनिया देखी हो और फिर एक दिन वही बेटी पिता की अर्थी को अपने कंधों पर लेकर जाए तो शायद हर किसी की आंखों से आंसू बहने लगे। सोमवार को शीतल नगर कालोनी में कुछ ऐसा ही देखने को मिला। जब सोनिया अपने पिता की अर्थी को लेकर श्मशान घाट पर पहुंची। खास बात यह थी कि सोनिया के इस हौसले में उसकी सहेलियों ने भी कदम से कदम मिलाया और उन्होंने भी अर्थी को कंधा दिया।
मूलरूप से उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के इटवागुन गांव निवासी 54 वर्षींय सत्यराम रोहतक के शीतल नगर में रहते हैं। जो पीडब्ल्यूडी में कार्यरत थे। 29 मई को उनके बेटे सूरज की शादी होनी है। करीब डेढ़ माह पहले गांव में मकान बनाने के लिए गए थे। 24 मार्च को वापस लौटना था। 17 मार्च को उनके पेट में दर्द हुआ, जिसके बाद कभी बस्ती के सरकारी अस्पताल तो कभी लखनऊ में भर्ती कराया गया। हालत में सुधार नहीं हुआ। रविवार रात परिवार के सदस्य उन्हें एंबुलेंस में वेंटीलेंटर पर रोहतक लेकर आ गए। उन्हें निजी अस्पताल में भर्ती करा दिया। सोमवार तड़के करीब चार बजे उनका निधन हो गया। उनके परिवार में पत्नी ऊषा, बड़ी बेटी रेनू, सोनिया, बेटा सूरज, सोनू और सबसे छोटी बेटी दुर्गा है। सोनिया एमटीएफसी संस्था से जुड़ी हुई है।
सोनिया बोली, मैं दूंगी पिता की अर्थी को कंधा
शाम करीब चार बजे रिश्तेदार और आसपास के बड़े-बुजुर्ग अंतिम संस्कार को लेकर अर्थी तैयार कर रहे थे। इसके लिए सत्यराम के दोनों बेटे सूरज और सोनू को बुलाया गया। तभी सोनिया वहां पर आई, जिसने कहा कि वह अपने पिता की अर्थी को कंधा खुद देगी। उसके इस फैसले को सभी सराहा, जिसके बाद उसकी सहेलिया और संस्था की सदस्य अनीता, अंजली, ज्योति, मोनिका और पूजा ने भी श्मशानघाट के रास्ते में बीच-बीच में अर्थी को कंधा दिया। बेटियों को अर्थी लेकर जाते देखकर हर कोई हैरान था, लेकिन सभी उनके इस हौसले की सराहना भी कर रहे थे।